Sam Manekshaw Iconic Quote About Gorkha Rifles: फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ, जिन्हें सैम बहादुर मानेकशॉ के नाम से भी जाना जाता है, वह भारतीय सशस्त्र बलों में एक अत्यधिक प्रतिष्ठित सैन्य अधिकारी के रूप में जाने जाते हैं. इन्हें ही पाकिस्तान से बांग्लादेश अलग करने का श्रेय जाता है.
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Sam Manekshaw Death Anniversary: एक ऐसा भारतीय अफसर जिससे पाकिस्तानी सैनिक छोड़ने की भीख मांगते रहे. वो अधिकारी जिसने समय आने पर तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी की भी ना सुनी. वह भारत का पहला फील्ड मार्शन जिसको कई गोलियां लगी, लेकिन तब भी डॉक्टरों से मजाक करता रहा. आज सैम मानेकशॉ, जिन्हें सैम बहादुर मानेकशॉ के नाम से भी जाना जाता है, उनकी पुण्यतिथि है.
सैम मानेकशॉ का 27 जून 2008 को 94 वर्ष की आयु में निमोनिया के कारण निधन हो गया था. सैम मानेकशॉ भारतीय सेना में सबसे उच्च पद फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत होने वाले पहले भारतीय सेना अधिकारी थे. वे 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान सेना प्रमुख थे और उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में सेवा से शुरू करके चार दशकों तक भारतीय सेना की सेवा की.
मानेकशॉ का जन्म 3 अप्रैल 1914 को एक पारसी परिवार में हुआ था. उनके पिता होर्मुसजी मानेकशॉ एक डॉक्टर थे और उनके भाई जेमी होर्मुसजी फ्रामजी मानेकशॉ भारतीय वायु सेना में सेवारत थे और एयर वाइस मार्शल रहे.
अपने करियर के दौरान सैम मानेकशॉ ने द्वितीय विश्व युद्ध से लेकर 1948 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध, 1962 में भारत-चीन युद्ध, 1965 और 1971 में भारत-पाक युद्ध जैसे पांच युद्ध लड़े.
सैम मानेकशॉ की विरासत पर 2023 में 'सैम बहादुर' नाम से एक बायोपिक बनाई गई थी. इसमें मुख्य भूमिका विक्की कौशल ने निभाई थी.
जाते-जाते किस रेजिमेंट के लिए बड़ी बात कह गई सैम बहादुर?
मानेकशॉ अपने मजबूत व्यक्तित्व के लिए जाने जाते थे और उन्हें एक कहावत के लिए जाना जाता है, 'अगर कोई आदमी कहता है कि उसे मरने से डर नहीं लगता, तो वह या तो झूठ बोल रहा है या फिर वह गोरखा है.' दरअसल वह गोरखा राइफल्स की बात कर रहे थे.
मानेकशॉ जो 1973 में फील्ड मार्शल के पद पर पहुंचे थे, वे भारत के पहले ऐसे व्यक्ति थे. उनका का सशस्त्र बलों में एक शानदार करियर रहा है. 1942 में जापान के साथ बर्मा युद्ध के दौरान उनकी पहली मुठभेड़ हुई. कई गोलियां लगने के बाद वे मौत के मुंह से बच निकले.
युद्ध के बाद, मानेकशॉ भारतीय स्वतंत्रता की दौड़ में सैन्य संचालन निदेशालय में जनरल स्टाफ ऑफिसर (ग्रेड 1) बन गए.
विभाजन के बाद मानेकशॉ को भारतीय सेना में शामिल होने या नव-निर्मित पाकिस्तानी सेना में जाने का विकल्प दिया गया था. उन्होंने भारत को चुना और गोरखा राइफल्स में ट्रांसफर हो गए, जहां उन्होंने बहादुर की उपाधि अर्जित की. बाद में उन्हें ब्रिगेडियर के पद पर पदोन्नत किया गया, जो सैन्य संचालन के पहले भारतीय निदेशक बने.
दिलचस्प बात यह है कि 1962 में उनका करियर लगभग पटरी से उतर गया था, जब उनके खिलाफ कई झूठे आरोपों पर कोर्ट ऑफ इंक्वायरी का सामना करना पड़ा था.उस समय मानेकशॉ वेलिंगटन में डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज के कमांडेंट के पद पर कार्यरत थे.
बहादुर नाम में कहां से जुड़ा?
'बहादुर' की उपाधि उन्हें 8 गोरखा राइफल्स द्वारा दी गई थी, जो उनसे बहुत स्नेह करते थे. उन्हें भारत के दो सर्वोच्च नागरिक सम्मान, पद्म भूषण (1968) और पद्म विभूषण (1972) प्राप्त हुए हैं.
1971 की जंग में पाकिस्तान को हराने और नया मुल्क बांग्लादेश बनाने का पूरा श्रेय सिर्फ एक ही शख्स को जाता है और वो सैम मानेकशॉ थे. वह इंदिरा गांधी की भी नहीं सुनते थे और 1971 के पाकिस्तान के साथ युद्ध में यह देखा गया, जहां उन्होंने समय लेकर हमला किया और 90,000 से ज्यादा पाकिस्तानी सैनिकों को युद्ध बंदी बना लिया गया और पाकिस्तान के आत्मसमर्पण और बांग्लादेश के एक नए राष्ट्र के रूप में जन्म के साथ इसका अंत हुआ. उन्हें बर्मा युद्ध के दौरान कई गोली लगी.
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