Namo Bharat Corridor: नमो भारत रेल प्रोजेक्ट में बड़ी तकनीकी छलांग, जानिए कैसे पहली बार देश में टर्नआउट स्लैब्स का हुआ इस्तेमाल
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Namo Bharat Corridor: नमो भारत रेल प्रोजेक्ट में बड़ी तकनीकी छलांग, जानिए कैसे पहली बार देश में टर्नआउट स्लैब्स का हुआ इस्तेमाल

Delhi Ghaziabad Meerut RRTS: दिल्ली-गाजियाबाद-मेरठ नमो भारत कॉरिडोर पर NCRTC ने 169 किलोमीटर प्रीकास्ट स्लैब ट्रैक का काम तय समय में पूरा कर नया रिकॉर्ड बनाया है. जानिए कैसे पहली बार देश में टर्नआउट स्लैब्स का इस्तेमाल हुआ और क्या-क्या रही इसकी खासियतें.

Namo Bharat Corridor: नमो भारत रेल प्रोजेक्ट में बड़ी तकनीकी छलांग, जानिए कैसे पहली बार देश में टर्नआउट स्लैब्स का हुआ इस्तेमाल

Delhi Ghaziabad Meerut RRTS News: दिल्ली-गाजियाबाद-मेरठ को जोड़ने वाली नमो भारत रेल लाइन पर एक और बड़ी उपलब्धि हासिल की गई है. इस प्रोजेक्ट के तहत नेशनल कैपिटल रीजन ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन (NCRTC) ने 169 ट्रैक किलोमीटर (टीकेएम) का प्रीकास्ट स्लैब ट्रैक इंस्टॉलेशन समय पर पूरा कर लिया है. यह काम देश के पहले अर्ध-हाई स्पीड रीजनल रेल नेटवर्क पर हुआ है और यह भारत के रेलवे इतिहास में एक बड़ी तकनीकी छलांग मानी जा रही है.

प्रीकास्ट स्लैब ट्रैक तकनीक

इस परियोजना में लगभग 47,000 प्रीकास्ट स्लैब्स बनाए और लगाए गए हैं. ये स्लैब्स खासतौर पर एलिवेटेड (उपरी पुल) और अंडरग्राउंड (भूमिगत) हिस्सों में मुख्य ट्रैक लाइन पर लगाए गए हैं. प्रीकास्ट स्लैब्स का मतलब है.. ऐसे ट्रैक बेस जो पहले से तैयार किए जाते हैं और फिर जगह पर पहुंचाकर इंस्टॉल किए जाते हैं. इससे न केवल काम तेज़ हुआ बल्कि क्वालिटी भी उच्च स्तर की बनी रही.

पहली बार भारत में टर्नआउट स्लैब्स

इस प्रोजेक्ट की खास बात यह रही कि भारत में पहली बार टर्नआउट स्लैब्स का इस्तेमाल किया गया. टर्नआउट्स वे पॉइंट होते हैं जहां ट्रेनें एक ट्रैक से दूसरे ट्रैक पर जा सकती हैं. कुल 135 टर्नआउट्स आठ अलग-अलग कॉन्फिगरेशन में लगाए गए, जिसमें हर टर्नआउट में लगभग 15 स्लैब्स का इस्तेमाल हुआ. यह तकनीक देश में नई थी और इसे अपनाना एक बड़ा चैलेंज भी था.

बड़ी लॉजिस्टिक सफलता

इस पूरे प्रोजेक्ट में कुल 140 प्रकार के स्लैब्स बनाए गए. हर स्लैब का साइज, डिजाइन और वजन अलग था, इसलिए इनका निर्माण, ट्रांसपोर्ट और इंस्टॉलेशन करना NCRTC और उसकी टीम के लिए एक बहुत बड़ा लॉजिस्टिक और तकनीकी काम था. इसे एक बार में पूरी तरह से सफलतापूर्वक अंजाम देना टीम की मेहनत और सामूहिक प्रयास को दिखाता है.

ट्रैक पर दौड़ रही हाई-स्पीड ट्रेनें

अब इसी ट्रैक पर 180 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से ट्रायल रन किए जा चुके हैं और 160 किमी/घंटा की स्पीड से ट्रेनों का संचालन भी शुरू हो चुका है. यह भारत में पहली बार हो रहा है जब इतनी तेज गति से कोई ट्रेन नियमित रूप से चलाई जा रही है. इससे यात्रियों को समय की बचत और आरामदायक सफर का अनुभव मिल रहा है.

हर स्तर पर अपनाई गई उच्चतम तकनीक

इस पूरी प्रक्रिया में प्लानिंग, डिजाइनिंग, मशीनरी का चयन, सर्वे, ट्रेनों के लिए जरूरी तकनीकी ट्रेनिंग और इंस्टॉलेशन तक सब कुछ बेहद सटीक और आधुनिक स्तर पर किया गया. एनसीआरटीसी ने सबसे उपयुक्त सिस्टम चुना और इसके प्रदाता के साथ मिलकर हर तकनीकी पहलू पर काम किया.

‘टीम इंडिया’ की तर्ज पर काम

इस परियोजना की सबसे खास बात यह रही कि इसे सिर्फ एक ठेकेदार या क्लाइंट के दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि एक साझा टीम के रूप में पूरा किया गया. इसमें एनसीआरटीसी की ट्रैक टीम, जनरल कंसल्टेंट, सप्लायर्स, डिजाइन एजेंसियां और एलएंडटी जैसी बड़ी कंपनियां शामिल थीं. सभी ने मिलकर एक टीम भावना के साथ काम किया और सफलता की कहानी लिखी.

55 किलोमीटर रूट चालू

फिलहाल इस कॉरिडोर का 55 किलोमीटर हिस्सा चालू हो चुका है, जिसमें 11 स्टेशन शामिल हैं. बाकी के हिस्से पर तेजी से ट्रायल चल रहे हैं और पूरा 82 किलोमीटर का रूट जून 2025 तक पूरा होने का लक्ष्य रखा गया है. यह काम सिर्फ छह साल में पूरा होना है, जो किसी भी मेगा इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के लिहाज से एक रिकॉर्ड माना जाएगा.

देश की रेलवे तकनीक को नई ऊंचाई

इस प्रोजेक्ट की सफलता भारत की रेलवे क्षमताओं को एक नई दिशा देती है. यह न केवल एक तकनीकी उपलब्धि है, बल्कि आने वाले समय में देश के अन्य रीजनल और हाई-स्पीड रेल प्रोजेक्ट्स के लिए एक प्रेरणा भी बनेगा. NCRTC की यह पहल भारत के रेलवे इंफ्रास्ट्रक्चर को वैश्विक मानकों तक पहुंचाने की दिशा में एक बड़ा कदम है.

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