Movie Review: अनुराग बसु की नई रोमांटिक ड्रामा फिल्म ‘मेट्रो .. इन दिनों’ आज शुक्रवार, 4 जून को सिनेमाघरों में दस्तक दे चुकी है. अगर आप भी इस फिल्म को देखना का प्लान कर रहे हैं तो उससे पहले एक बार इसके रिव्यू पर नजर डाल लें, जो आपके बहुत काम आएगा.
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फिल्म: ‘मेट्रो .. इन दिनों’
निर्देशक: अनुराग बसु
स्टार कास्ट: पंकज त्रिपाठी, आदित्य रॉय कपूर, अनुपम खेर, नीना गुप्ता, कोंकणा सेन शर्मा, सारा अली खान, फातिमा सना शेख, अली फजल और सास्वत चटर्जी आदि
फिल्म को 3 स्टार
Movie Review: जब 2007 में ‘मर्डर’ और ‘गैंगस्टर’ जैसी कामयाब फिल्मों के बाद अनुराग बसु ने ‘लाइफ इन ए मेट्रो’ बनाई थी तब उसे विली वाइल्डर की रोमांटिक कॉमेडी फ़िल्म ‘अपार्टमेंट’ का रीमेक बताया गया था. अब ‘ मेट्रो .. इन दिनों’ को लेकर भी लग रहा है कि उसका नया संस्करण ही है ये भी. किरदार ही बदले हैं उनकी कहानियाँ तो वैसी ही हैं, लव सेक्स एंड धोखा के साथ साथ जिमेदारी से भागने वाली, जो नहीं मिला उसको फिर से पाने की ख्वाहिश वाली.
ऐसे में बहुत नया सोचने वालों के लिए तो नहीं ये मूवी लेकिन आप मूवी में घुस गये तो निराश होकर भी वापस नहीं आयेंगे.‘लाइफ इन ए मेट्रो’ के कई किरदारों के नाम इस मूवी में भी हैं जैसे मोंटी, आकाश, श्रुति, शिवानी आदि. उसी की तरह कई लोगों की कहानियाँ एक साथ चल रही हैं, एक दंपति मोंटी (पंकज त्रिपाठी) और काजोल (कोंकणा सेन शर्मा) की कहानी, मोंटी 16~17 साल की शादी के बाद डेटिंग ऐप पर क़िस्मत आज़माता रहता है तो बीवी भी पीछे पीछे पहुँच जाती है.
क्या है फिल्म की कहानी?
काजोल की मां (नीना गुप्ता) अपने क्लास फेलो परिमल (अनुपम खेर) को नहीं भूल पाती तो काजोल की बहन चुमकी (सारा अली ख़ान) रिश्ते में होने के बावजूद पार्थं (आदित्य रॉय कपूर) की तरफ़ आकर्षित होने लगती है. तो वहीं पार्थ की दोस्त श्रुति (फ़ातिमा सना शेख़) अपने पति आकाश (अली फ़ज़ल) के लिए अपना करियर क़ुर्बान करके भी परेशान है, जो आईटी की नौकरी छोड़ म्यूजिशियन बनने चला जाता है. वह भी एक बच्चे के सिंगल पिता की तरफ़ झुकने लगती है. यहाँ तक तो ठीक था, इस मूवी को पहली वाली से अलग रखने के लिए मोंटी काजोल की 15 साल की बेटी का कन्फ़्यूशन भी जोड़ दिया गया है, जिसे समझ नहीं आता कि उसे लड़के पसंद हैं या लड़कियाँ. लेकिन सबसे दिलचस्प है कि चूँकि कहानी हर उम्र से किरदार से जुड़ी हैं तो जार उम्र का व्यक्ति इसे ख़ुद से जोड़ सकता है.
अलग-अलग देशों में घूमती है कहानी
कहानी पिछली बार की तरह केवल मुंबई में ही नहीं बल्कि दिल्ली, बेंगलुरु और गोवा में भी जाती है. बाक़ी सब पिछले जैसा है, पूरी मूवी में किरदारों के आसपास प्रीतम, पोपोंन और राघव चैतन्य का बैंड परफॉर्म करता नज़र आता है, लेकिन हमारी अधूरी कहानी जैसा झकझोरने वाले कोई गीत नहीं था, हाँ कुछ मशहूर शेर जैसे तेरी जुल्फ के सर होने तक और तुम्हारे शहर का मौसम बहुत सुहाना लगता है, गीतों के रूप में नज़र आयेंगे. और सबसे सटीक जगह पर फ़िल्माया गया है “तुमको खोकर फिर से पाने की जो आदत सी हो गई है मुझे ..”, यानी हैप्पी एंडिंग के वक़्त. वैसे ‘इश्क़ है या ठरक’ गीत भी बेहतर बन पड़ा है.
फिल्म में नजर आने वाले किरदार
मूवी के सारे किरदार इतने कमजोर होना भले ही नहीं जमता जो फ़ौरन दूसरा साथी ढूंढ लेते हैं. कमिटमेंट शब्द से मानो किसी का कोई लेना देना नहीं, लेकिन फ़िल्म को बोझिल होने से बचाने के लिए फोटोसिंथेसिस जैसे दिलचस्प डॉयलॉग्स और कौन है बड़ा भूतिया.. मोंटू सिसोदिया जैसे कॉमिक सींस मूवी में डाले गये हैं. और चूँकि सारे कलाकार एक से बढ़कर एक हैं सो किरदारों में घुस गये हैं. हालाँकि ‘जग्गा जासूस’ जैसी बेहतरीन मूवी में में अनुराग बसु की गायकी अंदाज में डायलॉग डिलीवरी की आलोचना हुई थी.
एंटरटेनमेंट के लिए एक बार जरूर देखें
बावजूद इसके इस मूवी में भी कई बार बातचीत के अंदाज़ में गाने गाये गये हैं. जो बहुतों को पसन्द ना भी आएँ तो कोई चौंकने वाली बात नहीं होगी, चौंकने वाली बात तो तब लगती है जब अनुपम खेर अपने बेटे और पत्नी की मौत की खबर गाकर बताते हैं. बावजूद इन सबके कि ये मूवी कहीं से भी यादगार मूवीज़ में शामिल नहीं होगी, एंटरटेनमेंट के लिहाज़ से मूवी उतनी बुरी नहीं है, इमोशंस, कॉमेडी, ठरकपन और म्यूजिक का ये कॉकटेल आपके लिये पैसा वसूल तो है. यूँ भी अनुराग बसु के साथ ख़ास बात ये हैं कि वो बिना खर्चे की परवाह के दिल से मूवी बनाते हैं.