Jatiya Janganana: बिहार सरकार द्वारा जारी जातीय जनगणना रिपोर्ट के अनुसार, यादव जाति राज्य की सबसे बड़ी जाति के रूप में सामने आई है. यादवों की जनसंख्या 1.63 करोड़ से अधिक है, जो राज्य की कुल आबादी का 14.26 प्रतिशत है. जनगणना में यह भी सामने आया है कि EBC और OBC वर्गों की संयुक्त हिस्सेदारी 63 प्रतिशत से अधिक है.
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Bihar Jatiya Janganana: 1.5 साल पहले जारी बिहार की जातीय जनगणना रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ था कि राज्य की सबसे बड़ी आबादी अति पिछड़ा वर्ग (EBC) की है, जो कि 36.01% है. इसके बाद पिछड़ा वर्ग (OBC) की आबादी 27.12% . जनगणना रिपोर्ट में सामने आया है कि बिहार में OBC और EBC मिलाकर कुल 63% आबादी पिछड़े वर्ग से आती है. अनुसूचित जातियों की संख्या 19.65% और अनुसूचित जनजातियों की सिर्फ 1.68% है. अगड़ी जातियों की हिस्सेदारी 15.52% है. अब आइए जानते हैं कि बिहार की जातीय जनगणना रिपोर्ट के अनुसार राज्य में कौन सी जाति सबसे अधिक आबादी वाली है.
बिहार की जातीय जनगणना रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में सबसे बड़ी जाति यादव है, जिसकी जनसंख्या 1.63 करोड़ (14.26%) से अधिक है. राज्य की कुल आबादी लगभग 13 करोड़ 7 लाख है, जिसमें यादव समाज की हिस्सेदारी सबसे ऊपर है. जनगणना आंकड़ों में स्पष्ट किया गया है कि यादव जाति इकलौती ऐसी जाति है जिसकी जनसंख्या 10 प्रतिशत से अधिक है. यह वर्ग सामाजिक रूप से पिछड़ा वर्ग (OBC) में शामिल है और इसकी बड़ी आबादी राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है.
जातीय समूहों में EBC की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा
जातीय समूह के अनुसार देखा जाए तो अति पिछड़ा वर्ग (EBC) की 112 जातियों की कुल आबादी 4.70 करोड़ (36.01%) है, जो किसी भी अन्य जातीय समूह से अधिक है. इसके बाद पिछड़ा वर्ग (OBC) की 30 जातियों की आबादी 3.54 करोड़ (27.12%) है.
अनुसूचित जाति और अगड़ी जातियां तीसरे-चौथे स्थान पर
अनुसूचित जातियों (SC) की कुल 22 जातियों की आबादी 2.56 करोड़ (19.65%) है. वहीं, अगड़ी जातियों (सवर्ण) की जनसंख्या 2.02 करोड़ (15.52%) दर्ज की गई है. इनमें ब्राह्मण, राजपूत, भूमिहार, कायस्थ जैसे वर्ग शामिल हैं.
अनुसूचित जनजातियों की हिस्सेदारी सबसे कम
बिहार में अनुसूचित जनजातियों (ST) की 32 जातियों की आबादी 21.99 लाख (1.68%) है, जो राज्य की कुल जनसंख्या में सबसे कम है.
अन्य प्रमुख जातियों की स्थिति
यादव जाति के बाद प्रमुख जातियों में कुशवाहा (4.27%), कुर्मी (2.87%), और धानुक (2.13%) हैं. ये सभी जातियां पिछड़ा वर्ग में आती हैं और सामाजिक-आर्थिक दृष्टि से राज्य की राजनीति और योजनाओं में अहम भूमिका निभाती हैं.
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