Farrukhabad news: फर्रूखाबाद में मेरठ वाली घटना के बाद नील ड्रम की बिक्री पर ब्रेक लगा है. यहां घटना के बाद से ड्रम की बिक्री ना के बराबर है. दुकानदार ड्रम को काटकर बेचने के लिए मजबूर हैं.
Trending Photos
अरुण सिंह/फर्रुखाबाद: मेरठ हत्याकांड के साथ जिस चीज की चर्चा लोगों के बीच और सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा हुई वह है नीला ड्रम. नीला ड्रम लोगों के बीच दहशत और उपहास दोनों का कारण बना. इंटरनेट पर इसको लेकर मीम्स की बाढ़ देखने को मिली. वहीं फर्रूखाबाद जिले में मेरठ वाली घटना के बाद नील ड्रम की बिक्री पर ब्रेक लगा दिखाई दे रहा है. यहां घटना के बाद से ड्रम की बिक्री ना के बराबर है. दुकानदार ड्रम को काटकर बेचने के लिए मजबूर हैं. रास्ते पर रखे ड्रम पर युवक, लड़कियां कमेंट करते हैं.
मेरठ की घटना के बाद जो मामले सामने आए हैं, उसने कहीं ना कहीं समाज को झकझोर कर रख दिया है. इसके बाद से समाज में ड्रम के रंग और नाम से लोगों में कहीं ना कहीं दहशत है. पूरे देश में हर दिन कहीं ना कहीं से आती ऐसी खबरें समाज के गिरते हुए स्तर को बताने के लिए काफी हैं. मनोचिकित्सक ने माना कि आज के दौर में ऐसी घटनाओं के पीछे एक हद तक मोबाइल और सोशल मीडिया भी वजह हैं.
मनोचिकित्सक का क्या कहना?
मनोचिकित्सक डॉ प्रशांत गंगवार का कहना है कि सोशल मीडिया में ज्यादा हिस्सेदारी लेने से महिलाओं के मानसिक स्तर में कमी आई है तो वहीं मीडिया का मजबूत तंत्र हर खबर को जन-जन तक पहुंचाने का काम कर रहा है. जिस वजह से इस तरीके की घटनाओं में बढ़ोतरी हो रही है. छोटे बच्चे से लेकर पारिवारिक महिलाएं लगातार सोशल मीडिया पर रहकर तरह-तरह की कंटेंट देखते हैं, जिस वजह से मानसिक लेवल को चकाचौंध के साथ जोड़कर करना चाहती हैं."
मनोचिकित्सक के मुताबिक, "सोशल मीडिया पर ज्यादा सक्रियता से महिलाओं के अंदर इमोशंस शॉर्टलिस्ट हो गए हैं. कुछ महिलाएं बाइपोलर डिसऑर्डर जैसी बीमारियों से भी ग्रसित हैं.जिससे एकदम उत्तेजना में घटना को अंजाम दे रहे हैं, साथ ही इमोशन लोगों के प्रति लगभग खत्म हो गए हैं. घटना करने के बाद जो लोग उसका मजा लेते हैं या एंजॉयमेंट करते हैं. इस पर उन्होंने कहा कि यह साइकोपैथ और अल्कोहल की वजह से भी हो सकता है."
"सरकार इन सब को लेकर काफी चिंतित है और उन्होंने ऐसे मामलों में हेल्पलाइन नंबर भी जारी किए हैं लेकिन आम जनता उन तक नहीं पहुंच रही क्योंकि वह खुद को बीमार नहीं समझते या अपनी परेशानी किसी को बताना नहीं चाहते. समाज में हो रहे बदलाव से दिमाग में भी बदलाव की स्थिति बन रही है."
जिले की समाज सेविका डॉ रजनी सरीन ने इस पूरे मामले पर कहा कि महिलाओं में तीन तरीके से बदलाव आए हैं. पहले लालन-पालन और संस्कार की प्रवृत्ति खत्म हो गई. ज्वाइंट फैमिली का कल्चर खत्म हो गया है. दूसरा महिलाओं में हारमोंस बदलते हैं. पीवरटी,पीरियड,ओर प्रग्नेंसी ,में ये भी घातक हो सकते है वही मोबाइल छोटे-छोटे बच्चों की पहुंच में है. जिससे उनमें सोने की क्षमता खत्म हो रही है.
वहीं समाज में शिक्षा एक बहुत बड़ा विषय है जो एथिक्स हमको बचपन में पढ़ाए जाते थे. वह अब खत्म हो गए हैं. आज की एजुकेशन में एथिक्स नहीं है. जिस वजह से समाज में बढ़ता द्वेष एक दूसरे के लिए समाज में फैलती मोबाइल की पहुंच समाज में बिखरता परिवार समाज का गिरता स्तर, यह सब चीज कहीं ना कहीं ऐसी घटनाओं को बढ़ावा देने का काम कर रहे हैं.