India's First Action Dancing Star: 'शोला जो भड़के' और 'ओ बेटा जी, ओ बाबू जी' जैसे सदाबहार गानों से दर्शकों के दिलों में बसने वाले इस सितारे का हर कोई मुरीद था. लेकिन, वक्त की मार ने इस सितारे को आसमान से जमीन पर ला पटका. कभी 25 कमरों वाले आलीशान बंगले और सात लग्जरी कारों के मालिक रहे इस सितारे ने अंतिम दिन मुंबई की एक चॉल में गुमनामी में गुजारे.
ये सितारा कोई और नहीं भारतीय सिनेमा के पहले एक्शन और डांसिंग स्टार भगवान दादा है.भगवान दादा, जिनका असली नाम भगवान आभाजी पालव था.साल 1913 में महाराष्ट्र के अमरावती में जन्मे भगवान दादा के पिता कपड़ा मिल में काम करते थे. आर्थिक तंगी का भी सामना किया, उन्हें परिवार की आर्थिक तंगी के कारण चौथी कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी.
फिल्मों के प्रति जुनून उन्हें मुंबई खींच लाया. शुरुआत में कपड़ा मिल में मजदूरी करने वाले भगवान को मूक फिल्म 'क्रिमिनल' में छोटा-सा रोल मिला, जिसने उनके करियर की नींव रखी. साल 1934 में उनकी पहली बोलती फिल्म 'हिम्मत-ए-मर्दा' आई. इसके बाद उन्होंने 1938 में चंद्रराव कदम के साथ मिलकर फिल्म 'बहादुर किशन' का निर्देशन किया. साल 1938 से 1949 तक भगवान दादा ने कम बजट की कई एक्शन फिल्मों का निर्देशन किया.
भगवान दादा ने 400 से ज्यादा फिल्मों में एक्टिंग की और निर्देशन के साथ ही निर्माण से भी जुड़े. हॉलीवुड स्टार डगलस फेयरबैंक्स से प्रेरित होकर उन्होंने बिना बॉडी डबल के खतरनाक स्टंट किए, जिसके लिए राज कपूर उन्हें 'इंडियन डगलस' कहते थे. भगवान दादा के डांस स्टेप्स को भी खूब पसंद किया जाता था. अमिताभ बच्चन, मिथुन चक्रवर्ती और गोविंदा जैसे सितारे भी उनके भांगड़ा मिक्स डांसिंग स्टाइल को कॉपी करते थे.
उनकी फिल्म 'अलबेला' साल 1951 में आई थी, जो सुपरहिट रही, जिसमें गीता बाली उनकी नायिका थीं. इस फिल्म के गाने आज भी लोगों की जुबान पर हैं. कहते हैं कि फिल्म सिनेमाघरों में 45 हफ्ते से ज्यादा चली. भगवान दादा ने फिल्म को शानदार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. उन्होंने शूटिंग सेट पर सीन को वास्तविक बनाने के लिए असली नोटों की बारिश भी करवाई थी.
इस फिल्म के गीत 'शोला जो भड़के' और 'भोली सूरत दिल के खोटे' आज भी याद किए जाते हैं. 'अलबेला' की सफलता के बाद भगवान दादा ने जुहू में 25 कमरों वाला बंगला और सात कारें खरीदीं. हर दिन वह अलग कार से सेट पर जाते थे. लेकिन, जिंदगी ने करवट लेनी शुरू कर दी, जब उन्होंने किशोर कुमार के साथ ड्रीम प्रोजेक्ट 'हंसते रहना' शुरू किया.
कहते हैं कि इस फिल्म में उन्होंने अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया था.हालांकि, कई वजहों से फिल्म अधूरी रह गई. इसने भगवान दादा को कर्ज में डुबो दिया. उन्हें अपना बंगला, कारें और सारी संपत्ति बेचनी पड़ी.आखिरकार, वे दादर की एक चॉल में रहने को मजबूर हो गए.
साल 1942 की फिल्म 'जंग-ए-आजादी' की शूटिंग के दौरान एक सीन में भगवान दादा को ललिता पवार को थप्पड़ मारना था. लेकिन, गलती से यह थप्पड़ इतना जोरदार पड़ा कि ललिता बेहोश हो गईं. उनके कान से खून भी बहने लगा था. इस हादसे से उनके चेहरे में पैरालिसिस हो गया, जिसके कारण उनकी एक आंख छोटी हो गई. वह दो दिनों तक कोमा में रहीं.
इस घटना ने ललिता के करियर को बदल दिया और उन्हें खलनायिका के किरदार निभाने पड़े. भगवान दादा को इस हादसे का ताउम्र अफसोस रहा.आर्थिक तंगी और शराब की लत ने भगवान दादा को तोड़ दिया. 60 के दशक में उन्हें छोटे-मोटे रोल मिलने लगे, लेकिन फिल्म इंडस्ट्री ने उन्हें धीरे-धीरे भुला दिया. 4 फरवरी 2002 को हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया. (इनपुट-एजेंसी)
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