अहमदाबाद विमान हादसे में जिन 246 लोगों की दर्दनाक मौत हुई थी, जिनके परिवारों की मदद के लिए मुआवजे का ऐलान किया गया था उनका मुआवजा किसने लटका दिया? सोचिए आज अगर रतन टाटा जिंदा होते तो उनपर क्या बीतती?
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अहमदाबाद विमान हादसे के 60 दिन हो चुके हैं. आपको याद होगा कि 12 जून को हुए उस विमान हादसे में 241 लोगों की दर्दनाक मौत हुई थी. इसके अलावा मेडिकल के 5 छात्रों की जान भी गई थी. हादसे के ठीक बाद एयर इंडिया का मालिकाना हक रखने वाले टाटा समूह ने बड़ा ऐलान किया था. पीड़ित परिवारों के जख्म पर मुआवाजे का ऐसा मरहम लगाने की घोषणा की थी, जिससे उनका दर्द थोड़ा कम हो सके. तब टाटा समूह ने कहा था कि जिन-जिन लोगों की जान गई है, उनके परिवार वालों को एक-एक करोड़ रुपये दिए जाएंगे.
इसके अलावा बीमा की राशि अलग से मिलेगी. हादसे के 2 महीने बीत चुके हैं. मगर अब तक सिर्फ 194 परिवारों को मुआवाजे की राशि दी गई. ट्रस्ट के जरिए जो मुआवाजा दिया गया है, उसकी रकम 25 लाख रुपये है. एक करोड़ रुपये की घोषणा के बावजूद सिर्फ 25 लाख रुपये दिए गए हैं. बाकी 75 लाख रुपये प्रति परिवार और बीमा की राशि अभी तक नहीं दी गई है. वे तमाम परिवार अब तक मुआवजे के इंतजार में हैं.
#DNAWithRahulSinha | प्लेन के पर्दे बदल रहे..'हालात' कब बदलेंगे? अहमदाबाद प्लेन क्रैश का 'मुआवजा' कहां है?
12 जून को हुआ था अहमदाबाद विमान हादसा, हादसे के 2 महीने बाद भी पूरा मुआवजा नहीं। करोड़ मुआवजे का ऐलान, सिर्फ 25 लाख मिले#DNA #AhmedabadPlaneCrash @RahulSinhaTV pic.twitter.com/aXuz0fKvPQ
— Zee News (@ZeeNews) August 11, 2025
ये बात सही है कि मुआवजे से किसी की जिंदगी वापस नहीं लाई जा सकती है. मगर दूसरा सच ये भी है कि मुआवजे की राशि से कुछ रास्ते आसान जरूर हो जाते हैं. मगर सोचिए कि तृप्ति सोनी और उनके जैसे 246 परिवारों के साथ कैसा छल किया गया है? इन्होंने ऐसा कभी नहीं सोचा था. ऐसे वक्त में जब पीड़ित परिवार छला हुआ महसूस कर रहा है तो उन्हें टाटा समूह के रत्न याद आ रहे हैं.
अहमदाबाद विमान दुर्घटना से प्रभावित 65 से ज्यादा परिवारों की पैरवी करने वाले अमेरिकी अटॉर्नी माइक एंड्रयूज ने रतन टाटा को याद किया है. उन्होंने कहा है कि अगर वो जिंदा रहते तो एयरलाइंस कंपनी मुवाजा देने में इतनी देरी नहीं करती. अमेरिकी वकील माइक एंड्रयूज को अगर रतन टाटा याद आ रहे हैं तो यूं ही नहीं है. इसकी बहुत बड़ी वजह है. कई मौकों पर रतन टाटा ने ये दिखाया था कि कारोबारी हितों से ऊपर मानवता है. मानवीय संवेदना है और यही दिखा था करीब 17 साल पहले जब मुंबई में आतंकी हमला हुआ है. टाटा समूह के स्वामित्व वाले ताज होटल पर आतंकियों ने अटैक किया था. तब उन्होंने व्यक्तिगत तौर पर पीड़ितों और उनके परिवारों की मदद की. रतन टाटा की तत्पड़ता का नतीजा था कि टाटा समूह ने हमले में जान गंवाने वाले कर्मचारियों के परिवारों की मदद के लिए सिर्फ 20 दिनों के अंदर एक ट्रस्ट बनाया. इस ट्रस्ट ने इसी 20 दिनों में ही हमले में मारे गए, हर कर्मचारी के परिवार को 36 लाख से लेकर 85 लाख रुपये तक का मुआवजा दिया.
टाटा समूह ने आतंकी हमले में जान गंवाने वाले कर्मचारियों के पूरे जीवनकाल के वेतन के बराबर पैसे दिए.
टाटा ने घायल कर्मचारियों और मेहमानों के मेडिकल खर्चों को वहन किया.
आसपास के जो स्ट्रीट वेंडर्स और दुकानदार, हमले से प्रभावित हुए थे, उनके परिवारों को भी मदद की थी.
आतंकी हमले के पीड़ितों के 46 बच्चों की पढ़ाई-लिखाई की पूरी जिम्मेदारी भी उठाई.
रतन टाटा ने जो काम 20 दिनों के अंदर कर दिया था, वो काम उनके जाने के बाद टाटा समूह 60 दिन में भी नहीं कर पाया है. विमान हादसे के पीड़ित परिवार अब भी मुआवजे की राह देख रहे हैं. यही वजह है कि रतन टाटा ना सिर्फ भारतीयों को याद आ रहे हैं, बल्कि उनकी दरियादिली अमेरकियों को भी याद आ रही है.