Supreme Court Of India: जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस रविकुमार की बेंच ने साल 2023 में जांच एजेंसियों की उस प्रथा कि निंदा की थी, जिसमें वे जांच की प्रक्रिया पूरी होने से पहले ही आरोपपत्र दायर कर देती हैं.
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CJI Gawai: भारत के चीफ जस्टिस बीआर गवई ने हाल ही में कहा कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बाकी जजों से श्रेष्ठ नहीं होते. वहीं उनके पास भी बाकी जजों जितने ही न्यायिक अधिकार होते हैं. CJI की यह टिप्पणी प्रवर्तन निदेशालय की एक याचिका की सुनवाई के दौरान आई है. एजेंसी की ओर से 26 अप्रैल साल 2023 को दिए गए रितु छाबड़िया बनाम भारत संघ मुद्दे के निर्णय को वापस लेने का अनुरोध किया था.
जांच पूरी होने से पहले आरोपपत्र दायर
बता दें कि अप्रैल साल 2023 में जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस रविकुमार की बेंच ने जांच एजेंसी की जांच पूरी होने से पहले आरोपपत्र दायर करने की प्रक्रिया की निंदा की थी. ताकि इसके जरिए आरोपी को डिफॉल्ट बेल न मिल पाए. फैसले में कहा गया था कि अगर आरोपपत्र अधूरा है और जांच जारी तो आरोपी का डिफॉल्ट बेल का अधिकार खत्म नहीं होगा. कानून के मुताबिक लोवर कोर्ट में युनवाई योग्य मामलों में गिरफ्तारी के 60 दिनों के अंदर और सेशन कोर्ट में योग्य मामलों में 90 दिनों के अंदर आरोपपत्र दायर होना चाहिए. नहीं तो आरोपी डिफॉल्ट बेल के अंदर आता है.
SC ने फैसले पर लगाई रोक
ED ने फैसले के तुरंत बाद तत्कालीन CJI DY चंद्रचूड़ की बेंच को बताया कि इस फैसले के आधार पर दिल्ली हाईकोर्ट की ओर से एक आरोपी को जमानत दी गई है. देशभर में इसका असर पड़ेगा. 12 मई साल 2023 को SC ने इस फैसले पर अस्थायी रोक लगा दी. मंगलवार 12 अगस्त 2025 को CJI गवई ने सुनवाई के दौरान कहा,' जब सुप्रीम कोर्ट की 2 जजों की बेंच कोई राहत देती है तो क्या समान स्तर की कोई दूसरी बेंच उस फैसले पर अपील सुन सकती है? वह भी इसलिए क्योंकि वह पीठ कोर्ट नंबर 1 में बैठती है. न्यायिक मर्यादा और अनुशासन का पालन होना चाहिए.'बता दें कि चीफ जस्टिस बेंच कोर्ट नंबर 1 में बैठती है. उन्होंने कहा,' भारत के चीफ जस्टिस बाकी जजों से श्रेष्ठ नहीं हैं. उनके पास अन्य जजों जितने ही न्यायिक अधिकार हैं.
तुषार मेहता के आरोप
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का आरोप है कि रितु छाबड़िया केस में कोर्ट के अधिकार का गलत उपयोग हुआ है. उनका कहना है कि मूल याचिका केवल जेल में बंद पति को घर का खाना देने की परमिशन के लिए था, लेकिन बाद में डिफॉल्ट बेल की अर्जी भी उसमें जोड़ दी गई. मेहता के मुताबिक 2 जजों की बेंच ने कहा कि अगर CRPC के सेक्शन 173 (8) के तहत अधूरा आरोपत्र दायर होता है तो डिफॉल्ट बेल मिलेगी. जबकि यह कई बड़े फैसलों के विपरीत है. इसके चलते देशभर में आरोपी इसी आधार पर डिफॉल्ट बेल की मांग करने लगे. सुप्रीम कोर्ट ने आखिर में मामले को 3 जजों की बेंच के सामने लिस्ट करने का फैसला किया है, ताकि इस कानूनी मसले को स्पष्ट बनाया जा सके.
FAQ
सुप्रीम कोर्ट ने जांच एजेंसियों की किस प्रथा की निंदा की है?
सुप्रीम कोर्ट ने जांच एजेंसियों की उस प्रथा की निंदा की है, जिसमें वे जांच की प्रक्रिया पूरी होने से पहले ही आरोपपत्र दायर कर देती हैं. इससे आरोपी को डिफॉल्ट बेल मिलने की संभावना हो सकती है.
CJI बीआर गवई ने क्या कहा है?
CJI बीआर गवई ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बाकी जजों से श्रेष्ठ नहीं होते हैं और उनके पास भी बाकी जजों जितने ही न्यायिक अधिकार होते हैं.
डिफॉल्ट बेल क्या है?
डिफॉल्ट बेल एक प्रकार की जमानत है, जो तब मिलती है जब जांच एजेंसी निर्धारित समय सीमा के अंदर आरोपपत्र दायर नहीं करती है. आमतौर पर लोवर कोर्ट में 60 दिनों और सेशन कोर्ट में 90 दिनों के भीतर आरोपपत्र दायर होना चाहिए.