दुनिया एक नए कोल्ड वॉर की दहलीज पर खड़ी है. रूस ने 38 साल पुरानी उस परमाणु संधि को फाड़ कर फेंक दिया, जिसने दुनिया को तबाही से बचा रखा था. एक तरफ है अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की धमकी तो दूसरी तरफ है व्लादमीर पुतिन का पलटवार. लेकिन इस महाशक्तिशाली टकराव के बीच पुतिन का एक कदम भारत के लिए संजीवनी कैसे बन गया? कैसे रूस के एक फैसले ने भारत को अमेरिकी दबाव से लड़ने की नई ताकत दे दी है. आज हम इस पूरी कहानी की परतें खोलेंगे. आपने खबर सुनी होगी कि रूस ने अमेरिका के साथ दशकों पुरानी आईएएफ न्यूक्लियर मिसाइल संधि से खुद को पूरी तरह अलग कर लिया है. आसान भाषा में इसका मतलब है कि रूस अब छोटी और मध्यम दूरी की परमाणु मिसाइलें बनाने और तैनात करने के लिए आजाद है. यह वो मिसाइलें हैं जो यूरोप के किसी भी शहर को मिनटों में निशाना बना सकती हैं और जिनकी वजह से 80 के दशक में दुनिया परमाणु युद्ध के मुहाने पर खड़ी थी, लेकिन सवाल यह है कि रूस ने अचानक यह कदम क्यों उठाया? रूस ने क्यों उठाया यह कदम? इसकी कहानी शुरू होती है अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की एक धमकी से.