Ghazipur-ballia to bihar: यूपी के गाजीपुर से शुरू होकर बलिया और बिहार के मांझी तक जाने वाले ग्रीन फील्ड एक्सप्रेस-वे के किनारे एकदम हरे भरे होंगे. जंगल के जैसे नजारे देखने को मिलेंगे. ग्रीन फील्ड एक्सप्रेस-वे के किनारे घना जंगल बनने से यात्रियों को हरियाली का एहसास होगा और पर्यावरण संतुलन में भी मदद मिलेगी
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Green Field Expressway: उत्तर प्रदेश के गाजीपुर और बलिया के बीच बन रहा ग्रीन फील्ड फोरलेन एक्सप्रेसवे सितंबर 2025 तक शुरू होने की उम्मीद है. ग्रीन फील्ड एक्सप्रेसवे का निर्माण तेजी से चल रहा है. यह एक्सप्रेसवे 132 किलोमीटर लंबा होगा. यह एक्सप्रेसवे गाजीपुर के जंगीपुर से शुरू होकर बलिया के मांझीघाट तक जाएगा और एक अतिरिक्त 17 किलोमीटर का रास्ता बक्सर (बिहार) के लिए जोड़ा जाएगा. अच्छी खबर है कि गाजीपुर से बिहार के मांझी तक जाने वाले ग्रीन फील्ड फोरलेन एक्सप्रेसवे पर आपको चारों तरफ हरियाली ही हरियाली नजर आएगी. यहां से गुजरने वालों को शुद्ध हवा मिलेगी. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यहां पर घना जंगल बनाया जाएगा.
एक्सप्रेस-वे के दोनों ओर बनेगा घना जंगल
इस परियोजना के तहत इस एक्सप्रेसवे से सफर करने वाले यात्रियों को तेज रफ्तार के साथ-साथ शुद्ध हवा भी मिलेगी. इसके लिए एक्सप्रेस-वे के दोनों ओर 2.5 किलोमीटर लंबा घना जंगल विकसित किया जाएगा. ग्रीन फील्ड एक्सप्रेस-वे के किनारे घना जंगल बनने से यात्रियों को हरियाली का एहसास होगा और पर्यावरण संतुलन में भी मदद मिलेगी. इस जंगल के देखभाल की जिम्मेदारी वन विभाग की होगी. वन विभाग मियावाकी पद्धति (Miyawaki technique) से पौधे लगाएगा.
कहां होगा पौधरोपण
राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) ने जंगीपुर बाईपास के पास किलोमीटर संख्या 900 से 911.5 तक डेढ़ हेक्टेयर भूमि को पौधारोपण के लिए चिह्नित किया है. फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ने इस चिह्नित भूमि पर मियावाकी पद्धति से करीब 50 हजार पौधों का रोपण करेगी. मिली जानकारी के मुताबिक जुलाई 2025 में पौधारोपण का काम शुरू हो जाएगा.
जानते हैं क्या है मियावाकी पद्धति?
मियावाकी पद्धति जापानी वनस्पति वैज्ञानिक अकीरा मियावाकी द्वारा विकसित एक टैक्निक है. इस पद्धित में देसी पौधों को कम जगह में घना जंगल बनाने के लिए रोपा जाता है. इस पद्धति में जीवामृत और गोबर खाद यूज की जाती है. इसमें 2 फीट चौड़ी और 30 फीट लंबी पट्टी में 100 से ज्यादा पौधे लगाए जा सकते हैं. जब पौधों को पास-पास रोपा जाता है तो इन पर वेदर का इफेक्ट कम पड़ता है जिसके कारण गर्मियों में भी पौधे हरे-भरे रहते हैं. इस तकनीक से वन क्षेत्र तेजी से विकसित होता है. यह परियोजना न केवल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक कदम है, बल्कि यात्रियों के लिए एक सुहाना अनुभव भी प्रदान करेगी.
कैसे होता है पौधों का चयन
मियावाकी पद्धति में पौधों की तीन तरह की प्रजातियों का चयन किया जाता है. इन पौधों की ऊंचाई अलग-अलग होती है. एक प्रजाति लंबे पेड़ों की, दूसरी कम ऊंचाई वाले पौधों की और तीसरी छायादार पौधों की होती है. इन पौधों को रेगुलर डिस्टेंस पर रोपा जाता है, जिससे जंगल का नेचरुल फॉर्म विकसित हो सके.
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