भारतीय वायुसेना को तेजस काफी रास आ रहा है. इसकी ताकत, पैनापन और तेजी इसे खास बनाती हैं. दिलचस्प बात यह है कि तेजस को पहले पुरानी मिग-21 फ्लीट को रिप्लेस करने के लिए एक हल्के, फुर्तीले फाइटर के रूप में डिजाइन किया गया था. इसमें कई बदलाव किए गए, तब जाकर यह ताकतवर मल्टी-रोल फाइटर के रूप में उभरा है.
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नई दिल्लीः भारत का स्वदेशी हल्का लड़ाकू विमान (LCA) तेजस इन दिनों चर्चा में है. एयरो इंडिया 2025 के दौरान वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल एपी सिंह ने तेजस लड़ाकू विमानों की डिलीवरी में देरी को लेकर चिंता जताई थी. इसके बाद खबर आई कि पहले से ही 83 तेजस मार्क-1A का ऑर्डर दे चुकी वायुसेना 97 और फाइटर जेट की खरीद के लिए डील कर सकती है. वहीं रक्षा मंत्रालय ने भी तेजस के उत्पादन में तेजी लाने और प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी बढ़ाने के लिए एक हाई लेवल कमिटी बनाई है.
भारतीय वायुसेना को तेजस काफी रास आ रहा है. इसकी ताकत, पैनापन और तेजी इसे खास बनाती हैं. दिलचस्प बात यह है कि तेजस को पहले पुरानी मिग-21 फ्लीट को रिप्लेस करने के लिए एक हल्के, फुर्तीले फाइटर के रूप में डिजाइन किया गया था. इंडियन डिफेंस रिसर्च विंग (IDRW) की रिपोर्ट की मानें तो शुरुआती डिजाइन में तेजस के बाहरी पायलन को 44 किलो वजनी सोवियत R-60 मिसाइल के लिए बनाया गया था. ये मिसाइल छोटी दूरी की हवाई लड़ाइयों के लिए उपयुक्त थी, लेकिन 1990 के दशक तक यह पुरानी हो चुकी थी. इसलिए ये कई बदलावों से गुजरा और अब इतना शक्तिशाली लड़ाकू विमान बनकर उभरा है.
हाल ही में पूर्व वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल (रिटायर्ड) वीआर चौधरी ने तेजस के विकास में हुए अहम बदलावों के बारे में बात की थी. तेजस के बाहरी पायलन जहां मिसाइल लगती है, वह बदलाव किए गए. अगर ये बदलाव समय पर न किया जाता तो तेजस की युद्ध क्षमता सीमित हो सकती थी.
रिपोर्ट के मुताबिक, 1990 के दशक के अंत और 2000 के शुरुआती वर्षों में वायुसेना ने तेजस को मल्टी-रोल फाइटर बनाने की योजना बनाई. अब इसे केवल पास की लड़ाई (डॉगफाइट) के लिए नहीं, बल्कि लंबी दूरी की हवाई झड़पों (Beyond Visual Range - BVR) में भी सक्षम बनाना था. इसलिए तेजस के लिए 105 किलो वजनी R-73 मिसाइल चुनी गई. ये पहले से ज्यादा ताकतवर और सटीक थी.
चूंकि नई R-73 मिसाइल का वजन R-60 से दोगुना था. ऐसे में तेजस का बाहरी पायलन और विंग-रूट इतनी भारी मिसाइल झेलने में सक्षम नहीं थे. यही नहीं ये अन्य आधुनिक मिसाइलों का भार वहन करने में भी असमर्थ थे. इसलिए इसके विंग स्ट्रक्चर को मजबूत किया गया. विंग-रूट को दोबारा डिजाइन किया गया, ताकि ये भारी मिसाइलों के वजन और एरोडायनामिक दबाव को सह सके.
हालांकि, इस बदलाव से तेजस प्रोग्राम में न सिर्फ देरी हुई, बल्कि लागत भी बढ़ी, लेकिन यह जरूरी था. अगर तेजस अपने पुराने 44 किलो क्षमता वाले पायलन के साथ ही ऑपरेशन में जाता तो ये सिर्फ पुरानी R-60 जैसी हल्की मिसाइलें ही ले जा पाता. इससे वह पाकिस्तान के JF-17 और चीन के J-10 जैसे विमानों से मुकाबले में कमजोर पड़ सकता था.
इन बदलावों के बाद तेजस R-73 के साथ-साथ Derby BVR मिसाइल और लेजर-गाइडेड बम भी ले जाने में सक्षम है. तेजस Mk1 को 2013 में इनीशियल ऑपरेशनल क्लियरेंस (IOC) और 2019 में फुल ऑपरेशनल क्लियरेंस (FOC) मिला. वहीं बदलावों के बाद हल्का लड़ाकू विमान तेजस समय के साथ एक ताकतवर मल्टी-रोल फाइटर में बदल गया. Mk1 से Mk1A और फिर Mk2 तक तेजस का वजन 9 टन से बढ़कर 13.5 टन हो गया. इससे ये और भी घातक बना. वर्तमान में तेजस Mk1 और Mk1A आधुनिक मिसाइलों के साथ तैयार हैं, जबकि Mk2 इससे भी ज्यादा हथियार ले जाने में सक्षम होगा.
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