Tamil Nadu Politics: तमिलनाडु ऐसा राज्य है जहां बीजेपी की सियासी खिचड़ी राष्ट्रवाद की आंच पर अब तक पक नहीं पाई है. दरअसल तमिलनाडु में जिन पार्टियों का प्रभुत्व है, वे बीजेपी के हिंदू राष्ट्रवाद की विरोधी हैं. DMA और अन्य द्रविड़ पार्टियों ने तमिल अस्मिता को आर्य संस्कृति से अलग और ब्राह्मण-विरोध के रूप में दिखाकर सत्ता पर कब्जा बरकरार रखा है.
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PM Modi Tamil Nadu Visit explain: तमिलनाडु के अरियालूर से एक ऐसे राजा की चर्चा जिसने करीब हजार साल पहले शासन किया था. सिर्फ चर्चा नहीं, यदि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हजारों लोगों के सामने कह रहे हों कि भारत को ग्लोबल पावर बनने के लिए उस राजा से सीख लेना चाहिए तो इसके सियासी पहलुओं की चर्चा लाजिमी है. चोल राजवंश के राजेंद्र चोल ने उस दौर में अपने साम्राज्य का विस्तार भारत से बाहर कई देशों में किया. कला और साहित्य को बढ़ावा दिया, मजबूत सेना बनाई और पूरे देश को एकता के सूत्र में बांधा. लेकिन इसके एक हजार साल बाद उनको आदर्श बताने की जरूरत पीएम मोदी को क्यों पड़ी. वो भी एक ऐसे राज्य में जहां बीजेपी सत्ता के शीर्ष दावेदारों में भी शामिल नहीं है. केवल तमिलनाडु ही क्यों, कर्नाटक को छोड़ दें तो तमाम कोशिशों के बावजूद बीजेपी अब तक दक्षिण का किला ढहाने में असफल रही है. इसके सूत्र तमिलनाडु के सियासी समीकरणों में उलझे हैं.
पीएम मोदी के बयाने के मायने
तमिलनाडु ऐसा राज्य है जहां बीजेपी की सियासी खिचड़ी राष्ट्रवाद की आंच पर अब तक पक नहीं पाई है. इसकी वजह ये है कि तमिलनाडु में जिन पार्टियों का प्रभुत्व है, वे बीजेपी के हिंदू राष्ट्रवाद की विरोधी हैं. डीएमके और अन्य द्रविड़ पार्टियों ने वर्षों से तमिल अस्मिता को आर्य संस्कृति से अलग और ब्राह्मण-विरोध के रूप में दिखाकर सत्ता पर अपना कब्जा बरकरार रखा है. पिछले एक-डेढ़ साल में सनातन और हिंदी विरोध के नाम पर राजनीति का केंद्र भी तमिलनाडु रहा है. इसके साथ यदि ये जोड़ दें कि अगले साल तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव होने हैं तो प्रधानमंत्री के बयान का मर्म स्पष्ट होने लगता है. बीजेपी की रणनीति द्रविड़ियन पार्टियों को उन्हीं के हथियार से घेरने की है. तमिल गौरव को भारतीय गौरव से जोड़कर बीजेपी ऐसी सियासी लकीर खींचने की कोशिश रही है जिसके आगे स्थानीय क्षेत्रीय पार्टियों की लकीर छोटी पड़ सकती है. कैसे ये जानने से पहले चोल साम्राज्य के बारे में जान लेना जरूरी है.
राजाराज चोल ने किया विस्तार
849 ईस्वी में सरदार विजयालय ने मुट्टिरयारों को हराकर कावेरी नदी के किनारे चोल वंश की स्थापना की. विजयालय के उत्तराधिकारियों ने पड़ोसी इलाकों को जीतकर अपने राज्य की सीमाओं का विस्तार किया. 985 ईस्वी में राजाराज चोल प्रथम इस साम्राज्य के शासक बने. राजाराज चोल का शासन 1014 तक चला. इस दौरान चोल साम्राज्य का विस्तार श्रीलंका से लेकर उत्तर में ओडिशा और मालदीव तक हुआ. राजाराज चोल को उनकी प्रजा ने पोन्नियिन सेलवन नाम दिया जिसका अर्थ है राजाओं का राजा. उन्हें राजाराज शिवपद शेखर के रूप में भी जाना जाता है. कहा जाता है कि उनके सिंहासन पर भगवान शिव के पैर बने हुए थे. 1010 में राजाराज चोल ने तंजावुर में भगवान शिव को समर्पित बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण कराया था. भारत के सबसे बड़े मंदिरों में शामिल यह यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट का हिस्सा है.
विदेशों तक था चोल साम्राज्य का विस्तार
राजेंद्र चोल-प्रथम, चोल सम्राट राजराजा चोल प्रथम के पुत्र थे. उन्हें चोल साम्राज्य के सबसे शक्तिशाली और विजयी शासकों में गिना जाता है. राजेंद्र चोल प्रथम ने अपने पिता की विजय परंपरा को आगे बढ़ाते हुए चोल साम्राज्य को उसके चरम पर पहुंचाया. इतिहास में उन्हें 'चोल द ग्रेट' कहा जाता है, जिन्होंने मध्यकाल में दक्षिण-पूर्व एशिया के कई हिस्सों पर जीत हासिल की. उन्होंने आज के इंडोनेशिया, म्यांमार, वियतनाम, श्रीलंका, मालदीव, थाईलैंड, सिंगापुर, कंबोडिया और निकोबार द्वीपों पर विजय प्राप्त की थी. चोल साम्राज्य अपने चरम पर एक विशाल समुद्री शक्ति था. राजेंद्र चोल ने अरब और अफ्रीकी इलाकों से भी व्यापारिक संबंध बनाए और वाणिज्यिक नेटवर्क स्थापित किया.राजेंद्र प्रथम ने 1014 में सिंहासन संभाला था. उन्होंने सबसे पहले पश्चिमी चालुक्य, अनुराधापुर के राजा और पांड्य-चेर राजाओं के विद्रोहों को कुचलते हुए दक्षिण भारत में स्थायित्व स्थापित किया. फिर उन्होंने कलिंग और वेंगी को जीतकर गंगा नदी तक अपना साम्राज्य फैलाया. इसके बाद उन्हें 'गंगाईकोंडा चोल' की उपाधि मिली. उन्होंने गंगाईकोंडाचोलपुरम नामक राजधानी बसाई. उनके समुद्री अभियानों ने दक्षिण भारत को सुदूर पूर्व से जोड़ते हुए व्यापार, संस्कृति और साम्राज्य विस्तार की ऐसी कहानी लिखी, जिसकी चर्चा आज भी होती है.
इस वोट बैंक पर है बीजेपी की नजर
पीएम मोदी के भाषण में चोल साम्राज्य की चर्चा की एक बड़ी वजह राज्य में पार्टी की अपनी कमजोर हालत है. तमिलनाडु में लगभग 6.2 करोड़ मतदाता हैं, जिनमें से करीब 50% हिंदू हैं. इनमें ब्राह्मण, वेल्लालर, थेवर, गौंडर जैसे वो समुदाय हैं जो सांस्कृतिक रूप से चोलों से जुड़े हुए हैं. इनका पारंपरिक झुकाव डीएमके या एआईएडीएमके की ओर रहा है. हालांकि, सनातन धर्म को लेकर डीएमके नेताओं की हालिया बयानबाजी से इनका एक तबका असहज है. बीजेपी की नजर इसी पर है. तमिलनाडु में बीजेपी का कभी बड़ा वोट बैंक नहीं रहा, लेकि बीते कुछ सालों में इसमें इजाफा हुआ है. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को राज्य में 3.66 प्रतिशत वोट मिले थे, जो 2024 में बढ़कर 11.5 फीसदी हो गया. शहरी क्षेत्रों में पार्टी का प्रभाव बढ़ा है. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर बीजेपी इन समूहों में से 10% मतदाता भी अपने पाले में खींचने में सफल रही, तो वह तमिलनाडु में बड़ी राजनीतिक ताकत के रूप में उभर सकती है.
एक साल बाद दिखेगा असर!
विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी इसी वोट बैंक को साधने की रणनीति बना रही है. पीएम मोदी का बयान तमिल गौरव को भारतीय गौरव से जोड़ने की कोशिश है. केंद्र सरकार ने हाल में चोलों के समुद्री अभियान पर आधारित कई सांस्कृतिक कार्यक्रम और डॉक्युमेंट्री शुरू की हैं. इसका मकसद यह दिखाना है कि चोल साम्राज्य केवल दक्षिण भारत नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सनातन गौरव का हिस्सा था. पीएम मोदी ने अपने भाषण में यह भी कहा कि तमिल भाषा भारत की आत्मा है. यह सीधे तौर पर डीएमके हिंदी-विरोधी राजनीति को अलग थलग करने की कोशिश है. मतलब ये कि बीजेपी विधानसभा चुनाव के लिए फील्डिंग सजाने की शुरुआत कर चुकी है. अब एक साल होने वाले मैच के नतीजे पर इसका कितना असर होता है, ये देखने वाली बात होगी.