उधम सिंह: 21 साल तक धधकती रही बदले की आग, लंदन जाकर जलियांवाला बाग के गुनहगार को उतारा था मौत के घाट
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उधम सिंह: 21 साल तक धधकती रही बदले की आग, लंदन जाकर जलियांवाला बाग के गुनहगार को उतारा था मौत के घाट

Sardar Udham Singh: स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी और क्रांतिकारी उधम सिंह की, जिनको 31 जुलाई 1940 को फांसी दे दी गई थी. उन्होंने लंदन जाकर पंजाब के पूर्व गवर्नर जनरल माइकल ओ डायर की हत्या की थी

उधम सिंह: 21 साल तक धधकती रही बदले की आग, लंदन जाकर जलियांवाला बाग के गुनहगार को उतारा था मौत के घाट

Udham Singh Profile: एक 20 साल का लड़का, जिसकी जिंदगी एक नरसंहार ने बदलकर रख दी. जब उसने हजारों लाशें, खून से लथपथ लोगों, बच्चों, औरतों को देखा तो उसके अंदर अंग्रेजी हुकूमत से बदला लेने का खून सवार हो गया. उसने कसम खाई कि जब तक वह उस हत्यारे को अपने हाथों से मौत के घाट नहीं उतारेगा, तब तक चैन से नहीं बैठेगा. सीने में बदले की आग लिए वह अगले 21 साल उस हत्यारे की तलाश में लगा रहा और एक दिन उसने उसका खात्मा किया और भारत मां का वो वीर सपूत फांसी पर झूल गया. 

31 जुलाई 1940 को दी गई थी फांसी

हम बात कर रहे हैं स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी और क्रांतिकारी उधम सिंह की, जिनको 31 जुलाई 1940 को फांसी दे दी गई थी. उन्होंने लंदन जाकर पंजाब के पूर्व गवर्नर जनरल माइकल ओ डायर की हत्या की थी, जिसके बाद उनको फांसी की सजा सुनाई गई थी. माइकल ओ डायर जलियांवाला बाग नरसंहार के वक्त पंजाब के गवर्नर थे और उसने ही इस नरसंहार का आदेश दिया था.

भाई के साथ अनाथालय में पले-बढ़े

26 दिसंबर 1899 को संगरूर के सुनाम में उधम सिंह का जन्म हुआ था. उनके पिता सरदार टहल सिंह एक किसान थे और रेलवे चौकीदार के रूप में भी काम करते थे. बचपन में उधम सिंह को शेर सिंह कहकर पुकारते थे. उन्होंने छोटी उम्र में ही अपने पिता को खो दिया. पिता की मौत के बाद उनका और उनके बड़े भाई का पालन-पोषण एक अनाथालय में हुआ. उन्हें उनके बड़े भाई मुक्ता सिंह के साथ अमृतसर के केंद्रीय खालसा अनाथालय में ले जाया गया. यहीं उधम सिंह ने पढ़ाई-लिखाई की. उधम सिंह स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह और उनके क्रांतिकारी संगठन से बहुत प्रभावित थे. उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. इस डर की वजह से ब्रिटिश सरकार ने कई बार उनको जेल भेजा.

जलियांवाला बाग हत्याकांड ने बदली जिंदगी

अनाथालय में उधम सिंह की जिंदगी चल ही रही थी कि 1917 में उनके बड़े भाई मुक्ता सिंह का देहांत हो गया. इससे उधम सिंह पूरी तरह टूट गए. इन हालातों में उन्होंने 1919 में अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में पूरी तरह शामिल हो गए.
13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन जब हजारों निहत्थे बच्चे, औरतें और पुरुष ब्रिगेडियर जनरल डायर के हाथों मारे गए तो उधम सिंह का खून खौल उठा. गोलीबारी में बहुत से लोग जान बचाने के लिए वहां बने कुएं में कूदे, लेकिन जिंदा बाहर नहीं निकले. लोगों की मौत ने उनको इतना ज्यादा दुख पहुंचाया कि उन्होंने वहीं कसम खा ली कि वह इसका बदला लेंगे.

माइकल ओ डायर की कर दी हत्या

जलियांवाला बाग हत्याकांड से उपजे क्रोध ने उधम सिंह को क्रांतिकारी साहित्य के प्रचार-प्रसार में पंजाब में प्रमुख भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया. 1927 में हथियार रखने और देशद्रोही साहित्य पढ़ने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. जेल में उनकी मुलाकात भगत सिंह से हुई, जिन्होंने उनके मार्गदर्शक की भूमिका निभाई. रिहाई के बाद उधम सिंह यूरोप चले गए और अपने क्रांतिकारी कामों को जारी रखा. एक दिन लंदन के कैक्सटोन हॉल में एक भाषण के दौरान उधम सिंह ने एक किताब में छिपाकर लाए रिवॉल्वर से माइकल ओ डायर को दो गोली मारी, जिससे उसकी मौत हो गई.

हालांकि, जलियांवाला बाग में गोली चलाने का आदेश देने वाला ब्रिगेडियर जनरल आरईएच डायर 1927 में ही मर चुका था, लेकिन उधम सिंह ने माइकल ओ डायर की हत्या कर देश के उस घाव का इंतकाम लिया. मुकदमे और अपील खारिज होने के बाद 31 जुलाई 1940 को उधम सिंह को लंदन की एक जेल में फांसी दे दी गई. 

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