रक्षाबंधन से जुड़ी रानी कर्णावती और मुगल बादशाह हुमायूं की कहानी लोककथा के रूप में मशहूर है. कहा जाता है रानी ने रक्षा के लिए राखी भेजी, लेकिन इतिहास में इसका ठोस सबूत नहीं मिलता. रानी की बहादुरी सच है, पर राखी वाली घटना प्रमाणित नहीं है.
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रक्षाबंधन सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि भाई-बहन के रिश्ते का भरोसा और प्यार है. सदियों से यह त्योहार अलग-अलग रूप में मनाया जाता रहा है. इसी से जुड़ी एक मशहूर कहानी है, मेवाड़ की रानी कर्णावती और मुगल बादशाह हुमायूं की. कहा जाता है कि रानी ने अपनी रक्षा के लिए हुमायूं को राखी भेजी थी. लेकिन क्या यह सच है? चलिए, इतिहास की नजर से देखते हैं.
रक्षाबंधन का पुराना रिश्ता
भारत में रक्षाबंधन की परंपरा बहुत पुरानी है. अलग-अलग समय और जगहों पर इसे अलग मायनों में मनाया गया, कहीं भाई-बहन का बंधन, तो कहीं किसी की सुरक्षा का वादा. समय के साथ कई किस्से जुड़ते गए, जिनमें रानी कर्णावती और हुमायूं की कहानी सबसे ज्यादा सुनी जाती है.
रानी कर्णावती कौन थीं?
रानी कर्णावती 16वीं सदी में मेवाड़ की राजघराने से थीं. 1535 में, गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने चित्तौड़गढ़ पर हमला किया. उस समय रानी ने राज्य की कमान संभाली. दुश्मनों से घिरने पर उन्होंने जौहर किया, यानी सम्मान बचाने के लिए खुद को आग के हवाले कर दिया. उनकी बहादुरी इतिहास में हमेशा याद की जाती है.
मशहूर लोककथा: राखी और हुमायूं
लोककथा कहती है कि जब चित्तौड़ पर संकट आया, तो रानी कर्णावती ने मुगल बादशाह हुमायूं को राखी भेजकर मदद मांगी. हुमायूं ने इसे सम्मान के रूप में स्वीकार किया और तुरंत अपनी सेना लेकर निकल पड़े. यह किस्सा इतना लोकप्रिय हुआ कि आज भी रक्षाबंधन पर अक्सर सुनाया जाता है.
इतिहास क्या कहता है?
इतिहासकारों के मुताबिक, इस कहानी का सीधा सबूत उस समय के लिखित रिकॉर्ड में नहीं मिलता. हुमायूं के संस्मरण और उस दौर के दस्तावेज इस घटना का जिक्र नहीं करते. माना जाता है कि यह कहानी बाद में लोककथा के रूप में फैली. ब्रिटिश लेखक जेम्स टॉड ने अपनी किताब में इसे लिखा और यहीं से यह ज्यादा प्रसिद्ध हो गई. यानी, रानी की बहादुरी सच है, लेकिन राखी भेजने वाली बात ऐतिहासिक रूप से साबित नहीं है.