RSS प्रमुख मोहन भागवत 10 दिनों के बंगाल दौरे पर रहे. हालिया वर्षों में पश्चिम बंगाल में ये उनका सबसे लंबा प्रवास रहा.
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RSS Chief मोहन भागवत 10 दिनों के बंगाल दौरे पर रहे. हालिया वर्षों में पश्चिम बंगाल में ये उनका सबसे लंबा प्रवास रहा लेकिन इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात ये कि उनकी यात्रा की चर्चा बेहद कम रही. इस दौरान उनकी केवल एक पब्लिक रैली 16 फरवरी को बर्धमान में आयोजित हुई. यानी मोहन भागवत अपनी यात्रा के दौरान ज्यादातर पब्लिक की नजरों से दूर रहे और उन्होंने खामोशी से संघ कार्यकर्ताओं के साथ बैठकें कीं. छह फरवरी से लेकर 17 तारीख तक संघ की बैठकें प्रमुख रूप से कोलकाता और बर्धमान में आयोजित हुईं.
कुछ समय पहले बांग्लादेश में हुए सत्ता परिवर्तन और एक साल बाद बंगाल में होने जा रहे चुनावों को देखते हुए मोहन भागवत की यात्रा को अहम माना जा रहा है. संघ अब बंगाल पर फोकस करते हुए रणनीति बना रहा है. संघ इस साल अपना शताब्दी वर्ष भी मना रहा है. इसको लेकर स्वयंसेवकों में उत्साह है. मोहन भागवत इस ऊर्जा का उपयोग करना चाह रहे हैं.
वैसे तो संघ की बैठकों को लेकर पदाधिकारियों की तरफ से कुछ नहीं कहा गया. लेकिन अंदर से जो खबरें छनकर आई हैं वो ये हैं कि दक्षिण बंगाल के जिलों में स्वयंसेवकों को दोगुनी शक्ति के साथ अपनी सक्रियता बढ़ाने को कहा गया है. माना जाता है कि इस अंचल में आरएसएस की स्थिति कमजोर है. पड़ोसी बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार के मुद्दे को भी संघ ने जनता के बीच उठाने का मन बनाया है. उसका मकसद बहुंसख्यक हिंदुओं को एकजुट करना है.
बंगाल क्यों है खास
बंगाल संघ के लिए इसलिए भी मायने रखता है क्योंकि यदि यहां उसको सफलता मिलती है तो मिथकीय पूर्वी भारत को एकीकृत करने के उसके एजेंडे को कामयाबी मिलेगी. ऐतिहासिक रूप से देखें तो पूर्वी भारत में अंग, बंग और कलिंग तीन राज्य हुआ करते थे. अंग राज्य में आज के भागलपुर, मुंगेर और पश्चिम बंगाल एवं असम का कुछ हिस्सा होता था. ओडिशा को कलिंग कहा जाता था. प्राचीन बंग राज्य की भौगोलिक परिधि दक्षिणी पश्चिमी बंगाल और बांग्लादेश तक थी. इनमें से दो जगहों पर बीजेपी की सरकारें हैं और संघ अपने एजेंडे के तहत अब बंगाल में भी कामयाबी हासिल करना चाहता है.