Anand Mahindra भी रह गए दंग जब देखा सरकारी स्कूल में नहीं है कोई बैकबेंचर, इस फिल्म ने दिया था आइडिया
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Anand Mahindra भी रह गए दंग जब देखा सरकारी स्कूल में नहीं है कोई बैकबेंचर, इस फिल्म ने दिया था आइडिया

Anand Mahindra on Government School: यह कॉन्सेप्ट अब केरल के कम से कम आठ अन्य स्कूलों में आ गया है और भारत के अन्य हिस्सों में भी एकेडमिसियन का ध्यान खींच रहा है.

Anand Mahindra भी रह गए दंग जब देखा सरकारी स्कूल में नहीं है कोई बैकबेंचर, इस फिल्म ने दिया था आइडिया

Screen To Classroom: केरल का एक सरकारी स्कूल अपनी क्लासरूम डायनामिक्स में बदलाव लाकर पूरे देश का ध्यान खींच रहा है. कोल्लम के वलकोम में रामाविलासम् वोकेशनल हायर सेकेंडरी स्कूल (RVHSS) ने "बैकबेंचर्स" की पुरानी धारणा को खत्म करते हुए एक नई बैठने की व्यवस्था शुरू की है, जहां हर छात्र अब पहली लाइन में बैठता है.

फिल्म से मिली मोटिवेशन
इस अनोखे विचार की प्रेरणा हाल ही में आई मलयालम फिल्म 'स्थानार्थी श्रीकुट्टन' के एक सीन से मिली. इस फिल्म में 7वीं क्लास का एक छात्र पीछे बैठने के लिए मजाक उड़ाए जाने के बाद इस तरह की व्यवस्था का सुझाव देता है.

फिल्म के निर्देशक विनेश विश्वनाथन ने बताया, "पीछे की बेंच पर बैठने के अपमानजनक एक्सपीरिएंस ने ही उसे ऐसा विचार दिया. मैंने कभी नहीं सोचा था कि इसे इतना ध्यान मिलेगा. यह कोई हमारा बनाया हुआ विचार नहीं है, बल्कि पहले डिस्ट्रिक्ट प्राइमरी एजुकेशन प्रोग्राम (DPEP) के तहत हमारी क्लासरूम में ऐसी बैठने की व्यवस्था थी, जो बीच में कहीं खो गई थी."

उन्होंने आगे कहा, "मुझे एक मैसेज मिला कि पंजाब के एक स्कूल ने भी इसे अपनाया है, जब प्रिंसिपल ने OTT प्लेटफॉर्म पर यह फिल्म देखी. उन्होंने स्टूडेंट्स को भी फिल्म दिखाई. मुझे खुशी है कि इसे नेशनल लेवल पर ध्यान मिला."

मंत्री और हेडमास्टर का सपोर्ट
इस मॉडल को केरल के मंत्री के. बी. गणेश कुमार का शुरुआती सपोर्ट मिला, जिनके परिवार का RMVHSS स्कूल है. फिल्म रिलीज होने से एक साल पहले ही मंत्री ने इसे देखा था, और फिर स्कूल स्टाफ के साथ चर्चा शुरू करके एक प्राइमरी क्लास में इस नई व्यवस्था को लागू किया. नतीजे इतने उत्साहजनक थे कि अब यह सिस्टम स्कूल के सभी निचले प्राइमरी सेक्शन में लागू कर दिया गया है.

स्कूल के हेडमास्टर सुनील पी. शेखर ने बताया कि यह व्यवस्था उन्हें हर बच्चे पर बराबर ध्यान देने और बैकबेंचर्स के उपेक्षित या विचलित होने की धारणा को तोड़ने में मदद करती है.

करीब 30 साल का एक्सपीरिएंस रखने वाली वयोवृद्ध टीचर मीरा ने कहा, "मैं क्लासरूम के हर छात्र पर ध्यान दे पा रही हूं और उनमें से हर एक की बेहतर देखभाल कर पा रही हूं. छात्र भी खुश हैं क्योंकि वे क्लासरूम में सभी छात्रों के चेहरों को देख पाते हैं और टीचर पर पूरा ध्यान देते हैं."

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नेशनल लेवल पर फैल रहा है यह विचार
यह कॉन्सेप्ट अब केरल के कम से कम आठ अन्य स्कूलों में आ गया है और भारत के अन्य हिस्सों में भी एकेडमिसियन का ध्यान खींच रहा है. जबकि सोशल मीडिया पर कुछ आलोचक भीड़भाड़ वाली क्लासरूम में इसकी व्यावहारिकता पर सवाल उठाते हैं, विश्वनाथन का कहना है कि ऐसी स्थितियां स्कूल के मानदंडों के खिलाफ हैं, और अधिकारी इस पर ध्यान दे रहे हैं.

दिलचस्प बात यह है कि आनंद महिंद्रा ने भी सोशल मीडिया पर इस विचार पर पॉजिटिव प्रतिक्रिया दी, इसे एक स्वागत योग्य कदम बताया, हालांकि उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि उन्हें "बैकबेंचर" होने की पहचान पसंद है.

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