Nangal Dam to Mukerian Railway Line: भारत में रेलवे सेवा सबसे किफायती और आसान है, क्योंकि इसकी पहुंच करीब-करीब सभी जगह है. लेकिन एक ऐसा भी जहां के लोग 40 साल से ट्रेन का इंतजार कर रहे हैं. यहां के लोग ट्रेन का इंतजार करते- करते बूढ़ा हो गए. कई तो इस दुनिया को अलविदा भी कह दिए. इसकी सबसे बड़ी वजह लालफीताशाही है, जिसके कारण प्रोजेक्ट का काम उलझा हुआ है. चलिए जानते हैं ये प्रोजेक्ट कहां है?
हम बात कर रहे हैं नांगल डैम-तलवाड़ा रेलवे लाइन की, जो अपनी पहली मंज़ूरी के करीब चार दशक बाद भी अधूरी है. 2,000 करोड़ रूपये की इस परियोजना की प्रगति धीमी रही है, और सिर्फ 87 फीसदी काम ही पूरा हुआ है. पंजाब के तलवाड़ा क्षेत्र के स्थानीय लोग उस ट्रेन का इंतज़ार करते-करते बूढ़े हो गए हैं जो अभी तक नहीं आई है. भूमि विवाद, वन विभाग की मंज़ूरी में देरी और मुआवज़े की वजह से है काम में बाधा आ रही है.
1981-82 में जब सरकार ने नंगल डैम से मुकेरियां तक तलवारा होते हुए रेलवे लाइन को मंज़ूरी दी थी, तो इसका मकसद पंजाब और हिमाचल प्रदेश के दूरदराज के इलाकों को जोड़ना था. 1985 में इसका काम शुरू हुआ था. टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, तब से कई पीढ़ियां अपने गांवों से होकर रेलगाड़ियां गुजरते देखने का इंतज़ार कर रही हैं. अब 2025 तक इस प्रोजेक्ट का केवल 87 फीसदी ही पूरा हो पाया है. 2,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की लागत वाली यह प्रोजेक्ट देश में सबसे लंबे वक्त से लंबित रेलवे परियोजनाओं में से एक है.
इस प्रोजेक्ट की अधिसूचना 1981 में जारी की गई थी. कुछ शुरुआती काम 1985 में शुरू हुआ था. तब से यह परियोजना लगभग ठप पड़ी है.हालांकि, पॉइंट पिलर खड़े कर दिए गए हैं. लेकिन गांव वाले ये पिलर देखते-देखते बूढ़े हो गए. अब 62 साल के हो चुके जतिंदरपाल सिंह ने याद करते हुए टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि जब वह छोटे थे, तब उनके गांव ब्रिंगली में पहली बार सर्वेक्षण टीम आए थे. व्यास नदी के किनारे बसा उनका गांव, उस नक्शे पर चुपचाप दिखाई देता है, जहां से दशकों पहले रेलवे लाइन गुज़र जानी चाहिए थी. जतिंदरपाल ने कहा, 'यह प्रोजेक्ट 1985 में शुरू होनी थी और कुछ निर्माण कार्य भी शुरू हुआ, लेकिन चारों ओर देखिए, और मुझे देखिए. मैं 62 साल का हूं और अभी भी ट्रेन के आने का इंतज़ार कर रहा हूं.'
हालांकि, अभी तक नंगल डैम से दौलतपुर चौक तक 60 किलोमीटर का हिस्सा चालू है. दौलतपुर चौक और तलवारा के बीच बाकी 23.7 किलोमीटर एलिवेटेड कॉरिडोर पर काम चल रहा है. वह हिस्सा अब आधा पूरा हो चुका है. लेकिन तलवारा के पास 2.5 से 3 किलोमीटर का एक अहम हिस्सा अभी भी अधिग्रहित नहीं किया गया है, और इस आखिरी बाधा के कारण परियोजना अनिश्चित काल के लिए ठप हो सकती है. रेल मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि जब तक पंजाब वह ज़मीन नहीं सौंप देता और जरूरी फॉरेस्ट मंज़ूरियाँ नहीं मिल जातीं, तब तक कोई वास्तविक प्रगति नहीं हो सकती.
काम पूरा करने के लिए पंजाब को करीब 72 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण करना होगा. यह कोई छोटी मांग नहीं है और यह समस्या का केवल एक पहलू है. मिट्टी निकालने के लिए वन मंज़ूरी भी प्रक्रिया में अटकी हुई है. रेल मंत्रालय ने पर्यावरण मंत्रालय को इस बारे में सूचित किया है, लेकिन कोई समय-सीमा तय नहीं की गई है. इस बीच, तलवारा और आसपास के गांवों के स्थानीय लोग मुआवज़े को लेकर विवादों में उलझे हुए हैं. कई लोगों का कहना है कि उन्हें सीमा पार हिमाचल प्रदेश में रहने वाले उनके समकक्षों को मिलने वाले मुआवज़े का बहुत कम हिस्सा दिया गया.
एक लैंड ऑनर ने कहा, 'हिमाचल में भूमि 1 लाख रुपये प्रति मरला (25.3 वर्ग मीटर) की दर से अधिग्रहित की गई, जबकि पंजाब में हमें केवल 8,500 रुपये प्रति मरला की पेशकश की गई.' कई ग्रामीणों ने मामला अदालत में ले लिया है. कुछ ने तो उचित भुगतान या भूमि अधिग्रहण के विकल्प मिलने तक ज़मीन देने से साफ़ इनकार कर दिया है. हालांकि, किसान इस परियोजना के खिलाफ नहीं है. एक किसान ने कहा, 'हम परियोजना के खिलाफ नहीं हैं. लेकिन हमें न्याय चाहिए। हमें ज़मीन के बदले ज़मीन दो या फिर उचित भुगतान करो.
बावजूद इसके हाल के महीनों में कुछ नई चीजें सामने आई हैं. हाल ही में हुई बैठक में प्रधानमंत्री की अगुवाई में होने वाली एक मासिक सरकारी समीक्षा में खुद नरेंद्र मोदी ने व्यक्तिगत रूप से इस परियोजना की स्थिति की समीक्षा की. उन्होंने दो अन्य लंबे वक्त से रुकी हुई परियोजनाओं की भी समीक्षा की.
सूत्रों का कहना है कि मोदी लंबी देरी से नाखुश हैं और उन्होंने इसी महीने नांगल-तलवाड़ा रेल लाइन की अलग से समीक्षा करने का अनुरोध किया है. निर्माण कंपनियां एनपी जैन कंस्ट्रक्शन कंपनी, आरकेसी कंपनी और एचएमएम इंफ्रास्ट्रक्चर अंतिम खंड का काम संभाल रही हैं. जबकि एलिवेटेड कॉरिडोर का ज़्यादातर हिस्सा आरकेसी संभाल रही है. नया टारगेट 31 दिसंबर, 2027 है.
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