Kolkata Rape Case: क्या पॉलीग्राफ टेस्ट 100% सही होता है, क्या इससे खुल जाएंगे कोलकाता रेप केस के सारे राज?
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Kolkata Rape Case: क्या पॉलीग्राफ टेस्ट 100% सही होता है, क्या इससे खुल जाएंगे कोलकाता रेप केस के सारे राज?

 Kolkata rape murder case: कोर्ट ने कोलकाता रेप केस मामले में पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष और मृत विक्टिम के 4 साथियों का पॉलीग्राफ टेस्ट कराने की इजाजत दी है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि पॉलीग्राफ टेस्ट 100% सही होता है या नहीं?

Kolkata Rape Case: क्या पॉलीग्राफ टेस्ट 100% सही होता है, क्या इससे खुल जाएंगे कोलकाता रेप केस के सारे राज?

नई दिल्ली: Kolkata rape murder case: कोलकाता रेप केस मामले की गुत्थी को सुलझाने के लिए CBI लगातार प्रयास कर रही है. अब इस मामले में  मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष और महिला ट्रेनी डॉक्टर के 4 साथियों का पॉलीग्राफ टेस्ट कराया जाएगा. सियालदह कोर्ट ने CBI को पॉलीग्राफ टेस्ट कराने की मंजूरी दे दी है. हालांकि, आरोपी संजय रॉय का पॉलीग्राफ टेस्ट नहीं हो सकेगा, क्योंकि इस पर उसने अपनी सहमति नहीं दी है.

  1. टेस्ट के लिए आरोपी की सहमति जरूरी
  2. इसका रिजल्ट नहीं माना जाता सबूत

क्या होता है पॉलीग्राफ टेस्ट? (What is Polygraph Test)
पॉलीग्राफ टेस्ट टेस्ट को आप लाई डिटेक्टर टेस्ट भी कह सकते हैं. ये टेस्ट करने के दौरान जब सवाल किए जाते हैं और सामने वाला झूठ बोलता है, तो वह पकड़ा जाता है. पूछताछ के दौरान कार्डियो-कफ या सेंसेटिव इलेक्ट्रोड सरीखे उपकरण उक्त व्यक्ति से जोड़ दिए जाते हैं. झूठ बोलते हुए उसकी शारीरिक प्रतिक्रिया बदलती है. मसलन, दिल की धड़कन की रफ्तार बदलती है, सांस लेने में बदलाव दीखता है और पसीना आने लगता है. इसके अलावा, रक्तचाप और रक्त प्रवाह भी मापा जाता है, इससे ये अंदाजा लग जाता है कि व्यक्ति झूठ बोल रहा है या सच.

क्या 100% सही है पॉलीग्राफ टेस्ट?
पॉलीग्राफ टेस्ट और नार्को टेस्ट 100% सही साबित नहीं हो सकता. साइंस इसमें भी डाउट मानता है. चिकित्सा के क्षेत्र में पॉलीग्राफ टेस्ट और नार्को टेस्ट विवादास्पद  विषय माने जाते हैं, जिनकी सटीकता पर पूर्ण विश्वास नहीं किया जा सकता. हालांकि, जांच एजेंसियां ऐसे टेस्ट को प्राथमिकता देती हैं.

आरोपी की सहमति जरूरी
जिस व्यक्ति का पॉलीग्राफ टेस्ट होना है, इसके लिए उसकी सहमति जरूरी है. साल 2010 में एक मामले में भारत के तत्कालीन CJI केजी बालाकृष्णन, न्यायमूर्ति आरवी रवींद्रन और जेएम पांचाल एक फैसला सुनाया. इसमें कहा कि आरोपी की सहमति के आधार को छोड़कर’ कोई झूठ पकड़ने वाला टेस्ट नहीं किया जाना चाहिए. साथी ही साल 2000 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा प्रकाशित ‘आरोपी पर पॉलीग्राफ टेस्ट करने के लिए दिशानिर्देश’ की भी सख्ती से पालना होनी चाहिए. इसका मतलब है कि आरोपी सहमति दे, तभी उसका पॉलीग्राफ टेस्ट हो सकता है. न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने उसे सहमति दर्ज करानी होती है. 

क्या इसके रिजल्ट को सबूत माना जाता है?
पॉलीग्राफ टेस्ट में यदि कोई अपना जुर्म कबूल कर भी लेता है तो उसे 'स्वीकारोक्ति' नहीं माना जाता. यदि इस टेस्ट की मदद से बाद में पुलिस या जांच एजेंसी कोई सबूत खोज लेती है, तब वही सबूत होगा, न की दिया गया पॉलीग्राफ टेस्ट के दौरान दिया गया बयान. साल 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने ‘सेल्वी बनाम कर्नाटक राज्य' मामले में कहा था कि यदि आरोपी टेस्ट के दौरान उस स्थान का पता बताता है जहां उसने हत्या का हथियार छिपाया है और पुलिस वह हथियार खोज लेती है, तो हथियार ही सबूत माना जाएगा.

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