Shiva Parvati Vivah: महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव और माता पार्वती की शादी हुई थी. यही वजह है कि इस दिन शिवभक्त उपवास रखते हैं. साथ जलाभिषेक और रुद्राभिषेक किए जाते हैं. लेकिन हजारों साल पहले ये विवाह किस मंदिर में हुआ था.
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Shiva Parvati Vivah in Triyuginarayan Mandir in Uttarakhand: फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि मनाई जाती है. आज महाशिवरात्रि मनाई जाएगी. शिव महापुराण के मुताबिक, फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को ही भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था. यही वजह है कि हर साल इस दिन महाशिवरात्रि मनाई जाती है. लेकिन क्या आपको पता है कि भगवान शिव और माता पार्वती ने सात फेरे कहां लिए थे?.
भगवान शिव और माता पार्वती ने लिए थे सात फेरे
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में स्थित त्रियुगीनारायण मंदिर को लेकर कहा जाता है कि भगवान भोलेनाथ ने इसी स्थान पर माता पार्वती के साथ सात फेरे लिए थे. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, त्रियुगीनारायण मंदिर की स्थापना त्रेता युग में हुई थी. इतना ही नहीं इस मंदिर का खास संबंध भगवान शिव और माता पार्वती से भी जुड़ा हुआ है.
यह है मान्यता
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, माता पार्वती राजा हिमावत की पुत्री थी. माता पार्वती भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाना चाहती थी. इसके लिए माता पार्वती ने कठिन तपस्या की. माता पार्वती की तपस्या से प्रसंन्न होकर भगवान शिव शादी को राजी हो गए. इसके बाद माता पार्वती और भगवान शिव ने इसी त्रियुगीनारायण मंदिर में सात फेरे लिए थे. कहा जाता है कि माता पार्वती और भगवान शिव ने जिस अग्नि को साक्षी मानकर सात फेरे लिए थे. वह अब भी जल रही है.
भगवान विष्णु हुए थे शामिल
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह में भगवान विष्णु माता पार्वती के भाई बनकर उनके विवाह में शामिल हुए थे. साथ ही सभी रीति रिवाजों का उन्होंने ही पालन किया था. इस दौरान ब्रह्मा जी पुरोहित बने थे. इसलिए विवाह के स्थान को ब्रह्म शिला भी कहा जाता है, जो कि त्रियुगीनारायण मंदिर के ठीक सामने स्थित है.
तीन जल कुंड तैयार किए गए थे
विवाह से पहले देवी-देवताओं के स्नान के लिए यहां तीन जल कुंड का निर्माण किया गया था, जिन्हें रूद्र कुंड, विष्णु कुंड और ब्रह्मा कुंड के नाम से जाना जाता है. इन तीनों कुंड में सरस्वती कुंड से पानी आता है. सरस्वती कुंड की उत्पत्ति भगवान विष्णु की नासिका से हुई थी. इसलिए ऐसा कहा जाता है कि इस कुंड में स्नान करने से जातकों को संतान सुख की प्राप्ति होती है.
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