Sambhal Violence Case: जफर अली ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि उन्हें झूठे केस में फंसाया गया है. उनके बड़े भाई ताहिर अली ने आरोप लगाया कि पुलिस ने जानबूझकर उन्हें जेल भेज दिया, ताकि न्यायिक जांच समिति उनकी गवाही न ले सके.
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Sambhal Violence Case: संभल हिंसा मामले में शाही जामा मस्जिद के सदर जफर अली को पुलिस ने 23 मार्च को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था, जिसके बाद उन्होंने अंतरिम जमानत के लिए याचिका दायर की थी, लेकिन कोर्ट ने जमानत देने से इनकार कर दिया था. एक बार फिर जफर अली ने कोर्ट में जमानत याचिका दायर की, लेकिन कोर्ट ने जफर अली की जमानत याचिका पर सुनवाई 4 अप्रैल तक टाल दी है. कोर्ट में केस डायरी उपलब्ध न होने की वजह से यह फैसला लिया गया है.
अदालत ने उनकी अंतरिम (अस्थायी) जमानत देने से इनकार कर दिया और अगली सुनवाई के लिए 2 अप्रैल की तारीख तय की थी. चंदौसी के एडीजे-2 (ADJ-II) न्यायाधीश निर्भय नारायण राय की अदालत में 2 अप्रैल को सुनवाई हुई. इस दौरान जफर अली के वकील ने तर्क दिया कि केस डायरी उपलब्ध नहीं है, इसलिए उन्हें अंतरिम जमानत दी जाए.
कोर्ट ने खारिज की जमानत याचिका
सरकारी वकील हरिओम प्रकाश सैनी ने अदालत में दलील दी कि उनकी पहले ही अंतरिम जमानत की याचिका खारिज हो चुकी है, इसलिए इसे फिर से मंजूर नहीं किया जाना चाहिए. अदालत ने इस तर्क को स्वीकार करते हुए अंतरिम जमानत याचिका खारिज कर दी और 4 अप्रैल को केस डायरी पेश करने का निर्देश दिया.
क्या हैं आरोप?
जफर अली पर 24 नवंबर 2023 को संभल में हुई हिंसा को लेकर दंगा और सरकारी काम में बाधा डालने समेत कई गंभीर धाराओं में मामला दर्ज किया गया है. भारतीय दंड संहिता (बीएनएस) की धाराएं- 191 (2) और 191 (3)- दंगा भड़काने का आरोप, 190- अवैध सभा में शामिल होने का आरोप, 221- सरकारी काम में बाधा डालना, 125- दूसरों की जान को खतरे में डालना, 132- सरकारी अधिकारी पर हमला करना, 196- धर्म, भाषा, जन्म स्थान आदि के आधार पर नफरत फैलाना, 230 और 231- झूठे सबूत गढ़ने और फंसाने का आरोप, ये तमाम आरोप लगाए गए हैं. इसके अलावा सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने से जुड़े कानून के तहत भी उन पर केस दर्ज किया गया है.