Ramazan 2025: रमजान के पवित्र महीने का आगाज होने वाला है. मुसलमानों के लिए यह महीना पूरे साल में सबसे अहम मुकद्दस होता है. इस महीने में सभी मुसलमान रोज़ा रखते हैं और अल्लाह की इबादत करके अपनी मग़फिरत यानी माफी की दुआ मांगते हैं. तो चलिए रमजान के बारे में कुछ और भी जानते हैं.
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Ramadan 2025: मुसलमानों के लिए सबसे पवित्र महीना 'रमज़ान' शुरू होने वाला है. इस दौरान सभी मुसलमानों पर रोजे (व्रत) रखते हैं. सुबह सूरज निकलने से पहले खाना पीना बंद कर दिया जाता है और फिर दिनभर भूखे प्यासे रहते हैं, फिर शाम को सूरज छिपने के बाद 'इफ्तार' होती है. रोजों के अलावा यह महीना मुसलमानों के लिए इबादत का महीना भी कहा जाता है. इस महीने में इबादत करना अन्य महीनों के मुकाबले ज्यादा फायदेमंद बताया जाता है. साथ ही यह भी कहा जाता है मुसलमानों की सबसे पवित्र किताब 'कुरान' भी इसी महीने में नाजिल (उतरी) हुई.
'रमज़ान' अरबी कैलेंडर के 9वें महीने का नाम है. इस महीने की शुरुआत चांद देखकर की जाती है और फिर खत्म भी चांद देखने के बाद ही होता है. रमज़ान खत्म होने के बाद सभी मुसलमान ईद उल फित्र (Eid Al Fitr) का त्योहार मनाते हैं. मुसलमान इस महीने को इबादत का महीना मानते हैं और इसका बहुत सम्मान करते हैं. लगभग सभी मुसलमान इस महीने की शुरुआत से पहले ही इसकी तैयारियों में लग जाते हैं. इसे महीने को मगफिरत यानी माफी का महीना भी कहा जाता है.
रमजान अरबी भाषा का शब्द है. जो 'रम्ज़' से बना है. इसका मतलब 'तेज या फिर तपती हुई गर्मी' होता है. रमजान के दौरान रोजा रखने वाले को भूख और प्यास की तपिश का अहसास होता है, इसीलिए इसे रमजान कहा जाता है. कहा जाता है कि इस महीने का नाम इसलिए रमजान रखा गया क्योंकि जब अरबों ने पुराने शब्दकोष से महीनों के नाम लेना शुरू किए, तो उन्होंने समय और मौसम के मुताबिक महीनों को नाम दिया. जिसमें वे उस समय मौजूद होते थे. संयोग से उन दिनों रमजान भीषण गर्मी के दौरान आया. इसीलिए इसका नाम रमज़ान रखा गया.
रमजान के महीने में जो लोग रोजा रखते हैं वो सुबह उठते हैं और फिर खाना-पीनी खाते हैं. हालांकि इस दौरान खाने पीने को लेकर कोई भी खास निर्देश नहीं है. जिस तरह आम दिनों में खाया-पिया जाता है उसी तरह खाना होता है. इसी खाने को 'सहरी' कहा जाता है. सहरी शब्द 'सहर' से बना है. जिसका मतलब 'भोर, सवेरा, तड़का, प्रातःकाल' होता है.
सुबह सहरी करने के बाद सभी रोजेदार दिन भर अपने रोजमर्रा के काम करते हैं. साथ ही अल्लाह की इबादत भी करते हैं. इस दौरान रोजा रखने वाला शख्स कुछ भी नहीं खाता. यहां तक कि उसे पानी भी नहीं पीना होता. हालांकि शाम को जब सूरज छिप जाता है और उस समय रोजा खोला/तोड़ा जाता है. जिसे इफ्तार कहा जाता है.
इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक सबसे पवित्र किताब कुरान के उतरने की शुरुआत भी इसी महीने की एक रात से हुई. इस रात को 'लयलतुल कद्र/शब-ए-कद्र' भी का जाता है. इस रात के बाद से लगातार पैगम्बर मोहम्मद साहब पर उनके दुनिया से रुख्सत होने तक सिलसिलेवार तरीके से कुरान उतरता रहा है. यानी अलग-अलग मौके पर पैगम्बर मोहम्मद साहब पर कुरान की आयतें नाजिल हुईं.