Aaj ka Itihas: 4 अगस्त 1956 को मुंबई के ट्रॉम्बे यानी आज के भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (Bhabha Atomic Research Centre) में देश का पहला परमाणु अनुसंधान रिएक्टर 'अप्सरा' शुरू किया गया था. भारत के पहले परमाणु अनुसंधान रिएक्टर के नामकरण की कहानी भी दिलचस्प है.
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Nuclear Research Reactor Apsara: आज से ठीक 69 साल पहले 4 अगस्त 1956 को भारत ने एक ऐसा ऐतिहासिक कदम उठाया था, जिससे ऊर्जा के क्षेत्र में भारत के आत्मनिर्भरता की शुरुआत हुई थी. साल 1956 में 4 अगस्त को ही मुंबई के ट्रॉम्बे में देश का पहला परमाणु अनुसंधान रिएक्टर 'अप्सरा' शुरू किया गया था. हालांकि, ट्रॉम्बे को अब भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (Bhabha Atomic Research Centre) कहा जाता है. 'अप्सरा' के शुरू होने के बाद परमाणु रिएक्टर की दुनिया में भारत ने एक कदम बढ़ा दिया.
ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में भारत का एक बड़ा कदम
यह न सिर्फ एशिया का पहला रिएक्टर था, बल्कि भारत की वैज्ञानिक क्षमता और ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम भी था. 1950 के दशक में जब भारत स्वतंत्रता के शुरुआती वर्षों में था, तब ऊर्जा संकट एक बड़ा विषय था. औद्योगिकीकरण की ओर बढ़ते देश को बिजली की जरूरत थी, लेकिन संसाधन सीमित थे. ऐसे में डॉ. होमी जहांगीर भाभा के नेतृत्व में भारत ने परमाणु ऊर्जा को एक वैकल्पिक स्रोत के रूप में चुना, जो भारत के पहले परमाणु अनुसंधान रिएक्टर के जनक थे.
भारत में संगठित परमाणु अनुसंधान की औपचारिक शुरुआत
भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र की वेबसाइट पर जिक्र है कि डॉ. होमी जहांगीर भाभा (डॉ. भाभा) ने देश की आजादी से पहले ही 1945 में परमाणु विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान करने के लिए टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआईएफआर) की स्थापना की थी. दिल्ली सरकार के मयूर विहार स्थित डॉ. एच.जे. भाभा आईटीआई खिचड़ीपुर की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, देश की आजादी के अगले साल अप्रैल 1948 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने डॉ. भाभा के अनुरोध पर संविधान सभा में परमाणु ऊर्जा अधिनियम पारित करने पर सहमति व्यक्त की, जिससे भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग (आईएईसी) का गठन हुआ. यह भारत में संगठित परमाणु अनुसंधान की औपचारिक शुरुआत थी.
स्वदेशी तकनीक से की गई इस रिएक्टर की स्थापना
परमाणु ऊर्जा विभाग के मुताबिक, डॉ. भाभा ने 1950 के दशक के शुरू में कहा था, 'अनुसंधान रिएक्टर परमाणु कार्यक्रम की रीढ़ की हड्डी होते हैं.' इसके बाद एशिया के पहले अनुसंधान रिएक्टर 'अप्सरा' का परिचालन अगस्त 1956 में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के ट्रॉम्बे परिसर में शुरू हुआ. 'अप्सरा' के अस्तित्व में आने के लगभग 62 सालों के बाद 10 सितंबर 2018 को ट्रॉम्बे में स्विमिंग पूल के आकार का एक शोध रिएक्टर 'अप्सरा-उन्नत' का परिचालन प्रारंभ हुआ. उच्च क्षमता वाले इस रिएक्टर की स्थापना स्वदेशी तकनीक से की गई.
भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के मुताबिक, रिएक्टर में स्वदेशी रूप से विकसित कम समृद्ध यूरेनियम (एलईयू) ईंधन यूरेनियम सिलिसाइड के रूप में उपयोग किया जाता है. पूल के शीर्ष पर गर्म पानी की परत की अवधारणा, भारत में अपनी तरह की पहली है, जो रेडिएशन की खुराक को कम करने के लिए नियोजित की जाती है.
रिएक्टर के नामकरण की कहानी भी दिलचस्प
भारत के पहले परमाणु अनुसंधान रिएक्टर के नामकरण की कहानी भी दिलचस्प है. तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने इसका नाम 'अप्सरा' रखा. 'अप्सरा' रिएक्टर की स्वर्ण जयंती पर भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र की ओर से जारी एक किताब में इसका जिक्र मिलता है. इस किताब में एईसी के पूर्व अध्यक्ष पीके अयंगर ने लिखा था, 'पंडित नेहरू ने आयोग के सदस्य डॉ. केएस कृष्णन के साथ मिलकर इस रिएक्टर का नाम 'अप्सरा' रखा था, क्योंकि इसके कुंड से निकलने वाले खूबसूरत चेरेनकोव विकिरण (नीली किरणों) को देखकर ऐसा लगा था.'
(इनपट- न्यूज़ एजेंसी आईएएनएस)