यह एक छोटी नदी है जो एक समय सूख चुकी थी. स्थानीय लोगों ने मिलकर पारंपरिक तरीकों से इसे पुनर्जीवित किया. आज यह नदी जल संरक्षण और सामूहिक प्रयासों की मिसाल मानी जाती है, जो समाज को पर्यावरण के प्रति जागरूक रहने की प्रेरणा देती है.
अरवरी नदी को भारत की सबसे छोटी नदी कहा जाता है. इसकी कुल लंबाई लगभग 90 किलोमीटर है. यह नदी राजस्थान के अलवर जिले में बहती है. हालांकि, कुछ जगहों पर इसे 45 किलोमीटर भी बताया गया है, लेकिन सामान्य रूप से इसकी लंबाई 90 किमी मानी जाती है.
अरवरी नदी की शुरुआत राजस्थान के थानागाजी ब्लॉक के भानेटा गांव से होती है. यह इलाका अरावली की पहाड़ियों में आता है. अरावली की ये पहाड़ियां इस नदी का मुख्य स्रोत हैं, जहां से पानी बहकर नदी का रूप लेता है.
अरवरी नदी बहते हुए, अलवर जिले के सारसपुर क्षेत्र में जाकर, साई नदी से मिल जाती है. इस तरह यह एक छोटी मगर जुड़ी हुई नदी है, जो राजस्थान की सूखी भूमि में जीवन की रेखा जैसी मानी जाती है.
अरवरी नदी एक समय पूरी तरह से सूख चुकी थी. करीब 60 सालों तक इस नदी में पानी नहीं था. इस क्षेत्र में पानी की कमी और खेती की समस्या बहुत बढ़ गई थी. लेकिन यहां के गांववालों ने हार नहीं मानी और नदी को फिर से जिंदा कर दिखाया.
1980 और 1990 के दशक में, तारुण भारत संघ नाम की संस्था और स्थानीय लोगों ने मिलकर जल संरक्षण के प्रयास किए. उन्होंने पानी रोकने वाले छोटे बांध बनाए और जलस्तर को बढ़ाया. इसी प्रयास की वजह से अरवरी नदी दोबारा बहने लगी और आज भी बह रही है.
अरवरी नदी का सिर्फ पर्यावरणीय ही नहीं, बल्कि सामाजिक महत्व भी है. यहां के लोग हर साल नदी की देखभाल के लिए मिलकर अरवरी संसद का आयोजन करते हैं. यह एक अनोखा प्रयास है, जिसमें गांववाले खुद मिलकर नदी की सुरक्षा से जुड़े फैसले लेते हैं.
अरवरी नदी आज जल संरक्षण का एक बेहतरीन उदाहरण है. इस नदी ने यह दिखा दिया कि यदि समाज मिलकर काम करे तो प्रकृति को फिर से जीवित किया जा सकता है. कई स्कूलों और पर्यावरण संस्थाओं में अरवरी नदी को एक मॉडल के रूप में पढ़ाया जाता है.
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