Bihar Election Boycott: सुप्रीम कोर्ट ने भी ऐसे मामलों में कहा है कि अगर संवैधानिक प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी नहीं है तो केवल बहिष्कार के आधार पर चुनाव को रद्द नहीं किया जाना चाहिए. ऐसे में महागठबंधन सोच-समझकर ही इस बात पर कोई फैसला करेगा.
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Bihar Election Boycott: राजद नेता तेजस्वी यादव ने बिहार विधानसभा चुनाव के बहिष्कार का संकेत देकर एक नई बहस छेड़ दी है. विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद के दावेदार तेजस्वी यादव के इस प्रस्ताव को अन्य विपक्षी दलों की तरफ से भी समर्थन मिलता दिख रहा है. यहां तक कि उनके धुर विरोधी पप्पू यादव ने भी कहा है कि जरूरत पड़ी तो सभी इस्तीफा दे देंगे. अगर ऐसा होता है तो इससे बिहार में चुनावी परिस्थितियां बदल सकती हैं और इसका सीधा असर चुनाव पर पड़ सकता है. अब सवाल यह है कि अगर बिहार में विपक्ष चुनाव का बहिष्कार करता है तो क्या इस स्थिति में चुनाव कराए जा सकते हैं? किसी एक पद या एक सीट पर कोई प्रतिद्वंद्वी न होने पर उम्मीदवार को निर्विरोध चुन लिया जाता है, लेकिन क्या विपक्ष के 'चुनाव बहिष्कार' करने पर भी इसी तरह का कोई नियम लागू रहता है, उसको समझना जरूरी है.
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निर्वाचन आयोग को चुनाव कराने का अधिकार
संविधान का अनुच्छेद 324 कहता है कि भारत निर्वाचन आयोग को वोटर लिस्ट के रखरखाव और स्वतंत्र एवं निष्पक्ष रूप से चुनाव कराने का अधिकार है. अनुच्छेद 324 में यह भी कहा गया है कि लोकसभा और प्रत्येक राज्य की विधानसभा के चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर कराए जाएंगे. अनुच्छेद 324 के अधीन राष्ट्रपति पद का भी चुनाव कराने का अधिकार भारत निर्वाचन आयोग को दिया गया है. हालांकि, नियम में कहीं जिक्र नहीं है कि राजनीतिक दलों की ओर से 'बहिष्कार' पर चुनाव प्रक्रिया को रोक दिया जाए.
आप ने दिल्ली मेयर चुनाव का किया था बहिष्कार
इस संबंध में सबसे ताजा उदाहरण दिल्ली का मेयर चुनाव हो सकता है. अप्रैल 2025 में दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने मेयर चुनाव का बहिष्कार किया था. इसके बावजूद चुनाव प्रक्रिया पूरी की गई और राजा इकबाल सिंह दिल्ली के मेयर चुने गए थे. कांग्रेस ने मेयर चुनाव में हिस्सा लिया था और उसे महज 8 वोट ही मिले. इस चुनाव में बेगमपुर वार्ड से भाजपा पार्षद जय भगवान यादव डिप्टी मेयर चुने गए.
क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट ने
1989 का मिजोरम विधानसभा चुनाव हो, 1999 का जम्मू कश्मीर या 2014 का हरियाणा विधानसभा चुनाव हो, कुछ राजनीतिक पार्टियों के आंशिक बहिष्कार के बाद भी चुनाव कराए गए और परिणाम भी आए. कानूनी स्तर पर सुप्रीम कोर्ट भी कई उदाहरण दे चुका है, जिनमें राजनीतिक दलों के बहिष्कार के बावजूद चुनाव संपन्न कराए गए थे. इसमें 1989 का मिजोरम चुनाव भी शामिल है. सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी, 'चुनाव प्रक्रिया वैध होने और संवैधानिक मानकों का पालन करने तक बहिष्कार किसी चुनाव को रद्द करने का आधार नहीं हो सकता है.'
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जनबल साथ हो तो चुनाव आयोग की हो सकती है मजबूरी
हालांकि, चुनाव बहिष्कार पर राजनीतिक दलों को जनता का समर्थन मिलने पर चुनाव को टालना निर्वाचन आयोग के लिए मजबूरी बन सकता है. यह भी स्पष्ट है कि लंबे समय तक चुनाव न लड़ने पर राजनीतिक दल की मान्यता भी खतरे में पड़ सकती है, जिसे 1968 के चुनाव चिन्ह आदेश से समझा जा सकता है. इस आदेश के मुताबिक, चुनावों से लगातार दूरी या न्यूनतम वोट प्रतिशत न पाने की स्थिति में राजनीतिक दल की मान्यता रद्द की जा सकती है.
-आईएएनएस