Pune News: पुणे में एक कारगिल जंग के पूर्व सैनिक के परिवार ने स्थानीय पुलिस और अज्ञात लोगों पर गंभीर आरोप लगाए हैं. भारतीय सेना की 269वीं इंजीनियर रेजिमेंट के कोर ऑफ़ इंजीनियर्स से नायक हवलदार के पद से रिटार्ड हुए 58 साल के हकीमुद्दीन शेख के परिवार ने उत्पीड़न का आरोप लगाया है. साथ ही उनसे नागरिकता का प्रमाण मांगा जा रहा है. फिलहाल, पुलिस घटना की जांच में जुट गई है.
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Kargil war veteran: पुणे के चंदननगर इलाके से एक बेहद ही चौंकाने वाली घटना सामने आई है. यहां कारगिल जंग के पूर्व सैनिक के परिवार ने पुलिस और कुछ अज्ञात लोगों धावा बोल दिया. उनके परिवार ने उत्पीड़न (हैरासमेंट) का गंभीर आरोप लगाया है. यह मामला 26 जुलाई की रात को सामने आया, जब परिवार को आधी रात के वक्त अपनी नागरिकता साबित करने के लिए मजबूर किया गया.
ये पूर्व सैनिक कारगिल युद्ध में लड़ चुके हैं, और परिवार के दो अन्य सदस्य 1965 और 1971 की जंग में भी शामिल रहे हैं. परिवार का कहना है कि उन लोगों ने उन्हें धमकाते हुए कहा कि वे अपनी भारतीय नागरिकता के दस्तावेज दिखाएं, वरना उन्हें बांग्लादेशी या रोहिंग्या घुसपैठिया घोषित कर दिया जाएगा. रात 12 बजे के करीब घर के सभी पुरुष मेंबर को पुलिस स्टेशन ले जाया गया और सुबह 3 बजे तक रुकने को कहा गया. परिवार ने दावा किया है कि इस दौरान उन्हें मानसिक रूप से बहुत प्रताड़ित किया गया और अपमानजनक व्यवहार किया गया.
परिवार के एक सदस्य ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, 'हमें सुबह 3 बजे तक इंतज़ार करने और अपनी नागरिकता साबित करने के लिए दस्तावेज़ दिखाने को कहा गया, ऐसा न करने पर हमें धमकी दी गई कि हमें बांग्लादेश या रोहिंग्या से आए अवैध प्रवासी घोषित कर दिया जाएगा.'
वहीं, पुणे के पुलिस कमिश्नर अमितेश कुमार ने इस मामले पर मंगलवार को बताया, 'क्षेत्र के पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) मामले की जांच कर रहे हैं. अगर पुलिस की ओर से कोई लापरवाही पाई जाती है, तो हम संबंधित पुलिसकर्मियों के खिलाफ उचित कार्रवाई करेंगे.' उन्होंने आगे कहा, 'प्रारंभिक जांच से पता चला है कि पुलिसकर्मी घर में जबरन नहीं घुसे थे। हालांकि, इस मामले को लेकर परिवार ने आरोप लगाए हैं। डीसीपी इन दावों की पुष्टि कर रहे हैं.'
जबकि, डीसीपी (जोन IV) सोमय मुंडे ने कहा, 'परिवार से केवल दस्तावेज दिखाने के लिए कहा गया था, जब हमारी टीम ने इलाके में कुछ बांग्लादेशी नागरिकों के अवैध रूप से रहने की सूचना के आधार पर घटनास्थल का दौरा किया था.'
भारतीय सेना की 269वीं इंजीनियर रेजिमेंट के कोर ऑफ़ इंजीनियर्स से नायक हवलदार के पद से रिटार्ड हुए 58 साल के हकीमुद्दीन शेख ने कहा, 'मैंने 1984 से 2000 तक 16 साल तक पूरे गर्व के साथ देश की सेवा की और 1999 में कारगिल युद्ध भी लड़ा. मैं एक भारतीय नागरिक हूं और मेरा पूरा परिवार भी मेरी तरह इस देश का है. फिर हमें अपनी नागरिकता साबित करने के लिए क्यों कहा जा रहा है? हमने कभी नहीं सोचा था कि मेरे परिवार के साथ ऐसा कुछ होगा.'
हकीमुद्दीन 2013 तक पुणे में रहे, उसके बाद वे अपने आबाई शहर चले गए. हालांकि, उनके परिवार के बाकी मेंबर, जिनमें भाई, भतीजे और उनकी बीवी अभी भी पुणे में रहते हैं. और 26 जुलाई की रात को उन सभी से अपनी नागरिकता साबित करने के लिए कहा गया. मूल रूप से उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ का रहने वाला यह परिवार 1960 में पुणे आ गया था. हकीमुद्दीन के भाई इरशाद शेख ने TOI को बताया, 'सिर्फ़ मेरे भाई ही नहीं, बल्कि मेरे दो चाचा, शेख नईमुद्दीन, जो भारतीय सेना की पैदल सेना इकाई से रिटायर्ड हुए थे, और शेख मोहम्मद सलीम, जो सेना की इंजीनियरिंग रेजिमेंट में थे, ने भी देश की सेवा की. दोनों ने देश के लिए 1965 और 1971 के युद्ध लड़े थे.'
उन्होंने कहा कि, 'हमें सबसे ज़्यादा हैरानी इस बात से हुई कि इस समूह का नेतृत्व पुलिस नहीं कर रही थी, बल्कि 30-40 अज्ञात लोगों का एक ग्रुप था जो हमारे परिवार के सदस्यों से दस्तावेज़ दिखाने की मांग कर रहा था. जब सादे कपड़ों में एक पुलिसकर्मी ने उन्हें रोका तो वे नारे लगा रहे थे. हमारे घर से कुछ दूरी पर एक पुलिस वैन खड़ी थी, जहां एक वर्दीधारी अधिकारी इंतज़ार कर रहा था.' हकीमुद्दीन के भतीजे नौशाद शेख ने बताया कि जब वे लोग मुझे अपनी नागरिकता साबित करने के लिए कहा तो हमने आधार कार्ड जैसे दस्तावेज़ दिखाए. बावजूद इसके वे लोग हमारे परिवार की महिलाओं और बच्चों समेत सभी पर चिल्ला रहे थे और कह रहे थे कि ये दस्तावेज़ फ़र्ज़ी हैं. वे मेरे साथ गुंडों जैसा सलूक कर रहे थे.
हकीमुद्दीन के एक और भतीजे नवाब शेख ने बताया कि उनकी पैदाइस पुणे में हुई है और वे इतने सालों से यहीं रह रहे हैं. उन्होंने कहा, 'जब ऐसी घटनाएं होती हैं, तो आम लोग मदद के लिए पुलिस के पास जाते हैं. लेकिन जब पुलिस खुद भीड़ की मदद करती है, तो समझ नहीं आता कि हम किसके पास जाएं. उन्होंने कहा कि परिवार को अभी तक यह समझ नहीं आया है कि पुलिस टीम सीधे उनसे दस्तावेज़ दिखाने के बजाय देर रात भीड़ के साथ क्यों आई थी?