लंदन में अंग्रेजों की नाक में दम किया, फ्रांस में नजरबंद हुईं... जानें विदेश में भारतीय ध्वज फहराने वाली पहली भारतीय की कहानी
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लंदन में अंग्रेजों की नाक में दम किया, फ्रांस में नजरबंद हुईं... जानें विदेश में भारतीय ध्वज फहराने वाली पहली भारतीय की कहानी

भारत 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाएगा. इस दिन राष्ट्रपति झंडारोहण करते हैं लेकिन क्या आपको पता है कि विदेश में पहली बार भारत का झंडा किसने फहराया था? इसका जवाब है- भीकाजी कामा. उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ न सिर्फ आवाज उठाई थी बल्कि भारत का झंडा लहराकर दुनिया में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को पहचान भी दिलाई थी.

लंदन में अंग्रेजों की नाक में दम किया, फ्रांस में नजरबंद हुईं... जानें विदेश में भारतीय ध्वज फहराने वाली पहली भारतीय की कहानी

नई दिल्लीः भारत 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाएगा. इस दिन राष्ट्रपति झंडारोहण करते हैं लेकिन क्या आपको पता है कि विदेश में पहली बार भारत का झंडा किसने फहराया था? इसका जवाब है- भीकाजी कामा. उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ न सिर्फ आवाज उठाई थी बल्कि भारत का झंडा लहराकर दुनिया में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को पहचान भी दिलाई थी.

  1. 1907 में जर्मनी में फहराया था भारतीय झंडा
  2. भीकाजी कामा ने लंदन में की थीं कई सभाएं

1907 में जर्मनी में फहराया था भारतीय झंडा

भीकाजी कामा स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ-साथ महिला अधिकारों की समर्थक भी थीं. सितंबर 1861 में जन्मीं भीकाजी कामा ने साल 1907 में जर्मनी के स्टटगार्ट में अंतरराष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज लहराया था. तब भारत का झंडा हरा, केसरिया और लाल रंग की धारियों वाला होता था.

भीकाजी कामा ने लंदन में की थीं कई सभाएं

भीकाजी कामा को मैडम भीकाजी कामा के नाम से भी जाना जाता है. उन्होंने भारत की आजादी के लिए अंग्रेजों के खिलाफ आवाज बुलंद की थी. वह जब इंग्लैंड में थीं तब वह दादा भाई नौरोजी के संपर्क में आई थीं. इसके बाद वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ गईं और अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष तेज किया. वह वीर सावरकर, श्यामजी कृष्ण वर्मा और लाला हर दयाल जैसे भारतीय राष्ट्रवादियों के संपर्क में आईं. उन्होंने लंदन के हाइड पार्क में कई सभाएं संबोधित कीं.

फ्रांस में हुई थीं नजरबंद, लेकिन संपर्क रखा जारी

उन्हें ब्रिटिश विरोधी गतिविधियों के लिए फ्रांसीसी अधिकारियों ने तीन साल के लिए नजरबंद भी कर दिया था. तब प्रथम विश्व युद्ध चल रहा था और ब्रिटेन और फ्रांस सहयोगी थे. हालांकि नजरबंद होने के दौरान भी भीकाजी कामा ने भारतीय, मिस्र और आयरिश क्रांतिकारियों से संपर्क बनाए रखा था. साल 1935 में उन्हें भारत जाने की अनुमति मिली थी लेकिन अगस्त 1936 में उनकी मौत हो गई थी.

भीकाजी पटेल का जन्म अमीर पारसी परिवार में हुआ था. उन्होंने बॉम्बे से प्रारंभिक शिक्षा हासिल की थी. वह कम उम्र से ही राजनीतिक और स्वतंत्रता के मुद्दों पर दिलचस्पी लेती थीं. 1885 में उनकी शादी तब के मशहूर वकील रुस्तमजी कामा से कई गई थी. लेकिन बाद में उनके अपने पति से कई मुद्दों पर मतभेद हो गए थे. इसके बाद वह लंदन चली गई थीं.

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