26th Kargil Vijaya Diwas: पूरे देश में कारगिल विजय दिवस धूमधाम से मनाया गया. पूरे देश को गर्व का अहसास कराने वाले इस खास मौके पर सेना, एयरफोर्स और नेवी ने जंग के विजेताओं और शहादत देने वाले सूरवीरों को याद किया. दुनिया जानती है कि भारत ने करगिल के छद्म युद्ध में भी पाकिस्तान की कमर तोड़ दी थी. लेकिन क्या आप जानते हैं कि कारगिल युद्ध के दौरान भारत का साथ देने वाले देश कौन थे और किसने पाकिस्तान का साथ दिया था.
कारगिल युद्ध वह समय था जब भारतीय सशस्त्र बलों ने पाकिस्तान को धूल चटाते हुए अपनी वीरता का परिचय दिया था. इस युद्ध में पड़ोसी देश को कूटनीतिक और सैन्य, दोनों मोर्चों पर करारी हार का सामना करना पड़ा था. ऑपरेशन सिंदूर की बात करें तो उस समय पाकिस्तान के प्रति अमेरिका का रवैया काफी नरम और सहानुभूतिपूर्ण था, लेकिन कारगिल युद्ध के दौरान स्थिति बिल्कुल अलग थी.
करगिल की जंग कोई प्रत्यक्ष युद्ध नहीं बल्कि पाकिस्तान का छद्म युद्ध थी. उसमें भी भारत ने हजारों फीट ऊपर बर्फीली चोटियों में पाकिस्तान को जमकर धूल चटाकर उसको उसकी औकात बता दी थी.
तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन पाकिस्तान से बेहद नाराज यानी खफा थे और उन्होंने नवाज शरीफ के साथ बेहद अभद्र व्यवहार किया था. दरअसल तत्कालीन पाकिस्तानी पीएम नवाज शरीफ की निजी मुलाकात की पेशकश को क्लिंटन ने ठुकरा दिया था. उन्होंने तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री से ये तक कह दिथा कि, 'मैंने आपको पहले ही बता दिया था कि अगर आप बिना शर्त अपने सैनिकों को वापस नहीं बुलाते हैं, तो यहां आने की कोई जरूरत नहीं है.'
रिपोर्ट्स के मुताबिक करगिल युद्ध के दौरान, जी-8 देशों भारत का समर्थन किया था. यूरोपियन यूनियन (EU) और आसियान संगठन भी भारत की नियंत्रण रेखा की अखंडता की रक्षा के नई दिल्ली के प्रयासों के साथ मजबूती से खड़े थे. आगे बढ़ती भारतीय सेनाओं और अंतरराष्ट्रीय दबाव की वजह से पाकिस्तान के पास पीछे हटने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. हालांकि भारतीय सेनाएं पहले ही पाकिस्तान को बहुत पीछे तक धकेल चुकी थीं. पाकिस्तान ने पुस्तैनी और परिचित चाल-चलन पर चलते हुए भारत की पीठ में छुरा भोका था. वो भी तब तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी दोनों देशों के बीच दशकों से चली आ रही दुश्मनी को खत्म करने के लिए बस से लाहौर गए थे.
1999 के कारगिल युद्ध के दौरान तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने पाकिस्तान के प्रति अपनी नाराजगी जता दी थी. 4 जुलाई, 1999 को क्लिंटन ने नवाज शरीफ से मुलाक़ात की, जिसके लिए क्लिंटन ने बेमन से हामी भरी थी. तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति क्लिंटन ने नवाज शरीफ से दो टूक कह दिया था कि उनकी ये बातचीत अमेरिका के अधिकारिक रिकॉर्ड में दर्ज की जाएगी. इस रवैये ने नवाज शरीफ को झकझोर दिया था. इस घटनाक्रम के बाद भारत-अमेरिका के बीच संबंधों में सुधार की प्रक्रिया शुरू हुई, जो एक दशक बाद में रणनीतिक साझेदारी में बदल गई. क्लिंटन की डांट फटकार सुनने के बाद नवाज शरीफ भारतीय सीमाओं में मौजूद अपने बचे खुचे सैनिकों को वापस बुलाने को मजबूर हो गए थे.
74 दिनों तक चले युद्ध के बाद 26 जुलाई, 1999 को आधिकारिक तौर पर पाकिस्तान द्वारा युद्धक्षेत्र से अपनी सेना वापस बुला लेने के साथ ही युद्ध समाप्त हो गया. अमेरिकी मदद से उसने युद्धविराम की आड़ में हार की शर्मिंदगी से बचने की कोशिश की थी. दरअसल, कारगिल युद्ध में पाकिस्तान हर मोर्चे पर पराजित हुआ था.
उस जंग में पाकिस्तान के साथ उसका साथी चीन था. जैसे ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान की पिटाई के समय उसे भारत की रणनीतिक लोकेशन की जानकारी पहुंचाई थी. लेकिन करगिल जंग के समय चीन ने पाकिस्तान की अलग तरह से मदद की थी.
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