Advertisement
trendingPhotos2812993
photoDetails1hindi

भारत की पहली फिल्म 40 मिनट लंबी, जिसमें मर्दों ने निभाए औरतों के रोल!

भारत की पहली फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ को 1913 में दादासाहेब फालके ने बनाया था. यह एक मूक फिल्म थी, जिसकी कहानी सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र पर आधारित थी. इस फिल्म ने भारतीय सिनेमा की नींव रखी और फालके को भारतीय सिनेमा के जनक का दर्जा मिला.

राजा हरिश्चंद्र: भारत की पहली फिल्म

1/7
राजा हरिश्चंद्र: भारत की पहली फिल्म

राजा हरिश्चंद्र भारत की पहली फुल-लेंथ फीचर फिल्म थी, जो साल 1913 में बनाई गई. यह एक मूक फिल्म थी यानी इसमें कोई आवाज नहीं थी. फिल्म की कहानी हिन्दू पुराणों पर आधारित थी, जिसमें राजा हरिश्चंद्र अपने वचन और सत्य के लिए सब कुछ त्याग देते हैं. यह फिल्म लगभग 40 मिनट लंबी थी और इसे 4 रीलों में शूट किया गया था. उस समय के लिहाज से यह बहुत बड़ा तकनीकी काम था.

दादासाहेब फालके: सिनेमा के जनक

2/7
दादासाहेब फालके: सिनेमा के जनक

इस ऐतिहासिक फिल्म के निर्माता और निर्देशक थे दादासाहेब फालके, जिनका असली नाम था धुंडिराज गोविंद फालके. वे फोटोग्राफी, कला और तकनीकी ज्ञान में निपुण थे. एक बार उन्होंने इंग्लैंड में बनी फिल्म 'The Life of Christ' देखी और तभी उन्होंने ठान लिया कि वे भारत में भी फिल्म बनाएंगे. उनकी इसी सोच ने भारतीय सिनेमा की नींव रखी.

फिल्म बनाने की चुनौतियां

3/7
फिल्म बनाने की चुनौतियां

फालके के सामने कई मुश्किलें थीं. उनके पास ना तो ज्यादा पैसे थे, ना ही कोई बड़ी टीम. उन्होंने फिल्म की स्क्रिप्ट खुद लिखी, कैमरा इंग्लैंड से मंगवाया और डायरेक्ट व एडिटिंग भी खुद ही किया. उस दौर में महिलाएं फिल्मों में काम नहीं करती थीं, इसलिए महिला किरदार भी पुरुषों ने निभाए. ये सब दिखाता है कि कैसे उन्होंने सीमित साधनों में भी एक बड़ी फिल्म बना दी.

पहली स्क्रीनिंग और दर्शकों की प्रतिक्रिया

4/7
पहली स्क्रीनिंग और दर्शकों की प्रतिक्रिया

'राजा हरिश्चंद्र' की पहली पब्लिक स्क्रीनिंग 3 मई 1913 को बॉम्बे के कोरोनेशन थिएटर में हुई थी. यह दिन भारतीय सिनेमा के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है. फिल्म देखने आए दर्शक हैरान रह गए. उन्होंने पहली बार पर्दे पर भारतीय कहानी, संस्कृति और परंपरा को जीवित होते देखा. फिल्म को खूब सराहा गया और यही से भारत में सिनेमा का दौर शुरू हुआ.

टेक्नोलॉजी और प्रेसेंटेशन

5/7
टेक्नोलॉजी और प्रेसेंटेशन

इस फिल्म को ब्लैक एंड व्हाइट और मूक फार्मेट में शूट किया गया था. कलाकारों ने डायलॉग की जगह अपने हाव-भाव और शरीर की भाषा से कहानी को समझाया. ना कोई साउंड इफेक्ट था और न ही बैकग्राउंड म्यूजिक, लेकिन फिर भी फिल्म दर्शकों को बांधने में सफल रही. यह उस दौर की तकनीकी सीमाओं को पार कर बनाई गई एक शानदार फिल्म थी.

फिल्म का सामाजिक असर

6/7
फिल्म का सामाजिक असर

राजा हरिश्चंद्र सिर्फ एक फिल्म नहीं थी, बल्कि इसने भारत में एक नए माध्यम 'सिनेमा' की शुरुआत की. इस फिल्म की सफलता ने यह साबित कर दिया कि भारतीय कहानियां और संस्कृति को भी पर्दे पर उतारा जा सकता है. इसके बाद कई लोगों को प्रेरणा मिली और देशभर में फिल्म बनाने की कोशिशें शुरू हुईं.

दादासाहेब फालके का योगदान और सम्मान

7/7
दादासाहेब फालके का योगदान और सम्मान

फालके का योगदान इतना बड़ा था कि भारत सरकार ने उनके नाम पर दादासाहेब फालके पुरस्कार शुरू किया, जो भारतीय सिनेमा का सर्वोच्च सम्मान है. यह पुरस्कार उन लोगों को दिया जाता है, जिन्होंने फिल्मों के क्षेत्र में अद्भुत काम किया हो. फालके ने सिर्फ एक फिल्म नहीं बनाई, बल्कि एक पूरी इंडस्ट्री का बीज बोया.

ट्रेन्डिंग फोटोज़

;