कौन हैं 100 साल की स्वतंत्रता सेनानी लीबिया लोबो सरदेसाई, जिन्हें पद्मश्री से किया जाएगा सम्मानित
Advertisement
trendingNow12616874

कौन हैं 100 साल की स्वतंत्रता सेनानी लीबिया लोबो सरदेसाई, जिन्हें पद्मश्री से किया जाएगा सम्मानित

केंद्र सरकार ने शनिवार शाम पद्म पुरस्कार 2025 का ऐलान कर दिया है. लिस्ट में कई गुमनाम हस्तियां हैं जिन्हें पुरस्कार देने का ऐलान किया गया है. इनमें गोवा की 100 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी लीबिया लोबो सरदेसाई भी शामिल हैं. उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया जाएगा.

कौन हैं 100 साल की स्वतंत्रता सेनानी लीबिया लोबो सरदेसाई, जिन्हें पद्मश्री से किया जाएगा सम्मानित

नई दिल्लीः केंद्र सरकार ने शनिवार शाम पद्म पुरस्कार 2025 का ऐलान कर दिया है. लिस्ट में कई गुमनाम हस्तियां हैं जिन्हें पुरस्कार देने का ऐलान किया गया है. इनमें गोवा की 100 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी लीबिया लोबो सरदेसाई भी शामिल हैं. उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया जाएगा.

  1. लीबिया लोबो सरदेसाई ने लोगों को एकजुट किया था
  2. जंगली इलाके में भूमिगत रेडियो स्टेशन स्थापित किया था

दरअसल गोवा के स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली लीबिया लोबो सरदेसाई ने पुर्तगाली शासन के खिलाफ लोगों को एकजुट करने के लिए 1955 में एक जंगली इलाके में भूमिगत रेडियो स्टेशन ‘वोज दा लिबरडाबे (वॉयस ऑफ फ्रीडम)’ की स्थापना की थी. 

इसी तरह 150 महिलाओं को पुरुष प्रधान क्षेत्र ढाक वादन में प्रशिक्षित करने वाले पश्चिम बंगाल के ढाक वादक और कठपुतली का खेल दिखाने वाली पहली भारतीय महिला उन 30 गुमनाम नायकों में शामिल हैं जिन्हें पद्मश्री से सम्मानित करने की घोषणा की गई है. सरकारी बयान में शनिवार को यह जानकारी दी गई. 

ढाक वादक गोकुल चंद्र डे

पुरस्कार पाने वालों में पश्चिम बंगाल के 57 वर्षीय ढाक वादक गोकुल चंद्र डे भी शामिल हैं जिन्होंने पुरुष-प्रधान क्षेत्र में 150 महिलाओं को प्रशिक्षण देकर लैंगिक रूढ़िवादिता को तोड़ा. डे ने ढाक प्रकार का एक हल्का वाद्ययंत्र भी बनाया, जो वजन में पारंपरिक वाद्ययंत्र से 1.5 किलो कम था. उन्होंने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व किया और पंडित रविशंकर तथा उस्ताद जाकिर हुसैन जैसी हस्तियों के साथ कार्यक्रम किए. 

सैली होलकर

पद्मश्री सम्मान की सूची में शामिल महिला सशक्तीकरण की मुखर समर्थक 82 वर्षीय सैली होलकर ने लुप्त हो रही माहेश्वरी शिल्प कला को पुनर्जीवित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और पारंपरिक बुनाई तकनीकों में प्रशिक्षण देने के लिए मध्य प्रदेश के महेश्वर में हथकरघा स्कूल की स्थापना की. 

रानी अहिल्याबाई होल्कर की विरासत से प्रेरित और अमेरिका में जन्मीं सैली होलकर ने बुनाई की 300 साल पुरानी विरासत को पुनर्जीवित करने के लिए अपने जीवन के पांच दशक समर्पित कर दिए.

यह भी पढ़िएः बांग्लादेश को बॉर्डर पर बवाल की गलती का अहसास! बॉर्डर गार्ड प्रमुख को 'गुप्त' रूप से भेज रहा भारत

Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप. 

TAGS

Trending news

;