India Pakistan Tension: पाकिस्तान की वित्तीय हालत किसी से छिपी नहीं है. ऐसे में यह सबसे बड़ा सवाल है कि क्या आईएमएफ के 19500 करोड़ रुपये के पैकेज से पाकिस्तान की हालत सुधर पाएगी. इस मदद से भी पड़ोसी मुल्क की हालत सुधरने की उम्मीद कम ही है.
Trending Photos
Pakistan Economic Crisis: पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति लंबे समय से खराब बनी हुई है. भारत के साथ रिश्ते बिगड़ने से पड़ोसी मुल्क की वित्तीय हालत को झटका ही लगा है. भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे तनाव के दौरान 9 मई को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने पाकिस्तान के आर्थिक सुधार कार्यक्रम की पहली समीक्षा को पूरा करते हुए 2.3 बिलियन डॉलर (करीब 19,500 करोड़ रुपये) के फाइनेंशियल पैकेज के लिए मंजूरी दे दी. इसमें से एक बिलियन डॉलर (करीब 8,500 करोड़ रुपये) जल्द जारी किया जाएगा.
पड़ोसी मुल्क की हालत सुधरने की उम्मीद कम
इसके अलावा 1.3 बिलियन डॉलर (करीब 11,000 करोड़ रुपये) रेजिलिएंस एंड सस्टेनेबिलिटी फैसिलिटी (RSF) के तहत दिया जाएगा. पाकिस्तान की वित्तीय हालत किसी से छिपी नहीं है. ऐसे में यह सबसे बड़ा सवाल है कि क्या आईएमएफ के 19500 करोड़ रुपये के पैकेज से पाकिस्तान की हालत सुधर पाएगी. इस मदद से भी पड़ोसी मुल्क की हालत सुधरने की उम्मीद कम ही है. यही कारण है कि भारत ने आईएफएम के वोटिंग प्रोसेस में हिस्सा नहीं लिया और अपना कड़ा विरोध जताया. आइए जानते हैं वो कारण, जिसकी वजह से पाकिस्तान की हालत नहीं सुधरने वाली.
बार-बार कर्ज लेने की आदत
पाकिस्तान 1950 से आईएमएफ का मेंबर है. हर बार वह कर्ज लेकर अपनी आर्थिक समस्याओं को तुरंत हल करने की कोशिश करता है. लेकिन लंबे समय तक सुधार नहीं कर पाता. 1989 से 2024 तक के 35 सालों उसने आईएमएफ से कई बार कर्ज लिया है. धीरे- धीरे पाकिस्तान पर आईएमएफ का कर्ज काफी बढ़ गया है. जिससे उसे चुकाना पाकिस्तान के लिए टेढ़ी खीर होता जा रहा है.
इकोनॉमिक मिस मैनेजमेंट
पाकिस्तान की सरकारों ने लगातार आर्थिक नीतियों में गलतियां की हैं. तेजी से बढ़ती जनसंख्या, कम बचत दर और शिक्षा व स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में कम निवेश ने स्थिति को और बिगाड़ दिया है. एनर्जी सेक्टर की अक्षमता, भारी सब्सिडी और बिजली व ईंधन की कीमतें बढ़ाने की मजबूरी ने जनता पर बोझ डाला है. इसके अलावा फिक्सल डेफिसिट और कम टैक्स कलेक्शन ने फाइनेंशियल स्टेबिलिटी को कमजोर किया है.
पाकिस्तान की मंदी मुख्य कारण
पिछले कुछ समय से पाकिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार में तेजी आई है. लेकिन इस सबके बीच भी पाकिस्तान की आर्थिक संभावनाओं पर चुनौतियां हावी हैं. पिछले एक दशक में ही देखें तो साउथ-नॉर्थ एशिया के उभरते मार्केट और विकासशील देशों (EMDC) के मुकाबले पाकिस्तान के लोगों के लाइफस्टाइल में गिरावट आई है. फिजिकल पॉलिसी की कमजोरियों और बार-बार मंदी ने पाकिस्तान के लिये बाहरी फाइनेंसिंग की जरूरतों को बढ़ा दिया है और बफर्स को कम कर दिया है. ऐसे में पाकिस्तान को ठोस पॉलिसी और सुधारों को मजबूत बनाए रखने की जरूरत है.
सैन्य खर्च और आतंकवाद का समर्थन
पाकिस्तान के आर्थिक हालात के मुकाबले उसका सैन्य बजट काफी ज्यादा है. भारत की तरफ से आईएमएफ की बैठक में भी यह चिंता जताई गई थी कि पड़ोसी मुल्क कर्ज के पैसा का इस्तेमाल आतंकवाद और सैन्य गतिविधियों पर कर सकता है. भारत ने बताया कि वहां की सेना का इकोनॉमी पर काफी कंट्रोल है. बयान में यह भी कहा गया कि वहां नागरिक सरकार है, लेकिन वहां की सेना आर्थिक फैसलों में दखल देती है, इससे नीतियों, सुधारों और पारदर्शिता पर सवाल उठते हैं.
दूसरे देशों पर निर्भरता
पाकिस्तान की इकोनॉमी आयात पर काफी निर्भर है, यही कारण है कि उसका विदेशी मुद्रा भंडार बाकी देशों के मुकाबले काफी कम रहता है. मई 2025 में पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार 15.58 बिलियन डॉलर का था, जो लंबे समय के इम्पोर्ट के लिए नाकाफी है. इसके अलावा वह चीन, सऊदी अरब और यूएई जैसे देशों से भी कर्ज लेता है, जिससे उसकी निर्भरता बढ़ रही है. पिछले दो दशक का आंकड़ा देखें तो ग्लोबल ट्रेड में पाकिस्तान काफी कमजोर रहा है और उसकी इकोनॉमिक ग्रोथ कम हो गई है.
जनसंख्या में बढ़ोतरी और संसाधनों पर दबाव
पाकिस्तान की जनसंख्या तेजी से बढ़ने के कारण शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी सुविधाओं पर भारी दबाव पड़ रहा है. इससे सरकार की वित्तीय स्थिति कमजोर हो रही है. पाक सरकार के लिए डेवलपमेंट प्रोजेक्ट पर निवेश करना काफी मुश्किल हो रहा है. हाल ही में भारत और पाकिस्तान के रिश्ते बिगड़ने से पाकिस्तान की इकोनॉमी पर निगेटिव असर पड़ा है. इससे निवेशकों का विश्वास भी डगमगा रहा है.