SIA Raid: उस समय सरला भट पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने कश्मीरी पंडितों को घाटी छोड़ने और सरकारी नौकरी छोड़ने के लिए आतंकियों के निर्देशों को नहीं माना था. उनके शरीर के पास मिले एक नोट में उन्हें 'पुलिस मुखबिर' बताया गया था.
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Jammu-Kashmir News: जम्मू कश्मीर पुलिस की राज्य जांच एजेंसी SIA ने मंगलवार तड़के श्रीनगर में आठ जगहों पर एक साथ छापेमारी कर एक बड़ा अभियान चलाया. ये छापे 35 साल पुराने उस मामले से जुड़े हैं जिसमें अनंतनाग की कश्मीरी पंडित नर्स सरला भट के साथ सामूहिक बलात्कार के बाद बेरहमी से हत्या कर दी गई थी. इस कार्रवाई में SIA को स्थानीय पुलिस और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल CRPF का सहयोग मिला.
कई दिनों तक उन्हें यातनाएं दी गईं..
असल में सरला भट श्रीनगर के सौरा स्थित शेर ए कश्मीर आयुर्विज्ञान संस्थान SKIMS में नर्स थीं. 14 अप्रैल 1990 को JKLF से जुड़े आतंकवादियों ने उन्हें हब्बा खातून छात्रावास से अगवा किया था. कई दिनों तक उन्हें यातनाएं दी गईं और 19 अप्रैल को उनका क्षत विक्षत शव श्रीनगर के मल्लाबाग इलाके में मिला. उनके शरीर के पास मिले एक नोट में उन्हें 'पुलिस मुखबिर' बताया गया था.
कश्मीरी पंडितों के खिलाफ हिंसा..
उस समय सरला भट पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने कश्मीरी पंडितों को घाटी छोड़ने और सरकारी नौकरी छोड़ने के लिए आतंकियों के निर्देशों की अवहेलना की थी. माना जाता है कि उनकी हत्या कश्मीरी पंडितों के खिलाफ हिंसा और जबरन विस्थापन की व्यापक साजिश का हिस्सा थी. कथित तौर पर इस अपराध की योजना प्रतिबंधित संगठन जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट JKLF ने बनाई थी.
यह केस SIA को सौंपा गया..
मामला शुरू में निगीन पुलिस स्टेशन में दर्ज हुआ था लेकिन अपराधियों की पहचान नहीं हो पाई. पिछले साल यह केस SIA को सौंपा गया. ताकि 1990 के दशक के अनसुलझे आतंकवादी मामलों की फिर से जांच हो सके और पीड़ितों को न्याय दिलाया जा सके. इस बार SIA की छापेमारी JKLF से जुड़े पूर्व सदस्यों के घरों पर केंद्रित रही. इसमें JKLF प्रमुख यासीन मलिक का आवास और संगठन के पूर्व नेता पीर नूरुल हक शाह उर्फ 'एयर मार्शल' का घर भी शामिल था.
'आतंकवादी साजिश का पर्दाफाश'
SIA का कहना है कि इन तलाशी अभियानों का उद्देश्य सरला भट की हत्या के पीछे की 'पूरी आतंकवादी साजिश का पर्दाफाश' करना है. छापों में उन घरों की भी तलाशी ली गई जो अब दिवंगत या जेल में बंद JKLF कमांडरों के थे. जम्मू कश्मीर प्रशासन इस कार्रवाई को 1990 के दशक में हुए जघन्य अपराधों के लिए जवाबदेही तय करने की दिशा में एक अहम कदम मान रहा है. उस दौर की आतंकवादी हिंसा ने हजारों कश्मीरी पंडितों को घाटी छोड़ने पर मजबूर कर दिया था.