DNA: हिंदू कहने से बचे... एनकाउंटर में सावन का 'सोमवार' तलाशा! पहलगाम के आतंकियों के एनकाउंटर पर विपक्ष को दिक्कत क्यों?
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DNA: हिंदू कहने से बचे... एनकाउंटर में सावन का 'सोमवार' तलाशा! पहलगाम के आतंकियों के एनकाउंटर पर विपक्ष को दिक्कत क्यों?

DNA Analysis: 3 महीने बाद 2 KM दूर ही आतंकी कैसे मिल गए? एनकाउंटर सोमवार को ही क्यों हुआ? क्या एनकाउंटर के लिए सावन के सोमवार का इंतजार था.  आतंकियों के एनकाउंटर पर सवाल उठानेवाली रुचि वीरा कौन हैं?

DNA: हिंदू कहने से बचे... एनकाउंटर में सावन का 'सोमवार' तलाशा! पहलगाम के आतंकियों के एनकाउंटर पर विपक्ष को दिक्कत क्यों?

DNA Analysis: डोनाल्ड ट्रंप को आजकल दोस्ती नहीं दिखती सिर्फ टैरिफ दिखता है. और हमारे देश में विपक्ष के कुछ नेताओं को आतंकियों के एनकाउंटर में क्या दिखता है? सावन का सोमवार. आपने ये जरूर सुना होगा शुभस्य शीघ्रम. यानी शुभ कार्य को करने में देरी नहीं करनी चाहिए. बात देशहित की हो, देशवासियों की सुरक्षा से जुड़ी हो तो देरी वैसे भी नहीं करनी चाहिए.

सावन का महीना चल रहा है. महादेव के भक्तों के लिए सावन का हर दिन पवित्र होता है. सावन का पवित्र महिना और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसा गंभीर विषय भी अब सियासत के केंद्र में आ गए हैं. भारतीय शूरवीरों ने ऑपरेशन महादेव में सोमवार को तीन आतंकियों को मार गिराया. तीनों दशहतगर्द पहलगाम आतंकी हमले में शामिल थे. धर्म पूछकर 26 निर्दोष पर्यटकों की बर्बर हत्या करनेवाले आतंकियों के एनकाउंटर पर भी सियासी सवाल उठाए जा रहे हैं. मित्रों पहले जानिए सुविधा वाली सियासी सोच कैसे आतंकियों के एनकाउंटर पर सवाल उठाती है. ये सोच एनकाउंटर का भी शुभ मुहूर्त तय करना चाहती है.

आतंकियों के एनकाउंटर पर सवाल उठानेवाली इस सोच का विश्लेषण करेंगे, लेकिन पहले आप ये जान लिजिए की सवाल उठानेवाली रुचि वीरा कौन हैं. रुचि वीरा मुरादाबाद से समाजवादी पार्टी की सांसद हैं. वे बिजनौर से विधायक भी रह चुकी हैं. अब सोचिए पहलगाम में 26 निर्दोष भारतीय नागरिकों की हत्या करनेवाले आतंकियों के एनकाउंटर पर हमारे एक जनप्रतिनिधि को ही ऐतराज है. और ऐतराज क्या है ये एक बार फिर आपको बताते हैं.

3 महीने बाद 2 KM दूर ही आतंकी कैसे मिल गए? एनकाउंटर सोमवार को ही क्यों हुआ? क्या एनकाउंटर के लिए सावन के सोमवार का इंतजार था. आगे बढ़ने से पहले हिंदी के प्रसिद्ध कवि दुष्यंत कुमार की गजल की दो लाइन आज मैं आपसे जरूर शेयर करना चाहूंगा.

"कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिए
कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए."

सोचिए कहां तो आज रुचि वीरा को देश के जांबाज और बहादुर सैनिकों की प्रशंसा करनी चाहिए थी, लेकिन वो सैनिकों के शौर्य पर सवाल उठा रही हैं. कहा तो आज रुचि वीरा को 26 निर्दोष भारतीयों भारतीयों के हत्यारे आतंकियों के एनकाउंटर पर सुरक्षाबलों को बधाई देनी चाहिए थी. लेकिन वो एनकाउंटर की टाइमिंग पर सवाल उठा रही हैं.

 'आखिर 2 किलोमीटर दूर ही आतंकी क्यों मिले?'

कहां तो रुचि वीरा को खुफिया तंत्र की प्रशंसा करनी चाहिए थी की समय लगा लेकिन उन्होंने आतंकियों का ठीकाना तलाश लिया. लेकिन वो सवाल पूछ रही हैं कि आखिर 2 किलोमीटर दूर ही आतंकी क्यों मिले?

अभियान का नाम ऑपरेशन महादेव, एनकाउंटर का दिन सोमवार

देशहित और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर राजनीति नहीं होनी चाहिए. सभी दल ये बात कहते हैं. लेकिन अपने छोटे सियासी फायदे के लिए सियासी सवाल खड़े कर दिए जाते हैं. रुचि वीरा ऑपरेशन महादेव पर सवाल उठानेवाली पहली नेता नहीं हैं. संसद में उन्हीं की पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव भी यही सवाल उठा चुके हैं. अभियान का नाम ऑपरेशन महादेव, एनकाउंटर का दिन सोमवार. सावन के महीने का सोमवार. क्या ये संयोग ही रुचि वीरा और अखिलेश यादव जैसे लोगों को चुभ रहा है. क्या आतंकियों के एनकाउंटर का सनातन से जुड़ता संयोग ही इन नेताओं को परेशान कर रहा है. आज इसका जवाब राज्यसभा में गृहमंत्री अमित शाह ने दिया. गृहमंत्री ने बताया कि कैसे ऑपरेशन महादेव का नाम हमारे इतिहास से जुड़ा है

आज हम रुचि वीरा को बताना चाहेंगे की सेना 22 अप्रैल के बाद से ही आतंकियों को तलाश रही थी. 27 जुलाई की रात आतंकियों ने अपना अल्ट्रासेट सैटेलाइन फोन को एक्टिवेट किया. इसी अल्ट्रासेट सैटेलाइन फोन के सिग्नल से आतंकी पकड़े गए. आतंकी जहां छिपे थे वो पहाड़ी और घने जंगल का इलाका था.

'सेना अलर्ट थी'

आतंकियों ने अपना हाईडआउट बहुत सोच समझ कर बनाया था. हो सकता है वो तीन महीने से वहीं छिपे हों. सोचिए अगर आतंकियों ने अपना अल्ट्रासेट सैटेलाइन फोन नहीं ऑन किया होता तो उन्हें तलाश करने में सेना को और वक्त लग सकता था. सेना अलर्ट थी. इसलिए आतंकियों ने जैसे ही पहली गलती की सेना को उनका अड्डा मिल गया और तीनों आतंकी मारे गए.

'वो संसद नहीं बैटलग्राउंड था'

माननीय सांसद महोदय को समझना चाहिए की आतंकियों के साथ एनकाउंटर आकस्मात होता है. आतंकी हथियारों से लैस थे. वो सैनिकों पर फायरिंग कर रहे थे. माननीय सांसद महोदय को ये भी समझना चाहिए की आतंकियों को जाकर समझाया नहीं जा सकता था. वो संसद नहीं बैटलग्राउंड था. आतंकियों को ये नहीं कहा जा सकता था कि आओ पहले बात करते हैं. वहां गोलियां चल रही थी. ऐसे माहौल में गोली का जवाब गोली से ही दिया जा सकता था. यहीं मांग देशवासियों और पहलगाम के पीड़ितों की भी थी.

लेकिन सवाल उठानेवालों का अपना तर्क होता है. इसलिए संसद में ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा के दौरान जब ऑपरेशन महादेव को लेकर सवाल उठे थे तो पीएम ने इसका जवाब भी दिया था. सोचिए जो विपक्षी सांसद आतंकियों के एनकाउंटर पर भी सवाल उठा रहे हैं, आतंकियों के खात्मे को भी एक खास सियासी चश्मे से देख रहे हैं. एनकाउंटर को सावन के सोमवार से जोड़ रही हैं. वहीं विपक्षी पार्टियां संसद में पहलगाम आतंकी हमले पर भी आधा सच बोलती हैं. ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा के दौरान कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने पहलगाम आतंकी हमले का जिक्र तो किया लेकिन मरनेवालों को भारतीय कहा. बेशक वो भारतीय थे.

'प्रियंका गांधी का अर्धसत्य'

लेकिन आतंकियों ने उनकी हत्या भारतीय होने के कारण नहीं की थी. उनकी हत्या धर्म पूछकर हिंदू होने के कारण की गई थी. और यही प्रियंका गांधी का अर्धसत्य है. इसी अर्धसत्य पर संसद मे हंगामा भी हुआ था. सोचिए एक तरफ विपक्ष पहलगाम में धर्म पूछकर मारे गए लोगों को हिंदू कहने से हिचकता है. उनकी पहचान छिपाना है. ये नहीं बताना चाहता कि आतंकियों ने धर्म पूछकर पर्यटकों की हत्या की. लेकिन वही विपक्ष आतंकियों के एनकाउंटर पर सावन का सोमवार वाला कनेक्शन तलाश लेता है. अब इस सियासी सोच पर आज हम कुछ नहीं कहेंगे. हम सिर्फ इतना कहेंगे कि जनप्रतिनिधियों को अपने राष्ट्रहित के मुद्दों को सियासत से अलग रखना चाहिए.

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