Chandrashekhar Azad police story: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में चंद्रशेखर आजाद का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है. उनकी निडरता, देशप्रेम और अंग्रेजों को चकमा देने की उनकी अनोखी चालाकी ने उन्हें एक क्रांतिकारी बना दिया.
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23 जुलाई को चंद्रशेखर की जयंती के मौके पर उनके जीवन से जुड़े कई किस्से याद किए जाते हैं, जो बताते हैं कि कैसे उन्होंने 'आजाद' नाम को सही साबित किया. ऐसा ही एक किस्सा उनकी असाधारण बुद्धिमत्ता और अंग्रेजों की आंखों में धूल झोंकने का है. जिसका जिक्र इतिहासकार और लेखक मदनलाल वर्मा 'क्रांति' की पुस्तक क्रांतिवीर चंद्रशेखर आजाद में मिलता है.
जब अंग्रेजों की नाक के नीचे से निकले 'आजाद'
यह किस्सा 1920 के दशक के मध्य का है, जब चंद्रशेखर आजाद हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) के लिए काम कर रहे थे और अंग्रेजों के लिए सबसे वांछित क्रांतिकारियों में से एक थे. पुलिस उन्हें पकड़ने के लिए लगातार जाल बिछा रही थी. एक बार की बात है, जब आजाद उत्तर प्रदेश के कानपुर में थे. अंग्रेजों को उनके कानपुर में होने की खबर लग चुकी थी और पुलिस ने शहर में अपनी निगरानी बहुत कड़ी कर दी थी. जगह-जगह छापे मारे जा रहे थे और खुफिया तंत्र को भी सक्रिय कर दिया गया था.
आजाद को पता चला कि पुलिस उनके पीछे है. उन्होंने तुरंत अपनी रणनीति बदली. उनकी पहचान एक क्रांतिकारी के तौर पर थी, जो अक्सर धोती-कुर्ता और रिवाल्वर के साथ रहता था. लेकिन इस बार आजाद ने एक ऐसा रूप अपनाया, जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था.
गांधी टोपी और पुलिस थाने की नौकरी
अजाद ने अंग्रेजों को चकमा देने के लिए एक नायाब तरकीब सोची. उन्होंने अपनी वेशभूषा बदल दी. उन्होंने एक आम नागरिक का रूप लिया, एक कुर्ता-पायजामा पहना और सबसे हैरान करने वाली बात यह थी कि उन्होंने अपने सिर पर गांधी टोपी लगा ली. उस समय 'गांधी टोपी' शांतिपूर्ण आंदोलन और असहयोग आंदोलन से जुड़ी थी.
इतना ही नहीं, मदनलाल वर्मा 'क्रांति' अपनी किताब में बताते हैं कि आजाद ने उसी कानपुर शहर के एक पुलिस थाने में जाकर पुलिसकर्मी के रूप में नौकरी के लिए आवेदन कर दिया. उन्होंने बड़ी चतुराई से अपना नाम और पहचान बदल ली. अंग्रेज पुलिस अधिकारी, जो आजाद को खतरनाक क्रांतिकारी मानते थे, उनके सामने बैठे इस सामान्य दिखने वाले व्यक्ति पर बिल्कुल शक नहीं कर पाए. आजाद ने अपनी नौकरी ईमानदारी से की, थाने की गतिविधियों पर नजर रखते रहे और अंग्रेजों की योजनाओं की जानकारी भी हासिल करते रहे.
ब्रिटिश हुकूमत रह गई हैरान
कुछ दिनों तक थाने में काम करने के बाद, जब आजाद को लगा कि उनका काम हो गया है और खतरा टल गया है, तो उन्होंने चुपचाप नौकरी छोड़ दी और वहां से निकल गए. जब बाद में पुलिस को इस बात का एहसास हुआ कि जिस शख्स को वे पूरे शहर में ढूंढ रहे थे, उन्हीं के थाने में नौकरी कर रहा था, तो वे हैरान और शर्मिंदा रह गए.
चंद्रशेखर आजाद ने अपने नाम को सार्थक करते हुए हमेशा 'आजाद' ही रहे और अंग्रेजों की पकड़ में कभी नहीं आए, जब तक कि उन्होंने खुद अपनी आखिरी गोली से अपना जीवन समाप्त नहीं कर लिया.
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