ये है भारत की पहली गन फैक्ट्री, नाम सुनते ही थर-थर कांपता है पाकिस्तान; जानिए गौरवशाली इतिहास
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ये है भारत की पहली गन फैक्ट्री, नाम सुनते ही थर-थर कांपता है पाकिस्तान; जानिए गौरवशाली इतिहास

First gun factory: भारत में गन फैक्ट्री की स्थापना करीब 230 साल पहले हुई थी. यह फैक्ट्री आज भी भारतीय सेना को आधुनिक हथियार मुहैया कराती है. यहां के हथियारों ने पाकिस्तान को हर बार घूटने टेकने पर मजबूर किया है. 

ये है भारत की पहली गन फैक्ट्री, नाम सुनते ही थर-थर कांपता है पाकिस्तान; जानिए गौरवशाली इतिहास

First gun factory in india: भारत दुनिया की सबसे ताकतवर सैन्य क्षमता वाला देश है. जो दुनिया की सबसे एडवांस हथियारों से लैस है. इन हथियारों में स्वदेशी और विदेशी दोनों तरह के हथियार शामिल हैं. जहां तक बात स्वदेशी हथियारों की है तो इसे बनाने की नींव सैकड़ों साल पहले पड़ चुकी थी. आसान भाषा में कहें तो आजादी से कई साल पहले ही देश में गन फैक्ट्री की स्थापना की जा चुकी थी. जो आज भी पूरी तरह फंक्शनल है. हम बात कर रहे हैं इशापुर राइफल फैक्ट्री की. यह भारत की पहली गन फैक्ट्री है, जिसकी स्थापना 18वीं सदी में अंग्रेजों द्वारा की गई थी. इस फैक्ट्री ने न केवल भारत में हथियार निर्माण की नींव रखी, बल्कि देश की सैन्य और औद्योगिक क्षमताओं को भी मजबूत किया. आइए, इसके इतिहास, महत्व और विकास की पूरी कहानी को सरल भाषा में समझते हैं.

  1. साल 1787 में बनी थी भारत की पहली गन फैक्ट्री
  2. भारतीय सेना के लिए बनाती है आधुनिक हथियार

कोलकाता में बनी पहली गन फैक्ट्री
18वीं सदी तक हथियार की दुनिया में कई तरह के प्रयोग किए जा रहे थे. हर जगह आधुनिक हथियार बनाने की होड़ मची हुई थी. ऐसे में भारत में भी 1787 में राइफल फैक्ट्री की स्थापना की गई. जिसकी नींव कोलकाता में हुगली नदी के किनारे ईशापुर में रखी गई. नाम दिया गया ‘इशापुर राइफल फैक्ट्री’. इसकी स्थापना ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा की गई. इसे कोसीपुर गन एंड शेल फैक्ट्री के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यह कोलकाता के कोसीपुर क्षेत्र में स्थित है.

इस फैक्ट्री की स्थापना का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश सेना के लिए बंदूकें, तोपें और गोला-बारूद का उत्पादन करना था. उस समय भारत में ब्रिटिश उपनिवेश बढ़ रहा था, और स्थानीय स्तर पर हथियार निर्माण की जरूरत महसूस हुई. शुरुआत में यह फैक्ट्री मस्केट बंदूकें और तोपों के लिए गोला-बारूद बनाने में केंद्रित थी. इसने ब्रिटिश सेना की क्षेत्रीय युद्धों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

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साल 1787 में स्थापना के समय, यह एक छोटा वर्कशॉप लेवल का कारखाना था. ब्रिटिश इंजीनियरों और स्थानीय कारीगरों ने मिलकर मस्केट और शुरुआती अग्नि हथियार बनाए. साल 1801 में इसे औपचारिक रूप से गन कैरिज एजेंसी के रूप में संगठित किया गया, और इसका ध्यान तोपों और राइफलों के निर्माण पर बढ़ा.

1857 क्रांति की बनी वजह
वक्त बदला तो देश में आजादी गूंज तेज हुई. 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, इशापुर फैक्ट्री ने ब्रिटिश सेना के लिए बड़े पैमाने पर हथियार और गोला-बारूद की आपूर्ति की. यह उस समय भारत में सबसे बड़ा हथियार निर्माण केंद्र था. इस दौर में, फैक्ट्री ने एनफील्ड राइफल (Pattern 1853 Enfield) का उत्पादन शुरू किया, जो ब्रिटिश सेना की प्रमुख राइफल थी. हालांकि, इसके कारतूसों (गाय और सुअर की चर्बी वाले कारतूस) ने 1857 के विद्रोह को भड़काने में भूमिका निभाई. यह अंग्रेजों की साजिश थी, जिसके बाद से देशभर में विरोध के स्वर तेज हुए.

आधुनिक हथियार बनाने में अव्वल
साल 1904 में फैक्ट्री को राइफल फैक्ट्री इशापुर (RFI) के रूप में पुनर्गठित किया गया. इसका फोकस आधुनिक राइफलों के निर्माण पर हुआ. वहीं, प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, इशापुर ने ब्रिटिश और सहयोगी सेनाओं के लिए ली-एनफील्ड राइफल्स (SMLE - Short Magazine Lee-Enfield) का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया. ये राइफल्स अपनी विश्वसनीयता और सटीकता के लिए प्रसिद्ध थीं.

भारतीय सेना के अधीन आई RFI
साल 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, यह फैक्ट्री भारतीय सेना के अधीन आई और स्वदेशी हथियार निर्माण का केंद्र बनी. ऐसे में स्वतंत्रता के बाद, इशापुर राइफल फैक्ट्री ने भारतीय सेना की जरूरतों के लिए स्वदेशी हथियारों के निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया. यह ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड (OFB), अब एडवांस्ड वेपन्स एंड इक्विपमेंट इंडिया लिमिटेड का हिस्सा बन गई.

भारत के लिए बनाए एडवांस हथियार
इशापुर गन फैक्ट्री में आजादी के बाद कई आधुनिक हथियार बने. जिनमें 1963 में इशापुर ने 7.62×51mm NATO कैलिबर की 2A1 राइफल विकसित की, जो भारत की पहली स्वदेशी राइफल थी. यह ली-एनफील्ड डिजाइन पर आधारित थी और भारतीय सेना की रीढ़ रही.

इसके बाद 1990 के दशक में, इशापुर ने INSAS (Indian Small Arms System) राइफल और LMG (Light Machine Gun) का उत्पादन शुरू किया. यह 5.56×45mm NATO कैलिबर की राइफल भारतीय सेना की प्राथमिक राइफल बनी. इसके अलावा फैक्ट्री ने 9mm पिस्टल, स्टेन गन, और गोला-बारूद जैसे विभिन्न हथियारों का भी निर्माण किया.

21वीं सदी में इशापुर ने आधुनिक तकनीकों को अपनाया, और नई राइफलों जैसे Ghatak राइफल (7.62mm) और AK-203 के निर्माण में योगदान दिया.

जंग के मैदान में भारत को दिलाई बढ़त
इशापुर राइफल फैक्ट्री के उत्पादन क्षमता वक्त के साथ बढ़ती गई. इस फैक्ट्री ने अपने इतिहास में लाखों राइफल्स और असंख्य गोला-बारूद का उत्पादन किया है. यह भारत की सैन्य आत्मनिर्भरता का प्रतीक है. इतना ही नहीं, फैक्ट्री ने स्थानीय कारीगरों को प्रशिक्षित किया, जिससे भारत में हथियार निर्माण की तकनीकी विशेषज्ञता विकसित हुई. युद्ध के दौरान भी इस फैक्ट्री ने अहम भूमिका निभाई है. भारत-पाक युद्ध (1965, 1971) और कारगिल युद्ध (1999) में इशापुर की राइफल्स और गोला-बारूद ने भारत को बड़ी जीत दिलाई.

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साल 2021 में ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड के पुनर्गठन के बाद, इशापुर राइफल फैक्ट्री अब एडवांस्ड वेपन्स एंड इक्विपमेंट इंडिया लिमिटेड के तहत काम करती है, जो एक सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी है. वर्तमान में, फैक्ट्री AK-203 राइफल्स (7.62×39mm) का उत्पादन कर रही है, जो रूस के साथ साझेदारी में भारतीय सेना के लिए बनाई जा रही है. यह राइफल धीरे-धीरे INSAS की जगह ले रही है.

इशापुर राइफल फैक्ट्री की वर्तमान स्थिति
ऐसे में आज यह फैक्ट्री भारत की ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘मेक इन इंडिया’ पहल का हिस्सा है, जो स्वदेशी रक्षा निर्माण को बढ़ावा देती है. बता दें, इशापुर राइफल फैक्ट्री भारत की सबसे पुरानी ऑपरेशनल इंडस्ट्रियल यूनिट्स में से एक है, जो लगातार 230 वर्षों से अधिक समय से देश के लिए हथियार बना रही है. इसे दुनिया की सबसे पुरानी राइफल निर्माण यूनिट्स में से एक माना जाता है.

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