वो नेता जिसका जनाजा भी नहीं पढ़ने दे रहे थे उसी के लोग, मय्यत को नहलाने के लिए नहीं मिला था साबुन
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वो नेता जिसका जनाजा भी नहीं पढ़ने दे रहे थे उसी के लोग, मय्यत को नहलाने के लिए नहीं मिला था साबुन

कुछ कहानियां ऐसी होती हैं जो बहुत दर्दनाक होती हैं, हालांकि उन्हें याद लोगों तक पहुंचाना भी बहुत जरूरी होता है. आज हम आपको एक ऐसी ही दर्दनाक घटना के बारे में बताने जा रहे हैं. 

वो नेता जिसका जनाजा भी नहीं पढ़ने दे रहे थे उसी के लोग, मय्यत को नहलाने के लिए नहीं मिला था साबुन

इतिहास के कई पन्ने अपने अंदर बहुत सारा दर्द समेटे हुए हैं. आज हम आपको उन्हीं पन्नों से एक बेहद दर्दनाक घटना का बारे में बताने जा रहे हैं. यह कहानी उस नेता की है जिसने अपने लोगों को आजाद कराने के लिए अपना सबकुछ कुर्बान कर दिया था और आखिर में उन्हीं लोगों ने उनके पूरे परिवार को मौत के घाट उतार दिया. नौबत यहां तक आ गई थी कि उनके जनाजे की नमाज भी पढ़ने दी जा रही थी और जब जबरदस्ती उनके जनाजे की नमाज के लिए तैयार किया तो फिर उनकी मय्यत को गुस्ल (पार्थिव शरीर को नहलाने) देने के लिए साबुन तक नहीं मिला था.

हम बात कर रहे हैं बांग्लादेश को आजाद कराने वाले शेख मुजीबुर्रहमान की. शेख मुजीबुर्रहमान बांग्लादेश का 'फादर ऑफ द नेशन' भी कहा जाता है. सैन्य तख्ता पलट के चलते उनको और उनके परिवार को बहुत ही बेरहमी के साथ कत्ल कर दिया था. शेख हसीना उन्हीं की बेटी हैं. वो इस घटना के समय जर्मनी में थीं, हालांकि उन्होंने बाद में राजनीति में वापसी कर अपने पिता को इंसाफ दिलाने की कोशिश की. कहा जाता है कि शेख मुजीबुर्रहमान से पहले सत्ता छोड़ने के लिए कहा गया था, हालांकि उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया था.

पूरे परिवार को फौज ने कर दिया खत्म

15 अगस्त 1975 की सुबह राजधानी ढाका में मौजूद उनके घर पर बांग्लादेशी फौज ने हमला किया. इन लोगों ने पहले मुजीबुर्रहमान के घर को घेर और फिर अंदर घुसकर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी. इसी गोलीबारी में शेख मुजीबुर्रहमान साढ़ियों पर मारे गए थे. इस हमले में उनके अलावा उनकी पत्नी, बेटे, बहू, भाई, भतीजा, कर्माचारी और सुरक्षा अधिकारियों समेत 21 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था.

पूरे परिवार को एक ही कब्र में दफनाया

16 अगस्त की सुबह बांग्लादेश की सेना के जवानों ने सभी लाशों को इकट्ठा करके ढाका के बनानी कब्रिस्तान में एक बड़ा गड्ढा खोदकर दफन कर दिया था. हालांकि उन्होंने शेख मुजीबुर्रहमान की लाश को अभी तक नहीं दफनाया था. बांग्लादेश की फोज शेख मुजीबुर्रहमान की लाश को हेलीकॉप्टर के जरिए उनके आबाई गांव टुंगीपाड़ा में ले जाया गया है.

फौज ने घेर लिया था पूरा गांव

बीबीसी ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया कि लाश के यहां पहुंचने से पहले ही सेना ने पूरे गांव को घेर लिया था, ताकि कोई भी उनके जनाजे की नमाज में शामिल ना हो सके. फौज चाहती थी कि मुजीब को जल्दी से जल्दी दफना दिया जाए, हालांकि गांव के ही एक मौलाना ने कहा कि गुस्ल (नहलाना) के बिना दफनाना इस्लाम तरीके के खिलाफ है.

कपड़े धोने के साबुन से दिया गुस्ल

बीबीसी ने बदरुल अहसन के हवाले से बताया,'जब मुजीबुर्रहमान को गुस्ल दिया जा रहा था तो उस समय साबुन तक मौजूद नहीं था. जिसके बाद कहीं से कपड़े धोने वाले साबुन से उनकी लाश को नहलाया गया था और फिर उन्हें उनके पिता की कब्र के पास दफना दिया गया. जिस दिन उन्हें दफनाया गया था, उस समय बहुत तेज बारिश भी हुई थी. कुछ लोगों का यह भी कहना है कि शायद कुदरत भी इस बेरहमी को सह नहीं पाई.

उन्हें 'बांग्लादेश का जनक' कहा गया, लेकिन मौत के बाद उन्हें इंसान की बुनियादी इज़्ज़त भी नहीं दी गई। शायद इसलिए, आज भी टुंगीपाड़ा की मिट्टी में सिर्फ एक लाश नहीं, बल्कि एक सवाल दफन है. क्या वाकई मुल्क अपने असली रहनुमाओं को पहचान पाता है?

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