Aurangzeb Ordered Demolition of Mosque: गोलकुंडा की जामा मस्जिद को औरंगजेब ने ढहाया था, लेकिन धार्मिक वजहों से नहीं बल्कि वहां छिपाए गए अवैध खजाने को जब्त करने के लिए. यह घटना उनके औरंगजेब के इंसाफ पसंद फितरत को बयां करती है, न कि कट्टरता को.
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Mughal King Aurangzeb Historical Orders: इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करना कोई नई बात नहीं है, लेकिन जब तथ्यों को इतना बदला जाए कि एक इंसाफ पसंद शासक को कट्टर और मंदिर-मस्जिद का दुश्मन बना दिया जाए, तो सवाल उठना लाजमी है. मुगल बादशाह औरंगजेब को अक्सर दक्षिणपंथी ताकतों के जरिये "मंदिरों के विध्वंसक" के रूप में पेश किया जाता है, लेकिन इतिहास के कुछ तथ्य ऐसे भी हैं, जो उनकी इंसाफ पसंदी की मिसाल पेश करते हैं.
ऐसा ही एक वाकया है गोलकुंडा की जामा मस्जिद से जुड़ा हुआ है, जिसको बादशाह औरंगजेब के आदेश पर ढहा दिया गया था, जो औरंगजेब की सख्त लेकिन ईमानदार शासन प्रणाली को दर्शाता है, ना कि किसी धार्मिक विद्वेष को. औरंगजेब भारत पर सबसे लंबे समय तक शासन करने वाला शासकों में से एक हैं.
औरंगजेब का तानाशाह नाम का एक अधिकारी बहुत चालाक था, जिसे गोलकुंडा का प्रशासक बनाया गया था. उसने दिल्ली के सम्राट को राजस्व न देने का षड्यंत्र रचा. उसने भारी मात्रा में टैक्स वसूला, लेकिन वह पैसा दिल्ली नहीं भेजा गया. यह रकम कुछ ही सालों में करोड़ों रूपयों में पहुंच गई. इस चोरी को छुपाने के लिए तानाशाह ने वह पूरा खजाना जमीन के नीचे गाड़ दिया और उसके ऊपर भव्य जामा मस्जिद का निर्माण करवा दिया ताकि कोई शक भी न कर सके.
हालांकि, तानाशाह के इस चोरी और अवाम के जरिये दिए गए टैक्स की रकम में खयानत का मुगल सम्राट औरंगजेब को भनक लग गई, तो उन्होंने इस मस्जिद को ढहाने का आदेश जारी कर दिया और जमीन के नीचे से मिला खजाना जब्त कर लिया. पर इस धन को औरंगजेब ने अपने निजी फायदे के लिए इस्तेमाल करने के बजाय, उन्होंने इसे अवाम पर और जनकल्याण के कामों में खर्च किया.
यह घटना न सिर्फ औरंगजेब की धार्मिक निरपेक्षता को दिखाती है, बल्कि यह भी स्पष्ट करती है कि वह मस्जिद और मंदिर के बीच कोई भेदभाव नहीं करते थे. उनके लिए इंसाफ और शासकीय ईमानदारी सबसे पहले थी.आज जब दक्षिणपंथी इतिहासकार और कुछ हिंदूवादी संगठन अपने राजनैतिक और वैचारिक एजेंडे को साधने के लिए इतिहास को एकपक्षीय रूप से परोसते हैं, तब ऐसे ऐतिहासिक उदाहरणों को जानना जरूरी हो जाता है.
इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि उसे तथ्यों के बजाय भावनाओं से लिखा जा रहा है. अगर कोई शख्स सच्चाई को उजागर करने की कोशिश करता है, तो उसे देशद्रोही, वामपंथी, या मुगल प्रेमी जैसे तमगों से नवाजा जाने लगता है. जबकि असली सवाल यह होना चाहिए कि क्या हम इतिहास से सीखना चाहते हैं या सिर्फ उसे अपने एजेंडे के अनुसार दोहराना? सरकार ने भी अब एनसीईआरटी के सिलेबस से मुगलकाल को हटाने का फैसला किया है.