ये हैं भगवान शिव के 8 अद्भुत अवतार, इसमें से एक का नाम लेने से दूर हो जाती है शनि की महादशा
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ये हैं भगवान शिव के 8 अद्भुत अवतार, इसमें से एक का नाम लेने से दूर हो जाती है शनि की महादशा

Lord Shiv Avatar: पुराणों के अनुसार भगवान शिव ने कुल 19 अवतार लिए हैं. उनमें से आठ अवतार बेहद खास माने जाते हैं. आइए जानते हैं भगवान शिव के 8 अवतार के बारे में.

 

ये हैं भगवान शिव के 8 अद्भुत अवतार, इसमें से एक का नाम लेने से दूर हो जाती है शनि की महादशा

Mahashivratri 2025: आज यानी 26 फरवरी को पूरे देश में महाशिवरात्रि का त्योहार पूरी निष्ठा, भक्ति और हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. यह दिन भगवान शिव और माता पार्वती के विवाहोत्सव का पावन दिन होता है, इसलिए भक्तगण इस दिन भगवान शिव और मां पार्वती की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करते हैं. कहते हैं कि भगवान विष्णु की तरह भगवान शिव ने भी कई अवतार लिए हैं. मान्यता है कि इसमें एक अवतार का नाम लेने मात्र के शनि की महादशा से राहत मिलती है. आइए जानते हैं भगवान शिव के 8 प्रमुख अवतारों के बारे में.

पुराणों के अनुसार, भगवान शिव ने कुल 19 अवतार लिए हैं. भगवान शिव के ये अवतार हैं- वीरभद्र, नंदी, भैरव, पिप्पलाद, अश्वत्थामा, शरभ, गृहपति, दुर्वासा, हनुमान, वृषभ, यतिनाथ, कृष्णदर्शन, अवधूत, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, किरात, ब्रह्मचारी, सुनटनतर्क, और यक्ष.आइए अब भगवान शिव के 8 प्रमुख अवतारों के बारे में विस्तार से जानते हैं. 

कहते हैं कि जब त्रेतायुग में रावण का अधर्म बढ़ गया, तब धर्म की स्थापना के लिए भगवान विष्णु का राम अवतार हुआ था. इस वक्त भगवान शिव ने श्रीराम की मदद के लिए हनुमान का अवतार लिया था. हनुमान जी को अमरता का वरदान प्राप्त है.

अनुसूइया और उनके पति महर्षि अत्रि ने एक समय पुत्र की प्राप्ति के लिए तप लिया था. तप से प्रसन्न होकर उनके सामने ब्रह्मा, विष्णु और महेश यानी भगवान शिव प्रकट हुए थे. तब तीनों देवों ने कहा था कि हमारे अंश से तुम्हारे तीन पुत्र होंगे. कहते हैं अनुसूईया और अत्रि के यहां ब्रह्मा जी के अंश से चंद्र देव, विष्णु जी के अंश से दत्तात्रेय प्रकट हुए. इसके बाद शिव के अंश से दुर्वासा मुनि ने जन्म लिया था. 

जब सती ने अपने पिता दक्ष के यहां यज्ञ में कूदकर देह त्याग दी तो शिवजी बहुत क्रोधित हुए. उस वक्त शिवजी ने अपनी जटा से वीरभद्र को प्रकट किया और दक्ष का वध करने के लिए कह दिया. वीरभद्र ने शिवजी की आज्ञा से दक्ष का सिर काट दिया था. फिर, देवताओं की विनती पर भगवान शिव ने राजा दक्ष  के धड़ पर बकरे का मुंह लगाकर उसे फिर से जीवित कर दिया था.

महाभारत के समय द्रोणाचार्य ने पुत्र अश्वत्थामा को शिवजी का ही अंशावतार माना जाता है. कहते हैं कि द्रोणाचार्य ने शिवजी को पुत्र रूप में पाने के लिए तप किया था. तब शिवजी ने उन्हें वर दिया था कि वे उनके पुत्र के रूप में अवतार लेंगे. कहा जाता है कि अश्वत्थामा को भगवान कृष्ण ने हमेशा भटकते रहने का श्राप दिया था. इसी वजह से अश्वत्थामा को अमर माना जाता है. 

भैरव देव को शिव का स्वरूप माना जाता है. एक बार ब्रह्माजी और विष्णुजी खुद को श्रेष्ठ बता रहे थे और विवाद कर रहे थे. तभी वहां शिवजी के तेजपुंज से एक दिव्य देव वहां प्रकट हुए. उस समय ब्रह्माजी ने कहा कि तुम हमारे पुत्र हो. ये सुनकर शिवजी क्रोधित हो गए. तब शिवजी ने उस दिव्य तेज से कहा कि काल की तरह दिखने की वजह से आप कालराज हैं और भीषण होने से भैरव हैं. कहते हैं कि कालभैरव ने ब्रह्माजी का पांचवां सिर काट दिया था. इसके बाद काशी में काल भैरव को ब्रह्महत्या के दोष से मुक्ति मिली थी. 

शिलाद मुनि एक ब्रह्मचारी ऋषि थे. उन्होंने विवाह नहीं किया था. एक दिन शिलाद के पितरों ने उनसे संतान पैदा करने के लिए कहा, ताकि उनका वंश आगे बढ़ सके. कहते हैं कि पितरों की इच्छा पूर्ति के लिए शिलाद मुनि ने संतान की कामना से भगवान शिव की तपस्या की. तब शिव जी ने शिलाद मुनि को वरदान दिया कि मैं स्वयं तुम्हारा पुत्र बनकर अवतार लूंगा. कुछ समय बाद हल चलाते वक्त शिलाद मुनि को भूमि से एक बालक मिला. शिलाद ने उसका नाम नंदी रखा. बाद में भगवान शिव ने नंदी को अपने गणों का अध्यक्ष बना दिया. इस प्रकार नंदी नंदीश्वर कहलाए.

भगवान विष्णु के अवतार नरसिंह ने हिरण्यकश्यपु का वध कर दिया था, इसके बाद भी नृसिंह शांत नहीं हुए. तब शिवजी ने शरभ के रूप में अवतार लिया. भगवान शिव आधे हिरण और आधे शरभ पक्षी के रूप में प्रकट हुए. शरभ आर पैर वाला एक जानवर था, जो कि बहुत शक्तिशाली था. शरभ ने नृसिंह को शांत करने के लिए प्रार्थना की, लेकिन जब वे शांत नहीं हुए तो शरभ भगवान ने नृसिंह को अपनी पूंछ में लपेटा और उड़ गए. इसके बाद नृसिंह शांत हुए और शरभावतार से क्षमा मांगी.

पिप्पलाद मुनि भी भगवान शिव के अवतार माने गए हैं. वे दधीचि ऋषि के पुत्र थे. दधीचि अपने पुत्र को बचपन में ही छोड़कर चले गए थे. पिप्पलाद ने देवताओं से इसकी वजह पूछी तो देवताओं ने कहा था कि शनि के कुयोग की वजह से पिता-पुत्र बिछड़ गए. यह सुनकर पिप्पलाद ने शनि को नक्षत्र मंडल से गिरने का श्राप दे दिया था.श्राप की वजह से शनि गिरने लगे तो देवताओं ने पिप्पलाद से शनि को क्षमा करने की प्रार्थना की. कहते हैं कि पिप्पलाद ने शनि को किसी व्यक्ति को जन्म के बाद 16 साल ना कष्ट देने का निवेदन किया था, शनि  देव ने ये बात मान ली. कहते हैं कि इसके बाद से ही पिप्पलाद मुनि का नाम लेने से शनि के दोष दूर हो जाते हैं. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

 

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दीपेश ठाकुर

दीपेश ठाकुर, पिछले 10 वर्षों से डिजिटल पत्रकारिता में सक्रिय हैं. श्रीठाकुर के पास प्रिंट और डिडिटल मीडिया में अच्छा अनुभव है. इस वक्त Zee News वरीय उप-संपादक के तौर पर कार्यरत हैं. ज्योतिष शास्त्र...और पढ़ें

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