Ramadan 2025 Moon Sighting: रमजान के पवित्र महीने का आगाज होने वाला है, इससे पहले नए महीने का चांद नजर आने की पुष्टि बेहद जरूरी है. चांद देखने के लिए लगभग हर जगह कमेटियां बनी हुई हैं और आज के समय में चांद देखने के कई तरह मशीनें भी मौजूद हैं, हालांकि पुराने जमाने में सऊदी अरब में चांद देखने की परंपरा बेहद दिलचस्प थी.
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Ramadan 2025 Moon Sighting: रमजान 2025 करीब है, चांद कमेटियां शाम को चांद देखेंगी, अगर चांद नजर आता है तो फिर मस्जिदों से ऐलान किया जाएगा कि रमजान की शुरुआत हो चुकी है. सऊदी अरब में भी आज चांद देखा जाएगा. सऊदी अरब में अब मक्का की मस्जिद अल हरम के सामने मौजूद क्लॉक टॉवर से चांद देखा जाता है, लेकिन क्या आपको पता है कि इससे पहले सऊदी अरब में आधिकारिक तौर पर चांद कहां से देखा जाता था?
जिस जगह से चांद देखा जाता है उसे 'रसद गाह' कहा जाता है. फिलहाल यह रसद गाह क्लॉक टॉवर में मौजूद है, जहां से चांद कमेटियां चांद देखती हैं. हालांकि सऊदी अरब में चांद देखने के लिए पहली रसद गाह 1948 में मक्का शहर में ही बनाई गई थी. यह रसद गाह जबल अबू क़ुबैस पहाड़ पर शाह अब्दुल अजीज ने बनवाई थी. इसके निर्माण कार्य में जो सामान इस्तेमाल हुआ था वो भी शाह अब्दुल अजीज ने ही दिया था. हालांकि इसे बनाने का विचार मशहूर खगोलविद (Astronomer) शेख मोहम्मद अब्दुर्रज़ाक हमज़ा ने दिया था.
पुराने ज़माने में जब संचार के आधुनिक साधन उपलब्ध नहीं थे, तब मक्का के क़ाज़ी और उनके सहयोगी रमज़ान और ईद का चांद देखने के लिए जबल अबू क़ुबैस पहाड़ पर मौजूद इसी रसद गाह में जाते थे. अगर चांद नज़र आ जाता था तो उनमें से एक शख्स हाथ में एक कपड़ा लहराकर इसकी जानकारी देता था. इस दौरान पहाड़ियों पर मौजूद किलों के लोग रसद गाह की तरफ देखते रहते थे. अगर उन्हें वहां पर कपड़ा लहराता हुआ दिखाई देता था, तो वहां से तोप के गोले दागकर पूरे शहर को इसकी जानकारी देते.
हालांकि अब सऊदी अरब ने कई आधुनिक रसदगाहें मौजूद हैं. इनमें सबसे प्रमुख 'सदीर', 'तमीर' और मक्का की रसदगाहें हैं. इसके अलावा रियाद, मदीना, क़सीम, ज़हरान, शक़रा, हाइल और तबूक में भी खगोलीय अध्ययन केंद्र बनाए गए हैं.
सऊदी न्याय मंत्रालय ने चाँद देखने की प्रक्रिया को कानूनी रूप से अधिक प्रभावी बनाने के लिए एक इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम विकसित किया है. यह सिस्टम देशभर की रसदगारों और अदालतों को आपस में जोड़ता है, जिससे चांद के दिखने की पुष्टि वैज्ञानिक और कानूनी तौर पर की जा सके. इस नई व्यवस्था से इस्लामी कैलेंडर की तारीखें ज्यादा सटीक और विश्वसनीय हो गई हैं.