कौन हैं जौनपुर के डीएम डॉ. दिनेश चंद्र?, खुद ढैंचा की खेती कर हजारों किसानों के लिए प्रेरणा बन गए
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कौन हैं जौनपुर के डीएम डॉ. दिनेश चंद्र?, खुद ढैंचा की खेती कर हजारों किसानों के लिए प्रेरणा बन गए

IAS Dr. Dinesh Chandra: बिजनौर के रहने वाले दिनेश चंद्र साल 2012 बैच के आईएएस अधिकारी हैं. डॉ. दिनेश चंद्र को पांच नवंबर  2018 को अलीगढ़ में बतौर मुख्य विकास अधिकारी के पद पर पहली तैनाती दी गई थी.

IAS Dr Dinesh Chandra
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IAS Dr. Dinesh Chandra: जौनपुर के जिलाधिकारी डॉ. दिनेश चंद्र ने जैविक खेती को प्रोत्‍साहन की दिशा में शानदार पहल की है. डीएम डॉ. दिनेश चंद्र ने स्वयं ढैंचा की खेती कर किसानों को रासायनिक खेती से हटकर प्राकृतिक और टिकाऊ कृषि की ओर प्रेरित किया है. डीएम डॉ. दिनेश चंद्र ने बताया कि यह कदम खेती को लाभकारी, पर्यावरण अनुकूल और स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित बनाने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा. आइये जानते हैं जौनपुर के जिलाधिकारी डॉ. दिनेश चंद्र के बारे में.... 

कौन हैं आईएएस डॉ. दिनेश चंद्र? 
मूलरूप से बिजनौर के रहने वाले दिनेश चंद्र साल 2012 बैच के आईएएस अधिकारी हैं. डॉ. दिनेश चंद्र को पांच नवंबर  2018 को अलीगढ़ में बतौर मुख्य विकास अधिकारी के पद पर पहली तैनाती दी गई थी. इसके बाद 15 फरवरी 2019 तक वह इस पद पर बने रहे. फ‍िर शासन ने उन्‍हें गाजियाबाद का नगर आयुक्‍त बनाकर भेजा. 15 अगस्त 2020 तक वह गाजियाबाद नगर निगम में नगर आयुक्‍त रहे. 

कहां-कहां रही तैनाती? 
इसके बाद उन्हें 15 अगस्त 2020 को कानपुर देहात का डीएम बनाया गया. 2 मार्च 2021 तक कानपुर देहात के डीएम रहे. इसके बाद उन्‍हें संस्कृति विभाग उत्तर प्रदेश का विशेष सचिव नियुक्त किया गया. जून 2021 में उन्‍हें बहराइच का डीएम बनाया गया. मई 2023 में उन्हें सहारनपुर का डीएम बनाया गया. जून 2024 को उन्‍हें चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास विभाग लखनऊ का विशेष सचिव बनाया गया. अब जौनपुर में बतौर डीएम रहते हुए उन्‍होंने ढैंचा खेती की दिशा में कदम उठाया है. इसलिए उनकी चर्चा हो रही है. 

क्या है ढैंचा खेती? 
ढैंचा एक प्रकार की दलहनी फसल है, जिसकी जड़ों में मौजूद जीवाणु नाइट्रोजन को वायुमंडल से अवशोषित कर मिट्टी में स्थिर करते हैं. इससे खेतों में प्राकृतिक रूप से नाइट्रोजन की आपूर्ति होती है. इससे रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता कम हो जाती है. मात्र 45 दिनों में ढैंचा के पौधे लगभग 3 फीट तक बढ़ जाते हैं. इसी समय इन्हें काटकर खेतों में मिला दिया जाता है. इस प्रक्रिया को "हरी खाद" तैयार करना कहा जाता है. 

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