Indian Army Fighter jet: 2019 में जब भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के अंदर बालाकोट पर हमला किया, तो जगुआर ने पाकिस्तानी वायुसेना के F-16 को निशाना बनाने के लिए एक प्रलोभन का इस्तेमाल किया और उन्हें लक्ष्य क्षेत्र से दूर ले गए. जगुआर दल ने अंबाला एयर बेस से उड़ान भरी और 2 Su-30MKI के साथ मिलकर बहावलपुर, पाकिस्तान की ओर तेज गति से उड़ान भरी.
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Jaguar fighter jet: भारतीय वायु सेना (IAF) 2025 के अंत तक अपने मिग-21 स्क्वाड्रन के अंतिम स्क्वाड्रन को सेवानिवृत्त करने की योजना बना रही है. जब ऐसा होगा, तो एंग्लो-फ्रेंच SEPECAT जगुआर (Jaguar Fighter Jet) IAF के बेड़े में सबसे पुराना लड़ाकू जेट होगा.
IAF इस कम ऊंचाई वाले, समुद्र में उड़ान भरने वाले लड़ाकू बमवर्षक विमान का फिलहाल एकमात्र संचालक है. वैसे तो यह डबल इंजन वाला लड़ाकू विमान केवल पृथ्वी की वक्रता के तहत ही उड़ सकता है. लेकिन भारत के लिए परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम यह एक महत्वपूर्ण युद्धक विमान ने सेवा में 45 साल पूरे कर लिए हैं, जबकि विरोधी लगातार इसकी तलवार की धार को हमेशा कम आंकते रहे, लेकिन इसने बड़े-बड़े काम कर डाले.
फारसी में 'Shamsher' (जिसका अर्थ है 'न्याय की तलवार') नाम से मशहूर इन लड़ाकू विमानों ने भारतीय वायुसेना में 45 साल की सेवा पूरी कर ली है. हालांकि, यह विमान कुछ समय पहले ही दुर्घटनाग्रस्त हुआ, जिस कारण पायलट की भी मौत हो गई थी, जिससे इस विमान की सुरक्षा को लेकर चिंताएं पैदा हो गई हैं.
जगुआर की ताकत (Jaguar Fighter Jet)
जगुआर की 'लो-लो-लो कॉम्बैट रेडियस ऑफ एक्शन' 350 नॉटिकल मील (650 किलोमीटर) है, जिसका मतलब है कि यह कम ऊंचाई पर उड़ते हुए भी यह दूरी तय कर सकता है. यह कम ऊंचाई पर उड़ान भरने वाले स्ट्राइक विमानों में सबसे बेहतर है.
SEPECAT जगुआर 1960 के दशक में विकसित एक सिंगल-सीटर, स्वेप्ट-विंग, ट्विन-इंजन, ट्रांसोनिक अटैक एयरक्राफ्ट है. इसका ट्रेनर विमान ट्विन-सीटर कॉन्फिगरेशन वाला है.
कई लोग सवाल उठाते हैं कि जगुआर भारतीय वायुसेना की रणनीति में कैसे फिट बैठता है?
हालांकि, 2019 में जब भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के अंदर बालाकोट पर हमला किया, तो जगुआर ने पाकिस्तानी वायुसेना के F-16 को निशाना बनाने के लिए एक प्रलोभन का इस्तेमाल किया और उन्हें लक्ष्य क्षेत्र से दूर ले गए. जगुआर दल ने अंबाला एयर बेस से उड़ान भरी और 2 Su-30MKI के साथ मिलकर बहावलपुर, पाकिस्तान की ओर तेज गति से उड़ान भरी.
इसका उद्देश्य यह दिखाना था कि भवालपुर पर भारतीय लड़ाकू विमानों द्वारा हमला किया जाने वाला है. F-16 विमान इस प्रलोभन में फंस गए और जगुआर को रोकने के लिए आगे बढ़े. जगुआर ने कभी वास्तविक नियंत्रण रेखा को पार नहीं किया, लेकिन इसने मिराज लड़ाकू विमानों के लिए पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र में घुसने का रास्ता साफ कर दिया.
भारतीय वायुसेना छह स्क्वाड्रनों में लगभग 120 जगुआर संचालित करती है. जगुआर ने 1984 में ऑपरेशन मेघदूत के दौरान अपनी ऊंचाई-अनुकूलित नेविगेशन और स्ट्राइक सिस्टम का इस्तेमाल किया, जिससे भारत ने सियाचिन ग्लेशियर सुरक्षित कराया. 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान, जगुआर ने टोही और उच्च ऊंचाई पर सटीक लक्ष्यीकरण सहायता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
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