2025 का फैसला, 2027 में असर, इंडिया ब्लॉक से अलग होने के AAP के ऐलान का क्या है मतलब?
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2025 का फैसला, 2027 में असर, इंडिया ब्लॉक से अलग होने के AAP के ऐलान का क्या है मतलब?

AAP Analysis: अब आप ने गठबंधन से अलग होने का औपचारिक रूप से ऐलान कर दिया. इसकी आशंका पहले से ही थी और गठबंधन के भविष्य पर पहले से ही सवालिया निशान भी उठ रहे थे, लेकिन सवाल है कि आप ने इस समय यह फैसला क्यों किया?

2025 का फैसला, 2027 में असर, इंडिया ब्लॉक से अलग होने के AAP के ऐलान का क्या है मतलब?

आदित्य पूजन, नई दिल्ली: सियासत की कलाबाजियां भी अजीब होती हैं. करीब सवा साल पहले लोकसभा के चुनाव हुए थे, तब कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की नजदीकियां देश की राजनीति में एक नई उम्मीद पैदा कर रही थीं. केवल ये दोनों पार्टियां ही क्यों, बीजेपी की विरोधी कमोबेश हर दल चुनाव में इंडिया ब्लॉक के बैनर तले एकजुट हुई थीं. सबका मकसद एक ही था- बीजेपी को हराना, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया और अब इस तथाकथित विपक्षी एकता की परतें उघड़ने लगी हैं. पिछले एक साल में राज्यों में हुए विधानसभा और स्थानीय चुनावों में इस गठबंधन में शामिल पार्टियां खुलकर एक-दूसरे के खिलाफ लड़ीं.

आप का ऐलान

अब आप ने गठबंधन से अलग होने का औपचारिक रूप से ऐलान कर दिया. इसकी आशंका पहले से ही थी और गठबंधन के भविष्य पर पहले से ही सवालिया निशान भी उठ रहे थे, लेकिन सवाल है कि आप ने इस समय यह फैसला क्यों किया? कायदे से देखें तो अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली पार्टी दिल्ली में सत्ता गंवाने के बाद कमजोर हुई है और उसे दूसरे दलों के साथ की जरूरत है. फिर गाजे-बाजे के साथ गठबंधन से अलग होने का ऐलान क्यों किया गया, यह समझना बेहद अहम है.

बिहार बड़ा फैक्टर नहीं

तमाम लोग आप के इस फैसले को आगामी बिहार विधानसभा चुनाव से जोड़ रहे हैं, लेकिन यह फैसले को कमतर करके आंकना होगा. आप ने बिहार की सभी विधानसभा सीटों पर अलग चुनाव लड़ने का ऐलान किया है, लेकिन इससे सूबे के चुनावी माहौल पर खास असर पड़ने की संभावना नहीं है. बिहार में बीजेपी-जेडीयू का मुकाबला आरजेडी-कांग्रेस के महागठबंधन से है. आप का बिहार में अस्तित्व न के बराबर है. चुनाव के लिए अब करीब तीन महीने का ही समय बचा है.

आप कितनी भी कोशिश कर ले, इतने कम समय में राज्य में अपनी सियासी जमीन तैयार नहीं कर सकती. फिर, अरविंद केजरीवाल जिस भ्रष्टाचार और परिवारवाद-विरोध के नाम पर अपनी राजनीति को आकार देते हैं, उस पर बिहार में प्रशांत किशोर का जन सुराज पहले ही काफी हद तक कब्जा कर चुका है. यानी आप के अलग चुनाव लड़ने से आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन को खास नुकसान होने की संभावना नहीं है.

स्पष्ट है कि यदि आप इंडिया गठबंधन से अलग होने का ऐलान अभी नहीं भी करती तो ज्यादा फर्क नहीं पड़ता. फिर भी पार्टी ने इसका बाकायदा ऐलान किया क्योंकि बिहार से ज्यादा इसका संबंध पंजाब और गुजरात से है. इससे भी बढ़कर इस फैसले का सीधा संबंध आप के सियासी भविष्य से है. इस ऐलान का मकसद दुनिया को यह बताना है कि आप का कांग्रेस से कोई संबंध नहीं है.

पंजाब के लिए तैयारी
दिल्ली विधानसभा चुनाव में हार के बाद आप की सरकार अब केवल पंजाब में है. पंजाब में 2027 में विधानसभा चुनाव होने हैं. राज्य में आप का सीधा मुकाबला कांग्रेस से है. बीजेपी के अलावा अकाली दल जैसी कुछ क्षेत्रीय पार्टियां भी हैं, लेकिन दो साल बाद सत्ता के लिए सीधा संघर्ष आप और कांग्रेस के बीच ही होगा.

यदि आप राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के नेतृत्व वाली गठबंधन का हिस्सा रहेगी तो राज्य में उसका मुकाबला कैसे करेगी. ऐसे में कांग्रेस का साथ चुनावी मैदान में उसकी रणनीतिक कमजोरी बन सकता है. अरविंद केजरीवाल ने समय रहते कांग्रेस से दूरी का सार्वजनिक ऐलान कर पंजाब के लोगों को भी यह संदेश दिया है कि वे दोनों पार्टियों को अलग समझें.

गुजरात पर नजर
केजरीवाल के फैसले का एक सिरा गुजरात तक भी जाता है. गुजरात में पिछले 30 साल से बीजेपी की सरकार है. कभी सूबे में एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस तमाम कोशिशों के बावजूद बीजेपी को चुनौती देने की हालत में नहीं है. वह अपने वजूद के लिए संघर्ष कर रही है. यानी गुजरात में अपॉजिशन स्पेस खाली है. केजरीवाल की नजर इस पर है. वे लुंज-पुंज पड़ी कांग्रेस की जगह आप को गुजरात की मुख्य विपक्षी पार्टी बनाने की उम्मीद कर रहे हैं. इस उम्मीद की एक बड़ी वजह हाल में हुए बिसावदर सीट पर उपचुनाव के नतीजे हैं.

वोटों का गुणा-गणित

आप ने लगातार दूसरी बार न सिर्फ ये सीट जीती, बल्कि जीत का मार्जिन भी बढ़ा लिया. कुशल रणनीति से चुनाव जीतकर आप ने बता दिया कि उसे बीजेपी से लड़ना आता है. जीत का मार्जिन इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि पिछले दो चुनावों में गुजरात में आप को मिले वोटों का प्रतिशत बढ़ा है तो दूसरी ओर कांग्रेस का कम हुआ है. 2022 के चुनावों में आप की वजह से कांग्रेस को वोट प्रतिशत 41.4 फीसदी से घटकर 27.28 फीसदी रह गया था. आप को 12.92 फीसदी वोट मिले थे. जितने वोट आप को मिले थे, करीब-करीब उतने ही कांग्रेस के कम हुए थे.

दूसरी ओर, 2022 में बीजेपी का वोट शेयर बढ़ गया था.  उसे 49.01 फीसदी वोट से बढ़कर 52.50 फीसदी वोट मिले थे. केजरीवाल को गुजरात में आप के लिए संभावनाएं दिख रही हैं. बिसावदर में जीत के बाद उन्होंने यह घोषणा भी कर दी कि 2027 में विधानसभा चुनाव के बाद गुजरात में आप की सरकार बनेगी. ये तभी संभव है जब आप कांग्रेस से एकदम अलग दिखे. गठबंधन से अलग होने का ऐलान इसमें मददगार हो सकता है.

भविष्य के लिए भूतकाल की ओर लौटने की कवायद
इसमें कोई संदेह नहीं कि दिल्ली में हार के बाद आप के भविष्य पर संशय के बादल मंडरा रहे हैं. चुनाव में आप केवल हारी नहीं, बल्कि केजरीवाल और मनीष सिसोदिया जैसे पार्टी के कई बड़े चेहरे तक अपनी सीट नहीं बचा पाए. यदि दो साल बाद होने वाले चुनाव में वह पंजाब हार जाती है तो उसके हाथ में कुछ नहीं रह जाएगा. इसलिए पंजाब के मामले में वह कोई जोखिम नहीं लेना चाहती. गुजरात का मामला उसके भविष्य से जुड़ा है.

इन दोनों जगहों पर उसकी भिड़ंत कांग्रेस से होनी है. यह भी सच्चाई है कि आप अपने जन्म के समय से ही बीजेपी और कांग्रेस से एकसमान दूरी का दावा करती रही है. 2024 लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन का हिस्सा बनने से उसकी यह पहचान कमजोर हो गई. इस रणनीति के चुनावी नतीजे भी अच्छे नहीं रहे. लोकसभा के बाद दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी आप की करारी हार हुई. इसलिए अब केजरीवाल की पार्टी अपने पुराने एजेंडे पर लौटने की कोशिश कर रही है. उसने इंडिया गठबंधन से अलग होने का फैसला 2025 में किया है, लेकिन उसकी निगाहें 2027 पर टिकी हैं.

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