किस शहर में कितने घंटे रहने लायक हैं अनुकूल? घर लेने से पहले ध्यान से पढ़ें ये खबर
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किस शहर में कितने घंटे रहने लायक हैं अनुकूल? घर लेने से पहले ध्यान से पढ़ें ये खबर

Which city is worth living : आखिर क्या वजह है कि इन शहरों में दिल्ली के मुकाबले स्थिति थोड़ी बेहतर है? लेकिन नमी वाले फैक्टर पर अगर हम गौर करें तो इन शहरों की हालत दिल्ली से कुछ खास बेहतर नहीं दिखाई देती. ऐसे में हवा की रफ्तार कंफर्ट लेवल में सुधार के लिए एक बड़ी वजह बन कर सामने आती है.

सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर

Lifestyle News: क्या आप जानते हैं कि देश का कौन सा शहर आपके लिए कितने घंटे रहने लायक है, कौन सा शहर रहने लायक नहीं है. आपने अगर मुंबई में वक्त गुजारा होगा तो आपको पता होगा कि वहां जब लोग बेरोजगार यानी बर्बाद होने की बात करते हैं तो उनका खास तकिया कलाम होता है. वे बात-बात पर गांव लौट जाने की बात करते हैं. कुछ इस तरह - '... ये नहीं हो सका तो मैं गांव चला जाऊंगा.' '...यार सही से धंधा करने दे ना, क्यों गांव भेजने पर तुला है?' किसी जगह की जुबान उस जगह के लोगों की सोच का निशान हुआ करती है. भाई

लाइफ में सोच का यू-टर्न कैसे?

दिल्ली और मुंबई ही क्यों? किसी भी बड़े शहर में रहने वालों के लिए गांव लौट जाना जिंदगी की गाड़ी के डि-रेल होने या पिछड़ जाने का प्रतीक माना जाता है. लेकिन बड़े शहरों में तेज रफ्तार जिंदगी जीने वाले लोगों के खयाल तब बदल जाते हैं जब वे रिटायरमेंट के बाद की जिंदगी का जिक्र करते हैं. तब वे कहा करते हैं कि, 'आखिरी के 10-15 साल मैं गांव में गुजारूंगा. वहां शुद्ध हवा और पानी मिलेगा.'

ऐसा क्यों होता है? 

क्योंकि शहरों में जीना दिन ब दिन मुश्किल होता जा रहा है. CEPT यानी सेंटर फॉर एनवायरनमेंटल प्लानिंग एंड टेक्नॉलजी यूनिवर्सिटी और रेस्पिरर लिविंग साइंस की नई रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि दिल्ली जैसे शहरों में बढ़ते प्रदूषण और तापमान सुरक्षित और आरामदायक जीवन के लिए उपलब्ध समय को कम कर रहे हैं.

आंकड़े क्या कहते?

दिल्ली में हर साल लगभग 2210 घंटे ऐसे होते हैं, जब तापमान 18 से 31 डिग्री के बीच रहता है. 18 से 31 डिग्री तापमान को थर्मल कंफर्ट लेवल का तापमान माना जाता है. इन घंटों में से 1951 घंटे ऐसे होते हैं, जब AQI खराब लेवल पर रहता है. यह 88 फीसदी है. इसका मतलब यह है कि पूरे साल में सिर्फ 259 घंटे ही ऐसे होते हैं, जब लोगों को साफ हवा और आरामदायक तापमान एक साथ मिलता है. यह पूरे साल का महज तीन प्रतिशत समय है.

थर्मल कंफर्ट लेवल का मूल्यांकन तापमान, नमी, हवा की गुणवत्ता और अन्य कारकों के आधार पर किया जाता है, जो मानव शरीर को आरामदायक महसूस करने में मदद करता है. रिसर्च में पाया गया कि अन्य शहरों में हालात कोई बहुत बेहतर नहीं हैं.

थर्मल कंफर्ट लेवल

बेंगलुरू में 8100 से अधिक घंटे ऐसे मिल रहे हैं, जब प्रदूषण और थर्मल कंफर्ट दोनों लोगों को मिल पाए. अहमदाबाद भले अधिक गर्म रहा हो, लेकिन दिल्ली की तुलना में स्थितियां अच्छी रहीं. चेन्नई की हालत लगभग दिल्ली जैसी ही है. अगर जून के महीने में नमी से तुलना करते हुए इन शहरों के थर्मल कंफर्ट लेवल की जांच करें तो दिल्ली में औसत तापमान 33 से 38 डिग्री सेल्सियस होता है तो बेंगलुरु में यह 25 से 30, अहमदाबाद में 34 से 40 और चेन्नई में 32 से 37 डिग्री होता है. इसी तरह दिल्ली में नमी 50 से 70 फीसदी, बेंगलुरू में 65 से 80 फीसदी, अहमदाबाद में 40 से 60 फीसदी और चेन्नई में 70 से 85 फीसदी होती है.  थर्मल कंफर्ट लेवल दिल्ली में असहज, बेंगलुरू में आरामदायक से मध्यम असहज, अहमदाबाद में बहुत असहज और चेन्नई में अत्यधिक असहज होता है.  

हवा छोड़िए सुगंधित सौध ली.

आखिर क्या वजह है कि इन शहरों में दिल्ली के मुकाबले स्थिति थोड़ी बेहतर है? लेकिन नमी वाले फैक्टर पर अगर हम गौर करें तो इन शहरों की हालत दिल्ली से कुछ खास बेहतर नहीं दिखाई देती. ऐसे में हवा की रफ्तार कंफर्ट लेवल में सुधार के लिए एक बड़ी वजह बन कर सामने आती है.

दिल्ली में गर्मी बहुत ज्यादा पड़ती है. यह थर्मल कंफर्ट को कम करता है. दिल्ली, अहमदाबाद में तीव्र सूर्य विकिरण तापमान बढ़ाता है. अधिक नमी पसीने के वाष्पीकरण को रोकती है. इससे गर्मी ज्यादा महसूस होती है. हवा की रफ्तार से थर्मल कंफर्ट में सुधार हो सकता है. चेन्नई और बेंगलुरु में तटीय हवाओं की वजह से थोड़ी राहत मिलती है.

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