दुनियाभर में अलग-अलग जुर्म के लिए अलग-अलग सजाएं दी जाती हैं. ऐसे में फांसी की सजा का मुद्दा दुनिया भर में चर्चा का विषय बना रहता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में सबसे पहले किसे फांसी की सजा दी गई थी, आइए जानते हैं...
भारत में सबसे पहले फांसी की सजा नंदकुमार को दी गई थी. नंदकुमार को 5 अगस्त 1775 में फांसी की सजा सुनाई गई थी. हालांकि, नंदकुमार को झूठे मुकदमे में फंसाकर फांसी की सजा दी गई थी.
नंदकुमार ब्रिटिश शासन में बंगाल में टैक्स एकत्रित करने का काम करते थें, उन्हें ब्रिटिशर्स के द्वारा की गई घूसखोरी आदि मामलों के बारे में पता चल गया, जिस कारण उन पर मुकदमा चलाया गया. आइए शुरू से पूरा मामला समझते हैं.
तो बात है प्लासी के युद्ध की, जब सिराजुद्दौला को हराकर मीर जाफर बंगाल का नवाब बना. 1765 में मीर जाफर की मौत हो गई. उसके बाद उनकी पत्नी मुन्नी बेगम ने सत्ता संभाली. मुन्नी ने कुछ रुपये देकर रॉबर्ट क्लाइव का समर्थन हासिल किया.
रॉबर्ट क्लाइव के साथ हुए इस समझौते से मुन्नी के बेटों की गद्दी सुरक्षित हो गई. फिर कुछ समय बाद बंगाल के गवर्नर वारेन हेस्टिंग बनें. मुन्नी पर वारेन हेस्टिंग्स के साथ मिलकर भ्रष्टाचार करने के आरोप लगाएं. जिससे ईस्ट इंडिया कंपनी के डायरेक्टर्स की अदालत ने मुन्नी बेगम को युवा नवाब के संरक्षित पद से हटा दिया.
मीर जाफर की पत्नी मु्न्नी बेगम से नवाब के संरक्षक के लिए वारेन हेस्टिंग घूस मांगी, जिसके बारे में नंदकुमार को पता चल गया जिससे उन्होंने वारेन हास्टिंग के खिलाफ घूस लेने का आरोप लगाया.
अंगेजी अदालत में नंदकुमार की सच्चाई फीकी पड़ गई. ब्रिटिश कोर्ट में नंदकुमार के आरोप प्रमाणित नहीं हो पाए. उल्टा वारेन हेस्टिंग ने जालसाजी और हत्या के झूठे केस में फंसा दिया.
कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश सर एलिजाह इंपी, वारेन हेस्टिंग के बचपन का दोस्त थे. फिर वही हुआ जो अंग्रेज चाहते थें, यह मुकदमा 7 दिन तक चला और फिर नंदकुमार को 5 अगस्त 1775 में फांसी पर लटका दिया. यह भारत में दी गई सबसे पहली फांसी की सजा थी.
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