यूपी का ऐसा गांव जहां दशकों से नहीं बांधी जाती राखी, रक्षाबंधन पर बहनें करती हैं विलाप
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यूपी का ऐसा गांव जहां दशकों से नहीं बांधी जाती राखी, रक्षाबंधन पर बहनें करती हैं विलाप

Saharanpur News: जहां एक ओर देशभर में रक्षाबंधन का पर्व भाई-बहन के प्यार, सुरक्षा और स्नेह के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है, वहीं यूपी में एक गांव ऐसा है जहां रक्षाबंधन के दिन ऐसा कत्लेआम मचा था कि कई बहनों ने अपने भाइयों को हमेशा के लिए खो दिया था. उस दिन को याद कर आज भी आंखों से आंसुओं का झरना गिरने लगता है. 

यूपी का ऐसा गांव जहां दशकों से नहीं बांधी जाती राखी, रक्षाबंधन पर बहनें करती हैं विलाप

सहारनपुर: सहारनपुर में एक गांव है जहां दशकों से रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाया जाता. वजह है एक दिल दहला देने वाली घटना, जिसमें रक्षाबंधन के दिन कई बहनों ने अपने भाईयों को हमेशा के लिए खो दिया था. 

कहा जाता है कि सहारनपुर के अघ्याना गांव कभी एक बड़ा किला हुआ करता था और उस पर जमाल खां पठान नाम का एक क्रूर शासक राज करता था. उसके अत्याचारों से गांव के लोग इतने त्रस्त थे कि उन्होंने विद्रोह का रास्ता अपनाया. बताया जाता है कि जमाल खां पठान गांव की बहन-बेटियों पर बुरी नजर रखता था. यहां तक कि किसी भी नवविवाहित महिला को शादी के बाद पहली रात उसके महल में भेजा जाता था और अगर किसी युवती की शादी हो रही होती थी तो शादी से पहले उसे एक दिन जमाल खां के महल में गुजारना होता था. इतना नहीं, जमाल खां ने ग्रामीणों की श्रद्धा से जुड़े 365 सती मंदिरों को तुड़वाकर अपने महल की दीवारों पर खुदवाया था.

जमाल खां के खिलाफ खूनी जंग
गांव के बुजुर्गों के अनुसार, ग्रामीणों ने उसके अत्याचार को खत्म करने के लिए एक साहसिक योजना बनाई. रक्षाबंधन के दिन जब जमाल खां पठान शिकार पर जा रहा था, तभी उसके सेवादार ने उसकी बंदूक को पानी में फेंक दिया और पहले से तैयार बैठे ग्रामीणों को खबर दी. इसी दिन ग्रामीणों ने एकजुट होकर जमाल खां पठान की गर्दन काट दी और उसे मार डाला. हालांकि इस संघर्ष में गांव के कई नौजवान भी शहीद हो गए.

यह दिन रक्षाबंधन का ही था, जब बहनों की कलाई पर राखी तो बंधी थी, लेकिन कुछ ही घंटों बाद वही राखी वीरान हो गई. कई बहनों ने अपने भाई खो दिए, और तभी से इस गांव में रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाया जाता. 

गांव के निवासी आज भी उस दुखद घटना को याद कर सिहर जाते हैं. इतिहास के इस काले अध्याय ने अघ्याना गांव में रक्षाबंधन को उत्सव नहीं, बल्कि शोक का दिन बना दिया है. वहीं, यह कहानी आने वाली पीढ़ियों के लिए साहस, बलिदान और अन्याय के विरुद्ध एकजुटता की मिसाल भी बन चुकी है.

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