एक लड़की से दो सगे भाइयों की एकसाथ शादी पर हंगामा क्यों नहीं हुआ? ये है वजह
Advertisement
trendingNow12852365

एक लड़की से दो सगे भाइयों की एकसाथ शादी पर हंगामा क्यों नहीं हुआ? ये है वजह

Polyandry in India: आपने सोशल मीडिया पर तस्वीर देखी होगी. वायरल है. बीच में दुलहन और दोनों तरफ दो लोग दिख रहे हैं. दरअसल, इनका विवाह हुआ है. दो भाइयों ने एक ही महिला से शादी रचाई. हालांकि आपने देखा होगा कि हिमाचल प्रदेश की इस खबर पर कोई हंगामा नहीं हुआ. इसके पीछे की वजह दिलचस्प है. 

एक लड़की से दो सगे भाइयों की एकसाथ शादी पर हंगामा क्यों नहीं हुआ? ये है वजह

आदित्य पूजन I एक लड़की. दो लड़के. दोनों सगे भाई. दोनों से एक साथ शादी. तीन दिन तक शादी का कार्यक्रम चला. गाजे-बाजे के साथ. पूरे गांव के लोग इसमें शामिल हुए. हिमाचल प्रदेश में हुई यह शादी सुर्खियों में रही. सोशल मीडिया पर शादी की तस्वीरें वायरल हुईं, लेकिन किसी ने ये नहीं कहा कि ये शादी अवैध है. हिंदू मैरिज एक्ट में स्पष्ट लिखा है कि पुरुष हो या महिला, उसके एक से ज्यादा जीवनसाथी नहीं हो सकते. फिर इस मामले में चुप्पी क्यों?

क्या कहता हिंदू मैरिज एक्ट?

चुप्पी की वजह जानने से पहले ये समझना जरूरी है कि हिंदू मैरिज एक्ट में इस बारे में क्या कहा गया है. हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 5 के अनुसार, विवाह तभी मान्य होगा जब दोनों पक्षों में से कोई भी विवाह के समय किसी अन्य जीवित व्यक्ति के साथ वैध विवाह में बंधा हुआ न हो. यानी एक महिला (या पुरुष) तभी दूसरा विवाह कर सकती है जब पहला विवाह पति/पत्नी की मृत्यु या कानूनी रूप से तलाक के बाद समाप्त हो चुका हो. 

हाटी समुदाय की बहुपति प्रथा क्या है?

एक से ज्यादा पुरुषों से महिला की शादी एक परंपरा के रूप में सदियों से मौजूद है. हिमाचल प्रदेश की हाटी जनजाति में बहुपति (पॉलीएंड्री) प्रथा सदियों से प्रचलित है. इस समुदाय के बहुत से लोग अब इस परंपरा को नहीं मानते हैं. इसके बावजूद ट्रांस गिरि के बधाना गांव में पिछले छह साल में पांच ऐसी शादियां हुई हैं. हाटी हिमाचल प्रदेश की एक अनुसूचित जनजाति है. इस समुदाय में बहुपति ही नहीं, बहुपत्नी विवाह भी प्रचलित है और इसे कानूनी मान्यता भी प्राप्त है. हिमाचल प्रदेश के राजस्व कानून और हाई कोर्ट द्वारा मान्य 'जोड़ीदार कानून' के तहत यह विवाह वैध है.

दूल्हे के घर जाती है दुल्हन

हाटी समुदाय में बहुविवाह प्रथा को जोड़ीदारा के नामा से जाना जाता है. स्थानीय स्तर पर इस अनोखी शादी को जाज्दा के नाम से जाना जाता है. इसमें दुल्हन को एक जुलूस या बारात के साथ दूल्हे के घर ले जाया जाता है, जहां शादी की सारी रस्में होती हैं. इसे सींज कहा जाता है.

कानूनी रूप से वैध

भारत का संविधान भी अनुसूचित जनजाति समुदायों (ST) में प्रचलित परंपराओं को मान्यता देता है. संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत, अनुसूचित जनजातियों को अलग कानूनी दर्जा दिया गया है. अपनी आदिवासी पहचान बनाए रखने के लिए उन्हें अपनी परंपराओं को जारी रखने की छूट मिली हुई है. हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 हिंदुओं, बौद्धों, जैन और सिखों पर लागू होता है. इस कानून की धारा 2(2) में कहा गया है कि इसके प्रावधान अनुसूचित जनजातियों पर लागू नहीं होंगे, जब तक कि केंद्र सरकार गैजेट नोटिफिकेशन द्वारा कोई अन्यथा निर्देश न दे.

महाभारत काल में शुरुआत

भारत में बहुपति प्रथा की शुरुआत महाभारत काल में मानी जाती है. द्रौपदी से पांडवों के विवाह को इसका सबसे बड़ा उदाहरण माना जाता है. हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के तीन पहाड़ी इलाकों में यह आज भी प्रचलित है. उत्तराखंड में जौनसार बावर, हिमाचल प्रदेश के किन्नौर और सिरमौर जिले के ट्रांस गिरि क्षेत्र में आज भी इसके उदाहरण मिल जाते हैं. 

अब वजह जान लीजिए 

आदिवासी समुदाय में इस परंपरा की शुरुआत हजारों साल पहले परिवार की कृषि योग्य जमीन को बंटवारे से बचाने के लिए हुई थी. इसके समर्थकों का मानना है कि जाज्दा परंपरा के जरिए भाईचारा और संयुक्त परिवार में आपसी समझदारी को बढ़ावा मिलता है. इस परंपरा का तीसरा कारण है सुरक्षा. इसके जरिए कृषि भूमि का प्रबंधन आसान होता है और आर्थिक जरूरतें एक साथ पूरी होती हैं. 

About the Author
author img

TAGS

Trending news

;