उत्तरकाशी बना 'रिसर्च लैब': कागजों पर रह गया अर्ली वॉर्निंग सिस्टम, इंसानी जिंदगियों पर हो रहा प्रयोग?
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उत्तरकाशी बना 'रिसर्च लैब': कागजों पर रह गया अर्ली वॉर्निंग सिस्टम, इंसानी जिंदगियों पर हो रहा प्रयोग?

देश में साल 2004 में आई सुनामी ने जो कहर ढाया उससे हमे सीख मिली थी कि हम अगर समय रहते सावधान हो जाएंगे तो लाखों लोगों की जिंदगियों को बचाया जा सकता है.

Early Warning System Uttarkashi Disaster
Early Warning System Uttarkashi Disaster

5 अगस्त को उत्तराखंड के उत्तरकाशी में लोगों को ऐसी जल प्रलय की आपदा का सामना करना पड़ा कि सैकड़ों लोग काल के गाल में समा गए. उत्तरकाशी जिले के धाराली गांव में प्रकृति ने तबाही का तांडव मचा दिया. इसके पहले साल 2013 में आई जल प्रलय के बाद दावा किया गया था कि अब उत्तराखंड में अर्ली वॉर्निंग सिस्टम लगाया जाएगा ताकि ऐसी आपदाओं से बचा जा सके. 12 साल बाद भी नतीजा ढाक के तीन पात रह गया. अब उत्तरकाशी भी उत्तराखंड का एक 'रिसर्च लैब' बन गया है जहां फिर से अर्ली वॉर्निंग सिस्टम की चर्चा ने जोर पकड़ ली है.लेकिन प्रयोग के लिए इंसानी जिंदगियों पर प्रयोग हो रहे हैं.

इसके पहले देश में साल 2004 में आई सुनामी ने जो कहर ढाया उससे हमे सीख मिली थी कि हम अगर समय रहते सावधान हो जाएंगे तो लाखों लोगों की जिंदगियों को बचाया जा सकता है. ऐसी प्राकृतिक आपदाओं के कहर से बचने के लिए भारत ने भूकंप और सुनामी के लिए एक खास वॉर्निंग सिस्टम बनाया है. इसके पीछे की वजह कि हम सुरक्षित रह सकें. 2013 की जल प्रलयके 12 सालों के बाद भी उत्तराखंड में कागजों पर ही अर्ली वॉर्निंग सिस्टम रह गया.

क्या होते हैं अर्ली वॉर्निंग सिस्टम?
'अर्ली वॉर्निंग सिस्टम' इस नाम का जिक्र आते ही हर किसी के मन में ये सवाल जरूर खड़ा होता है आखिर क्या होता है ये सिस्टम. तो हम आपको बता दें कि अर्ली वॉर्निंग सिस्टम एक ऐसी तकनीकी जो आपके आस-पास आने वाले किसी भी संभावित प्राकृतिक संभावित खतरे की जानकारी समय से पहले दे देता है, ताकि ऐसी आपदाओं के आने से पहले होने वाले जान-माल के से बचाव किया जा सके. 

कैसे काम  करता है 'अर्ली वॉर्निंग सिस्टम'?
अर्ली वॉर्निंग सिस्टम के काम करने के चार चरण होते हैं जिसमें हम एक के बाद एक करके उससे होने वाले खतरों से आगाह होते हैं. इससे हमें बाढ़, भूकंप, महामारी सहित अन्य प्राकृतिक आपदाओं के बारे में पहले से अलर्ट मिल जाता है. ऐसे में हम समय रहते हुए आने वाले खतरे से लोगों की जान और माल का बचाव कर सकते हैं. ये सिस्टम सैटेलाइट सेंसर, मौसम विज्ञान और डेटा एनालिटिक्स के जरिए हमें आने वाले खतरे के बारे में सूचना देता रहता है. जैसे ही हमें खतरे की जानकारी मिलती है हम चेतावनी के रूप में रेडियो, टीवी और मोबाइल के जरिए इसे तुरंत लोगों तक पहुंचा देते हैं साथ में गाइडलाइंस भी जारी कर देते हैं ताकि भगदड़ न मचे. अलर्ट के बाद तुरंत राहत और बचाव की तैयारियां भी शुरू कर दी जाती हैं.

किन अलर्ट के लिए होता है अर्ली वॉर्निंग सिस्टम?

  • भूकंप, चक्रवात,सुनामी और बाढ़ जैसी प्रकृतिक आपदाओं के लिए 
  • डेंगू, मलेरिया, और कोविड जैसी महामारियों के लिए 
  • आतंकी हमला, साइबर हमला, युद्ध जैसे मौके पर 
  • कृषि संकट के लिए जैसे टिड्डी जैसे कीट पतंगों के आने से पहले 
  • आद्योगिक हादसों के लिए भी इस अलर्ट को उपयोग में लाते हैं

भारत के पास कौन-कौन से अलर्ट सिस्टम?
दुनिया के कई देशों में अर्ली वॉर्निंग सिस्टम बहुत ही अच्छे तरीके से काम कर रहा है वहीं अगर हम भारत की बात करें तो भारत में भी कई तरह के अर्ली वॉर्निंग सिस्टम काम कर रहे हैं. इसमें से IMD – जो हमें चक्रवात और हीटवेव और मौसम संबंधी जानकारियों को लेकर अलर्ट जारी करते हैं. INCOIS – ये वॉर्निंग सिस्टम हमें सुनामी आने से पहले अलर्ट करता है. इसके अलावा NDMA – जो समन्वय संस्था का अलर्ट जारी करती हैं और SAFAR- जो हमें वायु गुणवत्ता को लेकर अलर्ट जारी करता है.

उत्तराखंड में आने वाली आपदाओं के पीछे ये भी बड़ी वजह 
उत्तराखंड मौजूदा समय एक गंभीर पारिस्थितिक संकट से जूझ रहा है. बीते दो दशकों में यहां विकास परियोजनाओं की अंधाधुंध दौड़ और अनियंत्रित पर्यटन वृद्धि ने हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र की जड़ों को हिला दिया है.जहां कभी घने जंगल वर्षा जल को संजोकर पहाड़ों को जीवन देते थे, आज वहां 1.85 लाख हेक्टेयर (यानी 1,850 वर्ग किलोमीटर) क्षेत्रफल में फैले वनों की कटाई ने जलधारण क्षमता और जैव विविधता को गहराई से प्रभावित किया है. नदियां सिकुड़ने लगी हैं, झरने सूख रहे हैं, और मिट्टी का कटाव दिनों दिन बढ़ता जा रहा है. इसी दौरान, पर्यटन में भी जबरदस्त उछाल आया है. जहां दो दशक पहले पर्यटकों की संख्या सीमित थी, वहीं अब यह आंकड़ा तीन गुना बढ़कर 5 करोड़ से भी अधिक हो गया है.

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रवीन्द्र सिंह

5 सालों तक टेलीविजन मीडिया के बाद बीते एक दशक से डिजिटल मीडिया में सक्रिय, देश-विदेश की खबरों के साथ क्रिकेट की खबरों पर पैनी नजर

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