जब बात नागा साधुओं की आती है, तो मन में एक रहस्यमयी तस्वीर उभरती है. भभूत से सना शरीर, रुद्राक्ष की माला, और त्रिशूल लिए साधु, जो कुंभ मेले में हुंकार भरते हैं. लेकिन सवाल ये है कि भारत में सबसे ज्यादा नागा साधु कहां रहते हैं? आइए इस सवाल का जवाब जानते हैं.
नागा साधु शैव संप्रदाय के साधु हैं, जो भगवान शिव के भक्त हैं और पूरी तरह तपस्या में डूबे रहते हैं. वहीं, इनका नाम ‘नागा’ इसलिए पड़ा, क्योंकि ये तेज और फुर्तीले होते हैं, जैसे सांप. ये नग्न या बहुत कम कपड़े पहनते हैं, शरीर पर भभूत लगाते हैं, और युद्ध कला में माहिर होते हैं. आदिगुरु शंकराचार्य ने 8वीं सदी में इनके अखाड़ों को संगठित किया, ताकि हिंदू धर्म की रक्षा हो सके. आज भारत में 13 प्रमुख अखाड़े हैं, जिनमें 7 शैव, 3 वैष्णव, और 3 उदासीन हैं अखाड़े हैं.
ऐसे में सवाल उठता है कि नागा साधु कहां रहते हैं? बता दें, नागा साधु एक जगह पर एकत्रित नहीं रहते हैं. यह अपने-अपने अखाड़ों में रहते हैं, या घोर तपस्या के लिए गुमनाम और दुर्गम स्थानों को चुनते हैं. वैसे ज्यादातर नागा साधु हिमालय की पहाड़ियों, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, और मध्य प्रदेश में रहते हैं. वहीं, ऋषिकेश, हरिद्वार, काशी (वाराणसी), और उज्जैन इनके बड़े ठिकाने हैं. इन जगहों पर उनके अखाड़े, आश्रम, और मंदिर बने हुए हैं. जूना अखाड़ा, जो सबसे बड़ा शैव अखाड़ा है. इसका मुख्य केंद्र काशी में है. इसके अलावा, प्रयागराज और नासिक में भी उनके आश्रम हैं. वहीं, कुंभ मेले के बाद ये साधु अक्सर हिमालय की गुफाओं या जंगलों में तप करने चले जाते हैं.
हिमालय नागा साधुओं का सबसे बड़ा आश्रय है. उत्तराखंड के ऋषिकेश, हरिद्वार, और गंगोत्री में आपको कई अखाड़ों के आश्रम मिलेंगे. मिसाल के तौर पर, नीलकंठ मंदिर जो ऋषिकेश के पास स्थित है. यहां के रास्ते में कई मठ और गुफाएं हैं, जहां नागा साधु तप करते हैं. हिमालय की ठंड और शांति इनके लिए तपस्या की सबसे अच्छी जगह है. कुछ साधु बद्रीनाथ और केदारनाथ के आसपास भी रहते हैं. इन जगहों पर वो गुफाओं में या छोटे-छोटे आश्रमों में रहते हैं, जहां बाहरी दुनिया का शोर नहीं पहुंचता.
कुंभ मेला वो मौका है, जब सबसे ज्यादा नागा साधु एक साथ दिखते हैं. प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन, और नासिक में हर 12 साल में लगने वाला महाकुंभ उनके लिए सबसे बड़ा उत्सव है. प्रयागराज में 2025 के महाकुंभ में लाखों नागा साधु पहुंचे. यहां वो शाही स्नान करते हैं और अपनी युद्ध कला दिखाते हैं. कुंभ में जूना अखाड़ा, निरंजनी अखाड़ा, और अटल अखाड़ा सबसे ज्यादा साधु लाते हैं. लेकिन कुंभ खत्म होते ही ये साधु फिर हिमालय, जंगल, या अपने अखाड़ों में लौट जाते हैं.
वहीं, बड़ी संख्या में नागा साधु अपने अखाड़ों के आश्रमों में रहते हैं. काशी में जूना अखाड़ा का बड़ा आश्रम है, जहां सैकड़ों साधु रहते हैं. उज्जैन में महानिर्वाणी अखाड़ा का ठिकाना है. प्रयागराज में निर्वाणी अखाड़ा का आश्रम कुंभ के बाहर भी साधुओं का अड्डा है. इन आश्रमों में साधु गुरु की सेवा, तपस्या, और योग करते हैं. कुछ साधु गुजरात के गिरनार और मध्य प्रदेश के ओंकारेश्वर में भी रहते हैं. ये आश्रम उनके लिए घर की तरह हैं, जहां वो परंपरा सीखते और पूजा करते हैं.
कुंभ के बाद कई नागा साधु जंगलों और गुफाओं में चले जाते हैं. मध्य प्रदेश के नर्मदा नदी के किनारे, छत्तीसगढ़ के जंगलों, और हिमाचल के पहाड़ों में उनकी गुफाएं मिलती हैं. ओंकारेश्वर और अमरकंटक जैसी जगहों पर भी वो तप करते हैं. इन जगहों पर वो अकेले या छोटे समूहों में रहते हैं, भभूत लगाकर, रुद्राक्ष पहनकर. उनकी जिंदगी इतनी सख्त है कि वो बिना खाए-पिए हफ्तों तप कर सकते हैं. ये साधु बाहरी दुनिया से दूर सिर्फ शिव की भक्ति में डूबे रहते हैं.
नागा साधु बनना कोई आसान काम नहीं. ये प्रक्रिया 5 से 12 साल तक चल सकती है. पहले कोई इंसान अखाड़े में शामिल होता है और गुरु की सेवा करता है. फिर उसे दीक्षा दी जाती है, जिसमें वो अपने पुराने जीवन को छोड़ देता है. प्रयागराज में बने साधु को ‘नागा’, उज्जैन में ‘खूनी नागा’, हरिद्वार में ‘बर्फानी नागा’, और नासिक में ‘खिचड़िया नागा’ कहते हैं. दीक्षा के बाद वो कोतवाल, पुजारी, महंत, या सचिव जैसे पद पाते हैं. श्री दिगंबर नागा बनना सबसे मुश्किल है, क्योंकि वो पूरी तरह नग्न रहते हैं.
नागा साधुओं की जिंदगी गृहस्थ से सौ गुना सख्त है. वो त्रिशूल, डमरू, रुद्राक्ष, और चिमटा रखते हैं. उनका अभिवादन होता है ‘ॐ नमो नारायण’. इतिहास में नागा साधुओं ने धर्म की रक्षा के लिए कई जंग भी लड़ीं हैं, जैसे 1761 में अहमदशाह अब्दाली के खिलाफ. आज भी वो कुंभ में अपनी ताकत दिखाते हैं. भारत में करीब 10 लाख साधु हैं, जिनमें नागा साधु हजारों में हो सकते हैं. सबसे ज्यादा वो हिमालय, काशी, और उज्जैन में रहते हैं, जहां उनकी तपस्या और वीरता की कहानियां गूंजती हैं
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