Urdu के विरोधियों को सुप्रीम कोर्ट का जोरदार तमाचा; शर्म से मुंह छिपाना भी होगा मुश्किल!
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Urdu के विरोधियों को सुप्रीम कोर्ट का जोरदार तमाचा; शर्म से मुंह छिपाना भी होगा मुश्किल!

SC on Urdu: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक बड़ा आदेश दिया है. ये आदेश उर्दू विरोधियों के मुंह पर ज़ोरदार तमाचे के तौर पर देखा जा रहा है. एससी का कहना है कि उर्दू को एलियन भाषा नहीं है.

Urdu के विरोधियों को सुप्रीम कोर्ट का जोरदार तमाचा; शर्म से मुंह छिपाना भी होगा मुश्किल!

SC on Urdu: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को महाराष्ट्र के अकोला जिले के पातुर कस्बे में एक नगरपालिका के साइनबोर्ड पर उर्दू के इस्तेमाल को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दिया है. अदालत ने कहा कि उर्दू के प्रति पूर्वाग्रह “इस गलत धारणा से उपजा है कि उर्दू भारत के लिए विदेशी भाषा है”.

सुप्रीम कोर्ट ने उर्दू पर दिया आदेश

जस्टिस सुधांशु धूलिया और के विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा कि उर्दू का जन्म भारत में हुआ है और यह मराठी और हिंदी की तरह ही एक इंडो-आर्यन भाषा है. अदालत ने कहा, "उर्दू हिंदुस्तान में अलग-अलग सांस्कृतिक परिवेश से जुड़े लोगों की ज़रूरत की वजह से डेवलप हुई और फली-फूली, जो एक दूसरे के साथ ख्यालात का इजहार करना चाहते थे और बातचीत का इज़हार करना चाहते थे.

पूर्व काउंसलर ने दायर की थी याचिका

अदालत ने साबिक काउंसलर वर्षाताई संजय बागड़े की पिटीशन को खारिज कर दिया है. दरअसल उन्होंने पातुर नगर परिषद की नई इमारत के साइनबोर्ड पर उर्दू के इस्तेमाल को चुनौती दी थी. बागड़े इससे पहले बॉम्बे हाई कोर्ट पहुंचे थे. जिसने 2021 में यह भी फैसला सुनाया था कि महाराष्ट्र स्थानीय प्राधिकरण आधिकारिक भाषा अधिनियम, 2022 या किसी अन्य कानूनी प्रावधान के तहत उर्दू का इस्तेमाल गलत नहीं है.

भाषा कोई धर्म नहीं है

न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने इस बात पर रोशनी डाली कि “भाषा धर्म नहीं है” बल्कि “संस्कृति” है. धूलिया ने अपने फैसले की शुरुआत एंग्लो-अल्जीरियाई लेखक मौलूद बेन्ज़ादी के एक कथन से की: "जब आप कोई जुबान सीखते हैं, तो आप सिर्फ़ एक नई जुबान बोलना और लिखना ही नहीं सीखते. आप खुले विचारों वाले, उदार, सहिष्णु, दयालु और सभी मानव जाति के बारे में सोचने वाला होना भी सीखते हैं."

धर्म के आधार पर भाषा का बंटवारा

अदालत ने कहा, "कोलोनियल पावर ने धर्म के आधार पर दो भाषाओं को बांटकर इसका फायदा उठाया. हिंदी को अब हिंदुओं की भाषा और उर्दू को मुसलमानों की भाषा समझा जाने लगा है.

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