Rajendra Chola I: भारत का इतिहास काफी ज्यादा गौरवशाली रहा है. देश में कई ऐसे शासक हुए जिन्होंने अपने पराक्रम से दुश्मनों को पानी पिला दिया. ऐसे ही हम बात करने जा रहे हैं राजेंद्र चोल प्रथम के बारे में, जिनकी सेना के आगे दुश्मन घुटने टेक देते थे.
Trending Photos
Thiruvathirai Festival: भारत का इतिहास काफी ज्यादा गौरवशाली रहा है. भारत में कई ऐसे राजा हुए जिन्होंने दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए. इनके अदम्य साहस के आगे दुश्मन पानी भरने पर मजबूर हो जाते थे. जब भी ये रणभूमि में पहुंचते थे तो इनकी आहट से ही विरोधियों के पसीने छूट जाते थे. ऐसे ही हम बात करने जा रहे हैं एक महान शासक राजेंद्र चोल प्रथम के बारे में. राजेंद्र चोल प्रथम की जयंती और उनकी दक्षिण-पूर्व एशिया की ऐतिहासिक समुद्री विजय यात्रा की 1000वीं वर्षगांठ पर तमिलनाडु में तिरुवथिरई महोत्सव का आयोजन किया जाएगा. जिसमें पीएम मोदी भी शामिल होंगे. आखिर कौन थे राजा राजेंद्र चोल प्रथम आइए जानते हैं.
पीएम मोदी होंगे कार्यक्रम में शामिल
पीएम मोदी ने एक्स पर ट्वीट करते हुए लिखा कि 27 जुलाई को महान राजेंद्र चोल प्रथम के दक्षिण पूर्व एशिया के समुद्री अभियान के एक हज़ार वर्ष पूरे होने और चोल स्थापत्य कला के एक उत्कृष्ट उदाहरण, प्रतिष्ठित गंगईकोंडा चोलपुरम मंदिर के निर्माण कार्यारंभ के उपलक्ष्य में एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा. यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है कि राजेंद्र चोल प्रथम के सम्मान में एक स्मारक सिक्का जारी किया जा रहा है और साथ ही आदि तिरुवथिरई उत्सव भी मनाया जा रहा है.
Tomorrow, 27th July will witness a very special programme to mark a thousand years of the maritime expedition of the great Rajendra Chola I to South East Asia and the commencement of the construction of the iconic Gangaikonda Cholapuram temple, a shining example of Chola…
— Narendra Modi (@narendramodi) July 26, 2025
कौन थे राजेंद्र चोल प्रथम?
राजेंद्र चोल प्रथम (1014-1044 ई. ) भारतीय इतिहास के सबसे शक्तिशाली और दूरदर्शी शासकों में से एक थे. उनकी रणनीति कमाल की थी. लगभग पूरे दक्षिण पूर्व एशिया पर उन्होंने वर्चस्व कायम किया. एक वक्त था जब जावा, सुमात्रा, इंडोनेशिया, बर्मा, वियतनाम, मलेशिया, थाईलैंड, बोनियो और सिंगापुर तक चोल सेनाएं पहुंच चुकी थीं. राजेंद्र चोल प्रथम के नेतृत्व में चोल साम्राज्य ने दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में अपना प्रभाव बढ़ाया.
यहां बसाई शाही राजधानी
राजेंद्र चोल प्रथम ने अपने विजयी अभियानों के बाद गंगईकोंडा चोलपुरम को अपनी शाही राजधानी के रूप में बनाया. गंगईकोंडा का अर्थ होता है गंगा जीतने वाला. राजा ने यहां पर भव्य मंदिर का निर्माण कराया, जो 250 से अधिक वर्षों तक शैव भक्ति, स्मारकीय वास्तुकला और प्रशासनिक कौशल का प्रतीक रहे. ये मंदिर अपनी जटिल मूर्तियों, कांस्य प्रतिमाओं और प्राचीन शिलालेखों के लिए दुनिया भर में फेमस है. इसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल भी घोषित किया है.
कैसे पड़ी चोल वंश की नींव?
राजा राजेंद्र चोल प्रथम के पिता ने चोल साम्राज्य की नींव रखी थी. उनके बाद राजेन्द्र चोल प्रथम ने राज्य संभाला और उन्होंने अपनी सैन्य शक्ति को बेहद मजबूत बनाया. खास तौर पर राजेन्द्र चोल ने नौसेना पर बहुत ज्यादा ध्यान दिया और एक ऐसी सेनाया तैयार की जो जल थल दोनों में अपना पराक्रम दिखा सके. उनकी सेनाओं का साहस कुछ ऐसा था कि उनका नाम सुनते ही दुश्मन कांपने लगते थे.
कैसी थी राजेंद्र चोल प्रथम की सेना?
राजेंद्र चोल प्रथम की सेना के चार हिस्से थे. इसमें पहली घुड़सवार सेना, दूसरी हाथी सेना, तीसरी पैदल सेना, जिसमें धनुष और तलवारधारी सैनिकों की टुकड़ियां होती थी. ये चोल सेना की सबसे अहम टुकड़ी थी. चोल सैनिक तलवार, धनुष, ढाल और भालों का इस्तेमाल करते थे.
इसके अलावा चोल राजा के पास एक शक्तिशाली नौसेना भी मौजूद थी. इस नौसेना की दो सबसे बड़ी ताकत थी, उसके मजबूत जहाज और दूसरा सैनिक हाथी.
F&Q
सवाल- राजेंद्र चोल प्रथम ने कब तक शासन किया?
जवाब- राजेंद्र चोल प्रथम ने 1014 से लेकर 1044 ई. तक शासन किया था.
सवाल- राजेंद्र चोल प्रथम की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या थी?
जवाब- राजेंद्र चोल की सबसे बड़ी उपलब्धि उनकी सेनाओं को गंगा नदी पार करके कलिंग और बंगाल तक पहुंचाना माना जाता है.