First woman member of Azad Hind Fauj: लक्ष्मी सहगल भारत के राष्ट्रपति पद का चुनाव भी लड़ चुकी थीं. वह डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के सामने थीं, जहां डॉ. कलाम चुनाव जीत गए थे.
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Lakshmi Sahgal death anniversary: भारत की पहली महिला रेजिमेंट (first all-women regiment) की लीडर, एक डॉक्टर और एक सामाजिक कार्यकर्ता, कैप्टन (डॉ.) लक्ष्मी सहगल सभी पीढ़ियों की महिलाओं के लिए एक प्रेरणा हैं. उनका जन्म 24 अक्टूबर 1914 को भारत के मद्रास प्रांत में हुआ था. उनके पिता एस. स्वामीनाथन एक प्रतिभाशाली वकील थे और उनकी मां ए.वी. अम्मुकुट्टी एक सामाजिक कार्यकर्ता और स्वतंत्रता सेनानी थीं. आज ही के दिन, 23 जुलाई, 2012 को उनका निधन हो गया था.
जीवन और विवाह
डॉ. सहगल ने क्वीन मैरी कॉलेज, चेन्नई से शिक्षा प्राप्त की और बाद में चिकित्सा विज्ञान की पढ़ाई की और 1938 में मद्रास मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की डिग्री प्राप्त की. एक साल बाद, उन्होंने स्त्री रोग और प्रसूति विज्ञान में डिप्लोमा प्राप्त किया. उन्होंने चेन्नई के ट्रिप्लिकेन स्थित सरकारी कस्तूरबा गांधी अस्पताल में भी डॉक्टर के रूप में काम किया.
उन्होंने मार्च 1947 में लाहौर में प्रेम सहगल से विवाह किया. विवाह के बाद, वे कानपुर चले गए, जहां उन्होंने अपनी चिकित्सा अभ्यास जारी रखा. परिवार में दो बेटियां हुईं, सुभाषिनी अली और अनीसा पुरी.
आजाद हिंद फौज से जब जुड़ीं
लक्ष्मी सहगल ने My Days in the Indian National Army में लिखा, 'मैं एक राजनीतिक परिवार से थी और राष्ट्रीय आंदोलन में मेरी रुचि थी, लेकिन मैंने पहले अपनी पढ़ाई पूरी करने का निश्चय किया. मैंने 1940 में मद्रास मेडिकल कॉलेज में चिकित्सा की पढ़ाई पूरी की. इस समय तक, द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ चुका था, और सभी डॉक्टरों को (ब्रिटिश भारतीय) सेना में भर्ती करने का प्रस्ताव था. मैं ऐसा नहीं करना चाहती थी, इसलिए मैं सिंगापुर चली गई, जहां मेरे कुछ करीबी रिश्तेदार रहते थे. मैंने वहां निजी चिकित्सा प्रैक्टिस शुरू की. मेरा व्यवसाय काफी अच्छा था. सिंगापुर में बड़ी संख्या में दक्षिण भारतीय थे. मेरे कई चीनी और मलय मरीज भी थे.
डॉ. सहगल की मुलाकात नेताजी सुभाष चंद्र बोस से हुई जब वे 1943 में सिंगापुर गए थे. उस समय लक्ष्मी युद्ध में घायल हुए लोगों की सेवा कर रही थीं. जब सुभाष चंद्र बोस ने एक महिला रेजिमेंट शुरू करने का विचार व्यक्त किया, तो उन्होंने खुद को नामांकित किया. नेताजी ने उन्हें अपनी आजाद हिंद फौज (INA) में शामिल कर लिया और डॉ. सहगल को झांसी की रानी रेजिमेंट का कमांडर बना दिया.
बोस की रैलियों और भाषणों के जादू ने आम जनता में रेजिमेंट में शामिल होने की इच्छा जगाई. कैप्टन सहगल ने घर-घर जाकर अभिभावकों को अपनी बेटियों को भेजने के लिए राजी किया. 22 अक्टूबर 1943 तक, सिंगापुर और मलाया के भारतीय समुदायों की 156 महिलाएं और लड़कियां, जो विभिन्न जातीय, सामाजिक, धार्मिक और भाषाई बैकग्राउंड से थीं, रेजिमेंट में शामिल हो चुकी थीं, जो भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराने की बोस की योजना का हिस्सा थी.
पुरस्कार मिले
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में कैप्टन सहगल के योगदान की सराहना करते हुए 1998 में राष्ट्रपति के. आर. नारायणन ने उन्हें प्रतिष्ठित पद्म विभूषण से सम्मानित किया. 2010 में, उन्हें कालीकट विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की गई.
राजनीति में करियर
2002 में, चार वामपंथी दलों - भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी और ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक ने कैप्टन सहगल को राष्ट्रपति चुनाव के लिए नामांकित किया.
वह भारत में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ने वाली पहली महिला बनीं. उन्होंने 2002 के राष्ट्रपति चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के सदस्य के रूप में डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के सामने थीं. जहां डॉ. कलाम चुनाव जीत गए थे.
सामाजिक कार्य
बांग्लादेश संकट के दौरान, उन्होंने ही कोलकाता आए बांग्लादेश से हजारों शरणार्थियों के लिए चिकित्सा सहायता की अपील की थी. उन्होंने भोपाल गैस त्रासदी के विनाशकारी पीड़ितों की देखभाल के लिए एक चिकित्सा दल का नेतृत्व भी किया और 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों के दौरान शांति बहाली के लिए काम किया.कैप्टन लक्ष्मी सहगल कानपुर में 92 साल की उम्र में भी हर सुबह मरीजों को देखती थीं.
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